महाराष्ट्र की राजनीति में एक बार फिर मेल-मुलाक़ातों का दौर चल रहा है और जब भी ऐसी मेल-मुलाक़ातें होती हैं तो कई तरह की सियासी चर्चाएं फिजां में तैरने लगती हैं। इस बार पूर्व मुख्यमंत्री और बीजेपी नेता देवेंद्र फडणवीस ने एनसीपी नेता शरद पवार से मुलाक़ात की है। यह मुलाक़ात सोमवार को पवार के मुंबई स्थित आवास पर हुई।
मुलाक़ात के बाद जैसे ही कुछ सवाल उठे तो शिव सेना सांसद संजय राउत ने इन्हें यह कहकर शांत कर दिया कि ऑपरेशन लोटस भूल जाइए, ऑपरेशन लोटस न तो महाराष्ट्र में होगा और न ही बंगाल में। फडणवीस मंगलवार को बीजेपी छोड़कर एनसीपी में गए एकनाथ खडसे के घर भी गए।
संजय राउत ने मंगलवार को पत्रकारों से बातचीत में कहा कि कोरोना महामारी के इस वक़्त में विपक्षी दल को जनता के हित में, देश के हित में किस तरह काम करना चाहिए, इस बात को शरद पवार ने ज़रूर फडणवीस को समझाया होगा। दूसरी ओर, फडणवीस ने इसे शिष्टाचार मुलाक़ात बताया है। महाराष्ट्र में एनसीपी, कांग्रेस और शिव सेना मिलकर सरकार चला रहे हैं।
राउत-फडणवीस की मुलाक़ात
बीते साल सितंबर में जब संजय राउत और देवेंद्र फडणवीस की मुलाक़ात हुई थी, तब भी कई तरह की चर्चाएं चली थीं। इस मुलाक़ात के अगले ही दिन मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और शरद पवार मिले थे और राजनीतिक पारा चढ़ गया था। फडणवीस के साथ बैठक को लेकर राउत ने कहा था कि वह शिव सेना के मुखपत्र सामना में एक इंटरव्यू के लिए उनसे मिले थे। राउत सामना के कार्यकारी संपादक भी हैं।
फडणवीस ने मंगलवार को बीजेपी सांसद रक्षा खडसे से उनके जलगांव स्थित आवास में मुलाक़ात की। रक्षा खडसे बीजेपी के दिग्गज नेता रहे और पूर्व मंत्री एकनाथ खडसे की बहू हैं। खडसे और फडणवीस की राजनीतिक शत्रुता जगजाहिर है। फडणवीस की वजह से ही उन्हें बीजेपी छोड़कर जाना पड़ा था और कई साल तक वह पार्टी में उपेक्षित रहे थे। हालांकि इस दौरान एकनाथ खडसे घर पर मौजूद नहीं थे।
खडसे के साथ ही उनकी बेटी रोहिणी खडसे ने भी एनसीपी की सदस्यता ले ली थी। लेकिन रक्षा खडसे अभी भी बीजेपी में ही हैं।
माना जा रहा है कि खडसे के एनसीपी में जाने के बाद बीजेपी को जलगांव के इलाक़े में जबरदस्त सियासी नुक़सान हो सकता है। पिछले साल बीजेपी के कई पार्षद शिव सेना में शामिल हो गए थे और जलगांव नगर निगम की सत्ता शिव सेना के हाथ में आ गई थी।
मराठा आरक्षण पर फंसी सरकार
उद्धव सरकार इन दिनों कोरोना से लड़ाई लड़ने के साथ ही मराठा आरक्षण के मुद्दे पर भी दबाव में है। सुप्रीम कोर्ट ने मराठा आरक्षण के प्रस्ताव को खारिज कर दिया है और उद्धव सरकार पर दबाव है कि वह मराठा आरक्षण को लेकर कोई बड़ा कदम उठाए अन्यथा मराठा वोट बैंक खिसक सकता है।
बीजेपी-एनसीपी की जुगलबंदी?
हालांकि फडणवीस ने पवार से हुई इस मुलाक़ात को शिष्टाचार भेंट बताया है लेकिन ऐसी मुलाक़ातों को लेकर बार-बार कहा जाता है कि क्या बीजेपी और एनसीपी मिलकर महाराष्ट्र में सरकार बना सकते हैं क्योंकि 2019 के विधानसभा चुनाव के बाद एनसीपी में फूट हुई थी और फडणवीस ने तड़के मुख्यमंत्री और बाग़ी नेता अजित पवार ने उप मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली थी।
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