क्या महाराष्ट्र में एक बार फिर राज्यपाल की भूमिका को लेकर राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप का खेल शुरू होने वाला है? क्या मध्य प्रदेश, कर्नाटक की तरह यहां भी ‘ऑपरेशन लोटस’ को अंजाम दिए जाने की तैयारी चल रही है। वह भी ऐसे समय में जब देश कोरोना का संकट झेल रहा है और महाराष्ट्र उसका सबसे बड़ा केंद्र बन रहा है।
पिछले कई सालों से राज्यों में सत्ता बनाने-बिगाड़ने के खेल में राज्यपालों की विवादास्पद भूमिकाओं के अनेक रूप देश की जनता देख रही है। ऐसा ही कुछ खेल क्या एक बार फिर से महाराष्ट्र में देखने को मिलेगा?
महाराष्ट्र में हुआ था राजनीतिक तमाशा
विधान परिषद सदस्य बन पाएंगे ठाकरे?
इस तमाशे में राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी की भूमिका पर तमाम सवाल भी खड़े हुए थे। अब फिर प्रदेश की सत्ता को लेकर एक अहम फ़ैसला राज्यपाल के हाथों में है और वह है उद्धव ठाकरे को विधान परिषद का सदस्य मनोनीत किया जाना। यह फ़ैसला राज्यपाल के स्व-विवेक के दायरे में आता है और जब भी बात स्व-विवेक की होती है तो यह स्पष्ट रूप से देखने को मिलता है कि राज्यपाल केंद्र की तत्कालीन सरकारों के इशारे पर अपने निर्णय देते रहे हैं।
सवाल यही है कि क्या राज्यपाल कोश्यारी मंत्रिमंडल की वह सिफारिश जिसमें उद्धव ठाकरे को विधान परिषद का सदस्य मनोनीत करने की बात कही गयी है, उसे आसानी से स्वीकार कर लेंगे? या इस मामले में भी वह केंद्र से मिलने वाले संकेतों के मुताबिक़ फ़ैसला लेंगे। यह प्रस्ताव राज्यपाल को भेजे हुए काफी दिन बीत गए हैं लेकिन अभी तक उन्होंने कोई फ़ैसला नहीं लिया है।
बीजेपी ने दी अदालत में चुनौती
महाराष्ट्र में चर्चाओं का दौर गर्म है और ऐसे में एक बीजेपी नेता ने इस मामले को अदालत में चुनौती तक दे डाली है और मंत्रिमंडल के प्रस्ताव को ही नियम विरुद्ध बताते हुए इसे खारिज करने की मांग की है। इस दौरान देवेंद्र फडणवीस की राजभवन में आवाजाही भी अनेक चर्चाओं को जन्म देने लगी हैं। ऐसे मौक़े पर शिवसेना सांसद संजय राउत ने बड़ा आरोप लगाया है।
संजय राउत ने चेताया
राउत ने ट्वीट कर कहा, ‘राजभवन षड्यंत्र का केंद्र नहीं बने, याद रखिये इतिहास उन्हें कभी नहीं छोड़ता जो असंवैधानिक काम करते हैं।’ राउत ने ट्वीट में ठाकुर रामलाल का जिक्र किया और कहा कि समझने वालों के लिए इशारा काफी है। ठाकुर रामलाल 1983-84 के बीच आंध्र प्रदेश के राज्यपाल रहे थे। उनके एक फ़ैसले के बाद वहां की राजनीति में तब भूचाल आ गया था, जब उन्होंने बहुमत वाली एन.टी. रामा राव की सरकार को बर्ख़ास्त कर दिया था।
तब एन.टी. रामा राव हार्ट सर्जरी के लिए अमेरिका गए हुए थे। इस दौरान राज्यपाल ने सरकार के वित्त मंत्री एन. भास्कर राव को मुख्यमंत्री नियुक्त कर दिया। अमेरिका से लौटने के बाद एन.टी. रामा राव ने राज्यपाल के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल दिया और इसके बाद केंद्र सरकार को शंकर दयाल शर्मा को राज्यपाल बनाना पड़ा। नए राज्यपाल ने एक बार फिर आंध्र प्रदेश की सत्ता एन.टी. रामा राव के हाथों में सौंप दी थी।
दरअसल, महाराष्ट्र में 24 अप्रैल को विधान परिषद की खाली हो रही 9 सीटों के चुनाव होने थे। लेकिन कोरोना वायरस के संक्रमण से पैदा हुए संकट के चलते स्थितियां पूरी तरह बदल गई हैं।
देशव्यापी लॉकडाउन के चलते चुनाव आयोग ने चुनाव टाल दिए। ऐसे में फिलहाल ठाकरे विधान परिषद के सदस्य नहीं बन सकते तो राज्य मंत्रिमंडल ने एक प्रस्ताव पारित कर राज्यपाल कोटे की दो सीटों में से एक सीट पर उद्धव ठाकरे को विधान परिषद का सदस्य मनोनीत किए जाने की सिफारिश राज्यपाल कोश्यारी को भेज दी। लेकिन कोश्यारी ने अब तक इस पर फ़ैसला नहीं लिया है।
अगर राज्यपाल ने सिफारिश को स्वीकार नहीं किया तो ठाकरे को इस्तीफ़ा देना होगा और उनका इस्तीफ़ा पूरे मंत्रिपरिषद का इस्तीफ़ा माना जाएगा। ऐसी स्थिति में अगर राज्य में कोई नई राजनीतिक जोड़-तोड़ नहीं होती है और ठाकरे की अगुवाई वाला मौजूदा गठबंधन अटूट रहता है तो वे अपने मंत्रिपरिषद के साथ दोबारा मुख्यमंत्री पद की शपथ ले सकेंगे।
पवार ने उठाया था सवाल
ऐसा होने पर विधानमंडल का सदस्य बनने के लिए उन्हें फिर से छह महीने का समय मिल जाएगा। लेकिन महाराष्ट्र में राज्यपाल और राज्य सरकार के रिश्ते कैसे हैं, इस बात का अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि कुछ दिन पहले जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सर्वदलीय नेताओं से कोरोना के मुद्दे पर वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये बात कर रहे थे तो उस समय शरद पवार ने राज्यपाल की भूमिका पर सवाल उठाया था।
पवार ने कहा था कि राज्यपाल स्वयं अधिकारियों से संपर्क कर रहे हैं जो कि संवैधानिक अधिकारों के दायरे का उल्लंघन है। पवार के बाद राज्य सरकार के कई मंत्रियों ने भी राज्यपाल की भूमिका पर सवाल खड़े किये हैं कि वे प्रशासनिक अधिकारियों से सीधे जानकारियां मांग रहे हैं और कहा है कि यह संवैधानिक दायरे के हिसाब से ठीक नहीं है।
अपनी राय बतायें