मुंबई और महाराष्ट्र में लॉकडाउन का एक महीना पूरा हो चुका है। इस एक महीने में मुंबई में कोरोना संक्रमितों की संख्या 41 से बढ़कर 4205 तथा महाराष्ट्र में 120 से बढ़कर 6427 हो गयी है। राज्य और केंद्र सरकार की तरफ से रोज तमाम दावे किए जाते हैं और हर दिन दिन यह बताया जाता है कि कैसे कोरोना फैलने की रफ़्तार कम हो रही है।
सरकार के लोग बताते हैं कि पहले इतने दिनों में संक्रमितों की संख्या दो गुना हो जाती थी और अब इतने दिनों में हो रही है। वे यह भी बताते हैं कि पहले कोरोना संक्रमण से मरने वालों का औसत इतना अधिक था जो अब सुधर कर इतना कम रह गया है। लेकिन ये दावे आम आदमी के गले नहीं उतरते क्योंकि मरीजों की संख्या का ग्राफ़ हर दिन बढ़ रहा है।
राज्य सरकार क्या सक्षम तरीके से काम नहीं कर रही है? क्या लॉकडाउन को प्रभावी तरीके से लागू नहीं किया जा रहा है? अधिक जांच नहीं होने का क्या कारण है? क्या केंद्र और राज्य सरकार में तालमेल की कमी है? ऐसे अनेक प्रश्न हैं जो इस एक माह के दौरान उठे और चर्चा का विषय बने।
इस एक महीने के समय में मुंबई और महाराष्ट्र में कोरोना के संक्रमण को रोकने को लेकर क्या-क्या किया गया, इसकी जानकारी हम इस बीमारी से लड़ने में जुटे राज्य के लोगों से जानते हैं कि आख़िर क्या कारण है कि मुंबई और महाराष्ट्र में कोरोना के संक्रमण के नए मामलों पर अंकुश नहीं लग पा रहा है।
तीसरे चरण में पहुंचा कोरोना?
प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री राजेश टोपे को अभी भी विश्वास है कि मुंबई की स्थिति ठीक है और आने वाले एक-दो सप्ताह में कोरोना के संक्रमण पर अंकुश लग जाएगा। स्वास्थ्य विभाग की संचालक डॉ.अर्चना पाटिल मानती हैं कि कोरोना तीसरे चरण में पहुंच गया है और इसको लेकर केंद्र सरकार के भले ही अलग पैमाने हों लेकिन मुंबई में अब यह दिखने लगा है कि वे लोग भी इस वायरस से संक्रमित हो रहे हैं, जो किसी भी संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में नहीं आए हैं।
जनसंख्या घनत्व बहुत ज़्यादा
राज्य के सर्वेक्षण अधिकारी डॉ. प्रदीप आवटे ने मुंबई के जनसंख्या घनत्व और लोगों के व्यवहार को लेकर चिंता जताई और इन्हें संक्रमण फैलने का जिम्मेदार बताया। मुंबई में औसत जनसंख्या घनत्व यानी एक वर्ग किलोमीटर में 31,700 लोग रहते हैं। धारावी जैसे इलाके में यह तीन गुना अधिक है और तमाम प्रयासों के बावजूद क़रीब 20 फीसदी लोग सड़कों पर निकल रहे हैं, ऐसे में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कराना बहुत मुश्किल है।
मुंबई के धारावी, वर्ली, कोलीवाडा, वडाला, कुर्ला, दादर तथा पुणे के भवानी पेठ, सैयद नगर, कोलवा जैसे इलाके, जहां जनसंख्या घनत्व बहुत ज्यादा है, इन इलाक़ों में कोरोना का संक्रमण बहुत अधिक है। जिस तरह प्रदेश के 65 फ़ीसदी कोरोना संक्रमित मुंबई में हैं, वैसे ही मुंबई या पुणे के इतने फ़ीसदी संक्रमित लोग इन घनी बस्तियों से हैं।
एक बात स्पष्ट है कि यदि घनी बस्तियों में कोरोना के फैलने पर रोक लगेगी तो तसवीर बदल सकती है। मुंबई के वर्ली क्षेत्र में वायरस को नियंत्रित कर पाने में सरकार को सफलता मिली है और पिछले कुछ दिनों से वहां नए मरीज नहीं मिले हैं।
टेस्ट की संख्या बढ़ाए सरकार
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की महाराष्ट्र इकाई के अध्यक्ष डॉ.अविनाश भोंडवे कम जांच को भी एक बड़ा कारण बताते हैं। डॉ.अविनाश के हिसाब से हर 10 लाख लोगों में से कम से कम 5 हजार का टेस्ट होना ज़रूरी है जो कि वर्तमान में 1500 से 1700 ही है। वैसे, ज्यादा जांच कराने के लिए किट की ज़रूरत है और इसे लेकर राज्य सरकार हमेशा यह कहती रही है कि उसे केंद्र से आवश्यकता अनुसार टेस्ट किट, मास्क और पीपीई किट नहीं मिल रही हैं।केंद्र सरकार ने भी सभी राज्य सरकारों को लिखित आदेश जारी किया है कि वे अपने स्तर पर चिकित्सा से जुड़ा कोई सामान नहीं ख़रीदें और केंद्र उन्हें यह उपलब्ध कराएगा। केंद्र सरकार से सहयोग नहीं मिलने की शिकायत सिर्फ महाराष्ट्र को ही नहीं दूसरे राज्यों को भी है।
मुंबई में कोरोना संक्रमितों के जो मामले लॉकडाउन पार्ट 2 में सामने आए हैं, उनमें स्वास्थ्यकर्मी, पुलिस और पत्रकारों की भी बड़ी संख्या है और यह अपने आप में चिंता का विषय है।
महाराष्ट्र में कोरोना का पहला मामला 9 मार्च को प्रकाश में आया था। मुंबई में बड़े पैमाने पर अंतरराष्ट्रीय यात्री आते हैं, इसलिए यहां पर संक्रमण के मामले भी तेजी से बढ़े। एक महीने में राज्य सरकार ने ग्रीन, रेड और ऑरेंज जोन में प्रदेश का बंटवारा जैसे कई कदम उठाये और उसका असर देखने को मिल रहा है।
मुंबई और धारावी बड़ी चुनौती
प्रदेश के कई जिले ऑरेंज से ग्रीन और रेड से ऑरेंज जोन में जाने की कतार में हैं और 14 तथा 28 दिन की समय सीमा के बाद इस बारे में आधिकारिक घोषणा भी राज्य सरकार द्वारा कर दी जाएगी। लेकिन सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती मुंबई और झोपड़-पट्टी धारावी है, जहां कोरोना संक्रमण के मामले बहुत तेजी से बढ़ रहे हैं।
महाराष्ट्र सरकार को केंद्र से रैपिड टेस्ट की मंजूरी काफी जद्दोजहद के बाद मिली और उसके बाद टेस्ट किट पर ही सवाल खड़े हो गए और टेस्ट पर रोक लगा दी गयी। वर्ली की तरह यदि आने वाले दिनों में धारावी तथा उसके आसपास के क्षेत्रों में राज्य सरकार कोरोना का संक्रमण रोकने में सफल रही तो राज्य के स्वास्थ्य मंत्री राजेश टोपे की बात सही साबित हो सकती है।
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