loader

7 साल बाद भी नरेंद्र दाभोलकर हत्याकांड के दोषियों को सज़ा नहीं दिला पाई है सीबीआई

सुशांत सिंह आत्महत्या मामले की जाँच सीबीआई को सौंप दी गई, पर ऐसे कई मामले हैं, जिनमें वर्षों बाद भी सीबीआई जाँच किसी नतीजे तक नहीं पहुँची। ऐसा ही एक मामला है महाराष्ट्र में अंधविश्वास का विरोध करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता नरेंद्र दाभोलकर का। कोर्ट द्वारा कई बार फटकार लगाए जाने के बाद भी सीबीआई इस मामले में किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुँची है। आज से ठीक 7 साल पहले 20 अगस्त के दिन गोली मारकर दाभोलकर की हत्या कर दी  गयी थी।
सुशांत सिंह प्रकरण की जाँच सीबीआई को दिए जाने के बाद राष्ट्रवादी कांग्रेस के प्रमुख शरद पवार ने ट्वीट किया ‘आशा करता हूँ, इस जाँच का अंजाम नरेंद्र दाभोलकर हत्या मामले जैसा नहीं होगा।’
महाराष्ट्र से और खबरें

7 साल में निष्कर्ष नहीं

सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर जो गोदी मीडिया अपने स्टूडियों में जश्न मना रहा था, उसे शरद पवार के इस ट्वीट पर भी एक बार बहस कर लेनी चाहिए।
आखिर क्यों नरेंद्र दाभोलकर जैसे एक सामाजिक कार्यकर्ता की दिन दहाड़े गोली मार कर हत्या कर दी जाती है और 7 साल में पुलिस और सीबीआई दोनों जाँच के निष्कर्ष तक नहीं पहुँच पाती हैं?
दाभोलकर आखिर क्यों हमारे समाज को चुभने लगे या कुछ लोगों की आँखों में गड़ने लगे कि उन्होंने मौत देकर उन्हें शांत कर देना ठीक समझा? दाभोलकर समाज में फैला अंधविश्वास के ख़िलाफ़ ही तो लोगों में जागृति लाने का काम करते थे। तो क्या हमारे समाज में से जादू टोना, बाबाओं की लीलाएं, औघड़ क्रिया ख़त्म नहीं होनी चाहिए? एक सभ्य समाज के निर्माण में इस प्रकार की ग़लत प्रथाओं के ख़िलाफ़ लड़ने वाले व्यक्ति को गोली मार दी जाती है, यह क्या दर्शाता है?

क्या कहना है दाभोलकर के परिजनों का?

दाभोलकर की बेटी मुक्ता दाभोलकर और बेटे डॉ. हमीद दाभोलकर कहते हैं, ‘हत्या के बाद पहले 9 महीनों में महाराष्ट्र पुलिस ने अक्षमतापूर्ण जाँच की। उसके बाद हमने इस मामले को अदालत के समक्ष रखा। उच्च न्यायालय के आदेश के बाद मामला सीबीआई को सौंप दिया गया था।’ उन्होंने कहा, 

हमारे लिए यह बेहद पीड़ादायक है कि हत्या के 7 साल बाद भी सीबीआई जैसी प्रतिष्ठित एजेंसी अब तक जाँच पूरी नहीं कर पाई है।’


मुक्ता दाभोलक, नरेंद्र दाभोलकर की बेटी

नरेंद्र दाभोलकर की 20 अगस्त, 2013 को पुणे के ओंकारेश्वर पुल पर गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। वह सुबह की सैर के लिए निकले थे। सीबीआई ने इस मामले में 8 लोगों को गिरफ़्तार किया है और इनमें से 5 के ख़िलाफ़ आरोप-पत्र भी दाखिल किया है।

सनातन संस्था

इस मामले में सीबीआई ने 2016 में सनातन संस्था के सदस्य ईएनटी सर्जन और कथित प्रमुख साजिशकर्ता डॉ. वीरेंद्र तावड़े को गिरफ्तार किया था। उसके बाद अगस्त 2018 में दो शूटरों- शरद कलासकर व सचिन प्रकाशराव अंडुरे को गिरफ़्तार किया था, जिन्होंने कथित तौर पर दाभोलकर पर गोलियाँ चलाईं थीं।
मई 2019 में मुंबई के सनातन संस्था के वकील संजीव पुनालेकर व उसके सहयोगी विक्रम भावे को गिरफ़्तार किया गया था। इन पांचों के ख़िलाफ़ ही अब तक आरोप-पत्र दाखिल किया गया है। संजीव पुनालेकर फ़िलहाल ज़मानत पर हैं और अन्य चार जेल में हैं। 

दूसरी हत्याओं से जुड़े तार

सीबीआई ने तीन अन्य लोगों- अमोल काले, अमित दिगवेकर और राजेश बांगेरा को गिरफ़्तार किया है, जो कि 2017 में हुई पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या के भी अभियुक्त हैं। इन तीनों के ख़िलाफ़ अब तक चार्जशीट दाखिल नहीं की जा सकी है।
सबसे बड़ी बात यह कि हत्या में इस्तेमाल की गयी रिवाल्वर को जाँच एजेंसी आज तक ढूंढ नहीं सकी। सीबीआई ने इस बारे में कोर्ट में जो बताया, उसके अनुसार अभियुक्तों ने रिवाल्वर समुद्र में फेंक दी।

अदालत की फटकार

जाँच एजेंसियों की देरी और समन्वय को लेकर अदालत ने कई बार फटकार भी लगाई है। अदालत ने कहा था, ‘दाभोलकर की हत्या को किसी व्यक्ति विशेष की हत्या नहीं, एक विचारधारा पर सुनियोजित हमला है।’
अदालत ने कहा था, ‘दाभोलकर, गोविंद पानसरे, कलबुर्गी और गौरी लंकेश की हत्या सिलसिलेवार तरीके से की गयी है, जो यह साबित करता है कि हम विरोधी या अपने से भिन्न राय रखने वाले के विचार को सुनना नहीं चाहते।
लेकिन इसके बावजूद आज तक काले, बांगेरा और दिगवेकर के ख़िलाफ़ आरोप-पत्र दाखिल नहीं हो पाया है।

सरकारें बदलती रहीं

दूसरी ओर, इस मामले की जाँच तावड़े और काले की भूमिकाओं के आसपास रुक गई है। पिछले सात सालों में महाराष्ट्र ने अलग-अलग सरकारें देखी हैं। जब डॉ. दाभोलकर की हत्या हुई थी, राज्य में कांग्रेस-एनसीपी की सरकार थी, गोविंद पानसरे की हत्या के समय भाजपा-शिवसेना की सरकार थी। अब शिवसेना-कांग्रेस और राकांपा की सरकार है।
ये सभी दल ‘प्रगतिशील महाराष्ट्र’ या ‘फुले, शाहू, आम्बेडकर के महाराष्ट्र’ जैसे वाक्यांशों का उपयोग करना पसंद तो करते हैं, लेकिन यह पीड़ादायक है कि इन धारणाओं के लिए हुईं हत्याओं की जाँच अब भी अधूरी है।
बता दें कि वामपंथी नेता गोविंद पानसरे को 16 फरवरी, 2015 को कोल्हापुर में गोली मारी गई थी और जिसके चार दिन बाद 20 फरवरी को उनकी मौत हो गई थी। वहीं, तर्कवादी प्रोफेसर कलबुर्गी की हत्या 30 अगस्त 2015 को धारवाड़ में उनके घर पर की गई थी, जबकि वरिष्ठ पत्रकार गौरी लंकेश को 5 सितंबर 2017 की शाम बेंगलुरु स्थित उनके घर के सामने गोली मार दी गई थी। 

सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
संजय राय
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

महाराष्ट्र से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें