एनसीपी के प्रमुख नेताओं की शनिवार शाम को पवार के आवास 'सिल्वर ओक' में बैठक हुई थी। इस बैठक में पवार नहीं थे लेकिन बैठक ख़त्म होने के बाद एनसीपी के वरिष्ठ नेता अजित पवार ने जो बयान दिया, उससे यह बात निकलकर आ रही है कि सरकार बनाने के लिये जिन विकल्पों की चर्चा हो रही थी, क्या उनके अलावा भी एक तीसरा विकल्प है? हां, यह विकल्प है शरद पवार की ताजपोशी का!
शरद पवार के मुख्यमंत्री बनने के नाम पर ना तो कांग्रेस को कोई एतराज है और ना ही शिवसेना को। बताया जाता है कि दिल्ली जाने से पहले शुक्रवार को पवार ने फ़ोन पर सोनिया गाँधी से चर्चा भी की थी।
पवार को दिल्ली में यूपीए के घटक दलों की बैठक में भी हिस्सा लेना था। इस नए घटनाक्रम को लेकर शिवसेना प्रवक्ता संजय राउत का भी बयान आया है। उन्होंने संकेत दिया है कि सरकार का गठन अब बस एक क़दम दूर है। राउत ने कहा, ‘हम पहले बीजेपी को सरकार बनाने का मौक़ा देंगे और उसके बाद उन्हें विधानसभा में हराकर नई सरकार बनाने का काम शुरू कर देंगे।
शिवसेना ने की प्रशांत किशोर से बात
यह भी ख़बर मिली है कि सत्ता को लेकर मचे इस संग्राम में शिवसेना ने अपने राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर से भी सलाह-मशविरा किया है। बताया जा रहा है कि प्रशांत किशोर से चर्चा के बाद जो निष्कर्ष निकला है, उसमें एक बात यह स्पष्ट की गयी है कि महाराष्ट्र में अगर शिवसेना को अपना जनाधार बढ़ाना है तो उसे बीजेपी की बढ़ती हुई ताक़त को कम करना होगा। ऐसी ही कुछ बातों की वजह से शिवसेना अड़ी हुई है।
शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने विधायक दल के नेता के चयन के लिए बुलाई गई बैठक में यह सवाल उठाया था कि तमाम प्रयासों के बाद भी पार्टी के विधायकों की संख्या नहीं बढ़ी है तो अब क्या किया जाये?
भ्रम फैला रही बीजेपी!
शरद पवार के नाम पर सहमति का एक कारण और भी है। जब से शिवसेना ने विधायक दल के नेता का चुनाव किया है, बीजेपी द्वारा मीडिया और सोशल मीडिया में यह भ्रम फैलाया जा रहा है कि महाराष्ट्र में बीजेपी के बिना बनने वाली सरकार अस्थिर होगी और एक ही साल के अंदर फिर से विधानसभा चुनाव होंगे। इस अफवाह को फैलाने के लिए सट्टा बाजार के हवाले से भी ख़बर महाराष्ट्र के बड़े-बड़े समाचार पत्रों में प्रकाशित कराई गई। शिवसेना के विधायकों को तोड़ने की ख़बर भी इसी क्रम का एक हिस्सा थी।
राम जन्मभूमि और अयोध्या मुद्दे पर शिवसेना के रुख को लेकर कांग्रेस की जो अड़चन है, उसे देखते हुए शिवसेना के नेतृत्व वाली सरकार को कांग्रेस किस तरह समर्थन देगी, यह सवाल भी बना हुआ था। ऐसे में पवार को आगे रखकर नई रणनीति बनाई गई और इस पर ना तो कांग्रेस को कोई दिक्कत आ रही है और ना ही शिवसेना को।
शिवसेना इस बात को लेकर संतुष्ट है कि आदित्य ठाकरे को उप मुख्यमंत्री का पद मिलेगा और सत्ता में उसे सम्मान के साथ हिस्सेदारी मिलेगी। और एक महत्वपूर्ण बात यह है कि केंद्र सरकार के इशारे पर होने वाली परेशानियों को निपटने में पवार जैसे सक्षम नेता का साथ भी मिलेगा। पवार के नेतृत्व में सक्षम और स्थिर सरकार चलने में किसी को कोई आशंका नहीं रहने वाली है।
बताया जा रहा है कि बीजेपी को सत्ता से दूर रखकर तीनों मुख्य पार्टियां एक साथ आने में सहज महसूस कर रही हैं। यह भी कयास लगाए जा रहे हैं कि सत्ता के दम पर बीजेपी ने एनसीपी और कांग्रेस से जिन नेताओं को तोड़कर अपने दल में शामिल किया था, उनकी घर वापसी का बड़ा खेल भी नई सरकार के बनने के बाद शुरू होगा।
हाल ही में कांग्रेस-एनसीपी छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए नेताओं में से 10 नेता विधायक चुने गए हैं। यदि महाराष्ट्र में दल-बदल की पांच साल की तसवीर देखें तो क़रीब 35 ऐसे नेता हैं जो कांग्रेस -एनसीपी से बीजेपी में जाकर विधायक बने हैं। इनमें शरद पवार के रिश्तेदार भी शामिल हैं।
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