क्या महाराष्ट्र में शरद पवार घराने में एक बार फिर से चर्चाओं में आयी खटपट प्रदेश में नए राजनीतिक समीकरण की आहट है? क्या अजीत पवार महाविकास आघाडी की गठबंधन सरकार में असंतुष्ट हैं? अजीत पवार फिर से भारतीय जनता पार्टी के साथ मिलकर कोई समीकरण बनाने की कवायद में जुटे हैं? क्या बीजेपी एक बार फिर उन पर विश्वास कर महाराष्ट्र में सत्ता परिवर्तन का कोई नया दाव चलेगी?
ये सारे सवाल एक दूसरे से जुड़े हैं और सबके केंद्र में हैं शरद पवार के पोते और अजीत पवार के पुत्र पार्थ पवार।
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पार्थ के ट्वीट का मतलब?
पार्थ पवार ने सुशांत सिंह राजपूत आत्महत्या प्रकरण की जाँच का अधिकार सीबीआई को दिए जाने के सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले पर ‘सत्यमेव जयते’ लिखकर ट्वीट किया है। सुशांत सिंह प्रकरण की जाँच सीबीआई से कराये जाने के पार्थ पवार की मांग पर उनके दादा शरद पवार ने गत दिनों उन्हें फटकार भी लगाई थी।उसके बावजूद बुधवार को सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले पर पार्थ पवार का यह ट्वीट सबको चौंका गया!
क्या पार्थ पवार, शरद पवार की फटकार के बाद भी अपने मत पर अडिग हैं? क्या यह पार्थ पवार की अपनी राय है, उसके पीछे उनके पिता अजीत पवार का मौन समर्थन तो नहीं है?
बैकफ़ुट पर सरकार
सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद प्रदेश सरकार बैकफुट पर नज़र आ रही है और भारतीय जनता पार्टी आक्रामक है। बीजेपी सरकार को घेर रही है और गृहमंत्री से इस्तीफ़े की माँग कर रही है।इस संबंध में जो ख़बरें सूत्रों के हवाले से मिल रही हैं, उनके अनुसार अजीत पवार की नाराज़गी भी पार्थ पवार की इन ट्वीट्स का कारण हो सकती हैं। सरकार में अजीत पवार असंतुष्ट हैं इस बात की ख़बरें गाहे-बगाहे सुनायी देती रहीं हैं। इसके पीछे एक कारण यह बताया जाता है उनका मुख्यमंत्री न बन पाना।
नाराज़ हैं अजीत पवार
कांग्रेस के साथ गठबंधन में भी 2004 में ज्यादा विधायक होने के बाद भी शरद पवार द्वारा मुख्यमंत्री का पद कांग्रेस के लिए छोड़ देना उन्हें हजम नहीं हुआ था। इस बार शिवसेना के साथ मिलकर सरकार बनाने में मुख्यमंत्री का पद 5 साल के लिए शिवसेना को दे देना उन्हें नहीं जम रहा है।क्या बीजेपी अजीत पवार को मुख्यमंत्री पद देने वाली है? क्या वह अपने साथ राष्ट्रवादी कांग्रेस के इतने विधायक ले जाने में सक्षम होंगे कि प्रदेश में बीजेपी के साथ कोई नया समीकरण बन सके?
उलझ सकता है अजीत का गणित
आंकड़ों के हिसाब से देखा जाय तो अजीत पवार का गणित भी वैसे ही उलझ सकता है जैसे राजस्थान में सचिन पायलट का उलझा था। दूसरा, सरकार की स्थापना के समय जो झटका अजीत पवार ने दिया था, उसके बाद शरद पवार काफी चौकन्ने हैं। वह अधिक समय महाराष्ट्र की राजनीति पर दे रहे हैं तथा उद्धव ठाकरे और कांग्रेस के नेताओं व मंत्रियों से भी नियमित संपर्क में नज़र आते हैं। इसलिए राष्ट्रवादी कांग्रेस में बड़ी टूट के आसार वर्तमान में कम ही नज़र आ रहे हैं।पवार परिवार का विरोधाभास उस समय सामने आया जब 27 जुलाई को पार्थ पवार प्रदेश के गृहमंत्री अनिल देशमुख से मिले। पार्थ ने उन्हें एक ज्ञापन दिया था कि सुशांत सिंह प्रकरण की जाँच सीबीआई से कराई जाय। उनके इस कदम से महाविकास आघाडी में हड़कंप सा मच गया क्योंकि शिवसेना के साथ साथ कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी इस मामले को सीबीआई को देने को महाराष्ट्र और मुंबई पुलिस की काबिलियत पर सवाल खड़ा करने से जोड़ रही थी।
परिवार की लड़ाई
यह मामला अभी शांत भी नहीं हुआ था कि पार्थ पवार ने राम मंदिर के भूमि पूजन के दिन ‘जय श्रीराम’ लिखकर ट्वीट किया। यह ट्वीट भी पार्टी की विचारधारा के अनुकूल नहीं था। शरद पवार के मंदिर के भूमि पूजन पर केंद्र सरकार की तैयारियों में व्यस्तता को लेकर बयान दिया था कि ‘सरकार को मंदिर की बजाय कोरोना से कैसे लड़ा जाय उस पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए।’सुशांत सिंह पर पार्थ पवार के रुख के बारे में जब पत्रकारों ने शरद पवार से पूछा तो उन्होंने जो जवाब दिया वह काफी चौंकाने वाला था और ऐसे बयान पवार आम तौर पर नहीं दिया करते हैं। पवार ने कहा ‘हमारे पोते (पार्थ ) को हम कौड़ी की भी कीमत नहीं देते, वह अपरिपक्व है।’
क्या कहा था शरद पवार ने?
साथ ही शरद पवार ने कहा था कि वह सीबीआई के ख़िलाफ़ नहीं हैं, लेकिन मुंबई पुलिस पर उन्हें पूरा भरोसा है कि वह जाँच सही दिशा में कर रही है। पवार के इस बयान के बाद चर्चाओं का दौर शुरू हो गया और अटकलें लगाई जाने लगी कि क्या उनके परिवार में फिर से टकराव शुरू हो गया है।ख़बरें यह भी आईं कि इस मामले में सुप्रिया सुले ने पहल कर पार्थ को समझाने का काम किया है। पवार के इस बयान के बाद उनके पिता अजीत पवार, मंत्रिमंडल की बैठक अधूरी छोड़कर पुणे के लिए निकल गए थे।
पार्टी ने दी सफ़ाई
बीजेपी नेताओं के भी इस संबंध में बयान आने लगे और राष्ट्रवादी के नेताओं ने भी सफाई देनी शुरू कर दी। राष्ट्रवादी कांग्रेस के प्रवक्ता नवाब मलिक भी सफाई देने आये और उन्होंने भी पवार के बयान को दोहराया तथा कहा कि युवा नेताओं में अनुभव की कमी होती है।राम मंदिर आस्था है और पार्थ का बयान उनका व्यक्तिगत है। नवाब मलिक ने कहा कि पार्टी की नीति धर्म निरपेक्षता के साथ है यह बात पूरी तरह से स्पष्ट है।
ट्वीट के ज़रिए पलटवार?
लेकिन बात इतनी सरल नहीं दिख रही। पवार की फटकार के बाद पार्थ के इस ट्वीट को पलटवार के रूप में देखा जा रहा है। इस घटनाक्रम को पार्थ पवार के लोकसभा चुनाव से भी जोड़ कर देखा जा रहा है। पार्थ की जिद को पूरा करने के लिए शरद पवार खुद चुनाव मैदान से हट गए थे। उस समय पवार ने यह सफ़ाई दी थी कि एक ही परिवार के कितने लोगों को टिकट दिया जाय।पार्थ चुनाव हार गए ,लेकिन पवार परिवार की तीसरी पीढ़ी के सदस्य रोहित पवार विधान सभा चुनाव जीत गए। रोहित पवार ने अपने लिए बारामती और पवार घराने के प्रभाव से दूर एक विधानसभा क्षेत्र चुना था और वहाँ सक्रिय होकर फडणवीस सरकार में मंत्री रहे क़द्दावर नेता को मात दी थी।
बताया जाता है कि रोहित पवार की वजह से भी पार्थ असहज महसूस करते हैं। रोहित पवार मंत्री नहीं हैं, लेकिन वह बहुत सक्रिय नजर आते हैं। अपने विधानसभा क्षेत्र ही नहीं, विद्यार्थियों व युवाओं मुद्दों को लेकर वे सभी मंत्रियों से मिलकर मांग उठाते रहते हैं।
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