बॉम्बे हाई कोर्ट ने महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी से पूछा है कि वे राज्य विधान परिषद के 12 सदस्यों के नामांकन पर फैसला कब करेंगे। राज्य सरकार के मंत्रिमंडल ने नवम्बर 2020 में इन 12 सदस्यों के नामों की सूची सर्वसम्मति से पारित कर राज्यपाल को भेज दी थी, लेकिन उस पर राज्यपाल द्वारा अब तक कोई निर्णय नहीं किया गया। सत्ताधारी गठबंधन के नेताओं और सरकार की तरफ से कई बार राज्यपाल से इन नियुक्तियों के बारे में पूछा भी गया लेकिन आज तक कोई फैसला नहीं हो सका।
हाई कोर्ट ने राज्यपाल के सचिव से सवाल किया कि आखिर कब निर्णय होगा। अदालत ने इस मामले में दो सप्ताह में जवाब पेश करने का आदेश दिया है। हाई कोर्ट का यह निर्णय राज्यपाल के कामकाज पर एक सवाल के रूप में देखा जा रहा है।
दरअसल, अब यह चर्चा आम हो चली है कि क्या गैर-बीजेपी सरकार वाले प्रदेशों में राज्यपाल सरकार के लिए अड़चनें निर्माण करने का ही काम करते हैं या जिस राजनीतिक दल से वे चुनकर आते हैं उसके इशारों पर सरकारी निर्णय करते हैं?
राज्यपालों का राजनीतिक एजेंडा
हमारे देश में पिछले कुछ वर्षों से राज्यपालों द्वारा जिस प्रकार के निर्णय किये जा रहे हैं, उन्हें देखकर तो यही लगता है कि वे राजनीतिक एजेंडे को ही ज्यादा चलाते हैं और राजभवन को राजनीति का अखाड़ा बनाये रखते हैं।
महाराष्ट्र के राजभवन में होने वाली गतिविधियों को लेकर नेताओं ने आरोप-प्रत्यारोप भी लगाए। लेकिन उन सबके बाद विधान परिषद के सदस्यों की नियुक्ति के इस मामले में भी यही आरोप लगते रहे हैं कि राज्यपाल अपनी पार्टी के हाईकमान के इशारे पर काम कर रहे हैं।
सात महीने बाद भी फैसला नहीं
राज्यपाल को राज्य सरकार की तरफ से विधान परिषद के 12 सदस्यों के नाम की सूची 6 नवंबर 2020 को भेजी गयी थी लेकिन उन्होंने आज तक उस पर कोई निर्णय नहीं किया। इस संबंध में नासिक के रतन सोली ने हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर की है। न्यायाधीश शाहरुख काथावाला और न्यायाधीश सुरेंद्र तावडे की खंडपीठ इसकी सुनवाई कर रही है। मामले की अगली सुनवाई 9 जून, 2021 को होनी है। इस मामले में सरकार के अनेक मंत्रियों के बयान बार-बार आते रहे हैं।
भ्रम की स्थिति
नाना पटोले ने विधानसभा अध्यक्ष पद से इस्तीफ़ा देने के बाद इस बारे में महत्वपूर्ण बातें कहीं थी। उन्होंने कहा था कि राज्यपाल द्वारा इन नामों की घोषणा नहीं किये जाने से प्रदेश में संवैधानिक संकट निर्माण हुआ है। उन्होंने कहा था कि विधि मंडल की समितियां भले ही सरकार ने बना रखी हैं लेकिन उनमें नामांकित होने वाले विधान परिषद के सदस्यों के स्थान खाली पड़े हुए हैं जिससे भ्रम की स्थिति बनी हुई है।
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राज्यपाल की भूमिका पर सवाल
पटोले ने कहा था कि इन समितियों के काम को संवैधानिक कहा जाए या कि असंवैधानिक यह सवाल खड़ा हो गया है। पटोले के इन आरोपों के जवाब के बदले उलटे राज्यपाल ने सरकार को एक पत्र लिखकर पूछा कि विधानसभा अध्यक्ष पद के चुनाव कब होने वाले हैं। ऐसे में हाई कोर्ट का यह आदेश महत्वपूर्ण माना जा रहा है। लेकिन एक सवाल तो खड़ा ही होता है कि क्या राज्यपाल अब राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों की तरह ही काम करेंगे?
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