महाराष्ट्र के नतीजे आये 10 से ज़्यादा दिन हो चुके हैं लेकिन सरकार गठन की तसवीर अब तक साफ़ नहीं हो सकी है। एनसीपी प्रमुख शरद पवार की महाराष्ट्र में सरकार गठन को लेकर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी से मुलाक़ात हो चुकी है। ख़बरों के मुताबिक़, सोनिया गाँधी ने शिवसेना को समर्थन देने से इनकार कर दिया है। लेकिन यह भी ख़बर आ रही है कि एनसीपी शिवसेना के साथ मिलकर राज्य में सरकार बना सकती है और कांग्रेस इसे बाहर से समर्थन दे सकती है।
चुनाव नतीजों के बाद बीजेपी और शिवसेना को आपसी बातचीत के द्वारा सरकार बनाने की प्रक्रिया शुरू करनी चाहिए थी लेकिन दोनों तरफ़ से आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया। शिवसेना ने अपने मुखपत्र 'सामना' के माध्यम से बीजेपी की राज्य और केंद्र सरकार की नीतियों की आलोचना शुरू कर दी। शायद उन्हें इस बात का अंदेशा रहा हो कि आने वाले दिनों में सत्ता में बंटवारे को लेकर बीजेपी का क्या रुख रहने वाला है।
शिवसेना प्रवक्ता संजय राउत ने एक पत्रकार वार्ता के दौरान यह बात कही भी है कि 21 अक्टूबर की शाम के बाद से हम एक दबाव से मुक्त हो गए थे। दोनों दलों ने शुरुआत में एक-दूसरे पर कार्टून, बयानों के माध्यम से अप्रत्याशित युद्ध सा छेड़ा था जो अब संपादकीय जंग में तब्दील होता दिख रहा है।
‘सामना’ में लगातार छपने वाले संपादकीय और संजय राउत के लेखों के बाद बीजेपी ने अब 'तरुण भारत' नामक समाचार पत्र में संपादकीय के माध्यम से शिवसेना और संजय राउत को निशाना बनाया है।
सबसे पहले 25 अक्टूबर के दिन संजय राउत ने अपने ट्विटर हैंडल से एक कार्टून ट्वीट किया था जिसमें शेर के हाथ में कमल का फूल था और उसके गले में घड़ी थी। ‘बुरा ना मानो दिवाली है’ कहकर उनके इस ट्वीट ने इस बात के संकेत दिए थे कि शिवसेना के पास दोनों विकल्प हैं। घड़ी एनसीपी का चुनाव चिह्न है।
राउत के ट्वीट के जवाब में मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को सर्कस के रिंग मास्टर की तरह से शेर को फंदे में लेने वाला कार्टून ट्वीट किया गया जिसमें लिखा था 'आखिर तुम्हें आना है जरा देर लगेगी'। कार्टून वॉर के बाद जैसे ही दीपावली के दिन फडणवीस ने बयान दे दिया कि ‘अगला मुख्यमंत्री मैं ही बनूँगा और 50:50 का कोई वादा नहीं था’, तो दोनों पार्टियों में आरोप -प्रत्यारोप तेज हो गये।
‘सामना’ में संपादकीय लिखकर सबसे पहले संजय राउत ने बीजेपी को घेरा। सामना में उन्होंने लिखा कि जो चुनाव परिणाम आया है, वह सत्ता के उन्माद को आईना दिखाने वाला जनादेश है! उन्होंने यह भी लिखा कि एक दिन में ही इस चुनाव के परिणाम का आकलन नहीं किया जा सकता लेकिन एक बात तो तय है कि महाराष्ट्र की भावनाओं को दबाकर या उसे डराकर तथा यहां के लोगों की छाती पर पैर रखकर कोई भी यहां राज नहीं कर सकता।’
‘सामना’ में आगे लिखा था, महाराष्ट्र की जनता को सत्ता का उन्माद मान्य नहीं था और आगे भी नहीं रहेगा। हमारे पैर जमीन पर थे और रहेंगे। अपने शब्दों (वादों) को पूरा करने वाले राजा के रूप में छत्रपति शिवाजी महाराज की ख्याति थी और यह राज्य उन्हीं की प्रेरणा से चलेगा। महाराष्ट्र की जनता ने जो जनादेश दिया है वह सरल और स्पष्ट है। उसका अर्थ है हवा में मत उड़िये और सत्ता के मद (घमंड ) में मत रहिये।’
'महा जनादेश' को लेकर किया तंज
‘सामना’ में यह भी लिखा गया कि, ‘मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को अंतिम समय तक यह आत्मविश्वास था कि ईवीएम में से कमल ही निकलेगा लेकिन वैसा हो नहीं सका। सत्ता के उन्माद में आकर राजनीति में किसी को हमेशा के लिए ख़त्म नहीं किया जा सकता। 'हम करें वही कायदा (क़ानून), 'राजनीति में ऐसा नहीं चलता है। सत्ता के दम पर कांग्रेस और एनसीपी के अनेक विधायकों और नेताओं को अपनी पार्टी में मिलाने के बाद भी 'महा जनादेश' नहीं मिला है, इस बात को स्वीकारना होगा।’ विधानसभा चुनाव से पहले देवेंद्र फडणवीस ने 'महा जनादेश' यात्रा निकाली थी। इसके अलावा संपादकीय में सातारा सीट से उदयन भौसले की हार से लेकर अनेक बातों का जिक्र किया गया था।
सामना के संपादकीय का लब्बोलुआब यही है कि अब तक विपक्ष बीजेपी की जिस भय या सरकारी मशीनरी का इस्तेमाल कर डराने वाली राजनीति की बात कहा करता था, उस पर शिवसेना ने अपने मुखपत्र के माध्यम से मुहर लगाई है। इसके बाद संजय राउत ने अपने बयानों के माध्यम से बीजेपी नेताओं और सरकार को हर दिन घेरा।
एक बार राउत ने ट्वीट किया - ‘साहिब...मत पालिए, अहंकार को इतना, वक़्त के सागर में कई, सिकन्दर डूब गए..! फिर राउत ने ट्वीट किया - उसूलों पर जहाँ आँच आये, टकराना ज़रूरी है, जो ज़िन्दा हो, तो फिर ज़िन्दा नज़र आना ज़रूरी है... जैसे कई डायलॉग ट्वीट कर उन्होंने बीजेपी और फडणवीस पर निशाना साधा।
राउत को बताया बेताल
रविवार को हुई प्रेस कांफ्रेंस में राउत ने बीजेपी की राजनीति को गुंडागर्दी तक कहा और यह कहा था कि सत्ता नहीं रहने पर बंदर और कुत्ते भी आसपास नहीं रहते। राउत ने कहा कि येदियुरप्पा का फ़ॉर्मूला महाराष्ट्र में नहीं चलेगा। इसी क्रम में बीजेपी से सम्बन्ध रखने वाले एक समाचार पत्र 'तरुण भारत' में संपादकीय छपा है। इस संपादकीय में संजय राउत की तुलना विक्रम-बेताल की कहानियों के किरदार बेताल से की गयी है तथा उन्हें विदूषक बताया गया है।
'तरुण भारत' के संपादकीय में किसानों की समस्याओं के बीच शिवसेना के मुख्यमंत्री पद के हठ पर निशाना साधा गया है तथा यह बताने की कोशिश की गयी है कि देवेंद्र फडणवीस कैसे अकेले प्रदेश की समस्याओं के लिए परेशान रहते हैं।
लेकिन कार्टून, ट्विटर और अब संपादकीय से आगे एक और लड़ाई है महाराष्ट्र में सरकार बनाने की है। एनसीपी नेता शरद पवार ने गत दिनों कहा था कि कुर्सी को लेकर जो बचकाना खेल बीजेपी और शिवसेना खेल रही हैं, वह बंद कर सरकार का गठन करें और प्रदेश के किसानों के लिए कुछ करें। पवार ने कहा था कि किसान जो पहले सूखे की वजह से तबाह थे और अब बारिश ने उन्हें उजाड़ कर रख दिया है।
अब सवाल यह है कि बीजेपी राज्य में सबसे बड़ा दल होने के बावजूद सरकार बनाने का दावा क्यों नहीं पेश कर रही है। प्रदेश में नई सरकार के गठन की समय सीमा 8 नवम्बर तक है और अभी तक इसे लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं हो सकी है।
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