क्या पालघर में दो साधुओं को पीट-पीट कर मार डालने की घटना सिर्फ अफ़वाहों की वजह से हुई है? जिस तरह की घटनाएं पिछले सप्ताह उस थाना क्षेत्र में हुई हैं, वे तो इसी बात की तरफ इशारा करती हैं। हालांकि आदिवासी बहुल इस जिले में साधुओं के हत्याकांड के बाद राजनीतिक दल इस मुद्दे पर अपनी रोटियां सेंकने में जुट गए हैं। लेकिन जो नई-नई परतें खुल रही हैं, वे कुछ और ही कहानी कह रही हैं।
ये नई परतें इस बात की ओर ही इशारा कर रही हैं कि इस आदिवासी इलाक़े में अफ़वाहों का प्रचंड दौर चल रहा है। यहां पर अफ़वाहें हैं कि जमाती या मुसलिम लोग भेष बदलकर आते हैं और कुओं के पानी में थूक कर या खून डालकर कोरोना फैलाने का काम कर रहे हैं।
दूसरी अफ़वाह यह भी है कि किडनी कारोबार से जुड़े कुछ गिरोह यहां आदिवासियों की जबरन किडनी निकालने का काम कर रहे हैं। क्योंकि 16 मार्च को साधुओं पर हमला करने की घटना के दो दिन पहले भी इस क्षेत्र में लोगों ने दो डॉक्टर्स पर हमला बोला था। 14 मार्च को रात 9 बजे के करीब कासा पुलिस स्टेशन क्षेत्र के ही गांव सरणी में डहाणू इलाक़े से लौट रहे दो डॉक्टर्स पर हमला हुआ था। इनके साथ पुलिस भी थी।
इनकी गाड़ियों को देखकर ग्रामीणों ने पथराव करना शुरू कर दिया था। पथराव में पुलिस की गाड़ी को नुक़सान हुआ और चार पुलिसकर्मी भी घायल हो गए थे। डॉक्टर्स किसी तरह से वहां से बच कर निकलने में सफल रहे थे। 15 मार्च को पुलिस ने इस मामले में 15 लोगों को गिरफ्तार किया था।
युवक पर भी हुआ हमला
साधुओं पर हमले की घटना के एक दिन बाद यानी 17 मार्च को भी रात 11:30 बजे, घोलवाड के पास झाई गांव में भीड़ ने मानसिक रूप से बीमार एक युवक पर हमला कर दिया था। यह युवक दूसरे गांव का था और गांव के लोगों ने चोर समझकर उस पर हमला कर उसे घायल कर दिया था। इस मामले में भी 31 लोगों को पुलिस ने गिरफ्तार किया है।
दरअसल, इस आदिवासी क्षेत्र में जब अफ़वाहों का बाजार इस स्तर पर गर्म है तो ऐसे में यहां के लोगों के भ्रम को दूर करने की ज़रूरत है। महाराष्ट्र प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता सचिन सावंत ने साधु हत्याकांड मामले में ट्वीट कर कहा कि जिस क्षेत्र में एक भी मुसलिम नहीं है, वहां देश का गोदी मीडिया इस ख़बर को हिन्दू-मुसलिम का रंग देने में लगा था। बीजेपी के अधिकांश नेताओं ने भी इस घटना की हक़ीक़त को समझे बग़ैर बयानबाज़ी की।
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