कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के कोरोना संक्रमण से निपटने को लेकर व्यक्त किए गए विचारों की शिवसेना के मुखपत्र सामना में जमकर प्रशंसा की गयी है। राहुल गांधी ने कुछ दिन पहले कोरोना संक्रमण को लेकर देश के पत्रकारों से वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये बातचीत की थी।
सामना ने इस पत्रकार वार्ता को ‘‘राहुल गांधी का चिंतन शिविर’’ शीर्षक दिया है और कहा है कि ‘‘गांधी विचार’’ देश भर में पहुंचना चाहिए।
सामना में लिखा गया है कि कोरोना मामले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी के बीच सीधे चर्चा होनी चाहिए। यह पहली बार नहीं है जब सामना ने अपने संपादकीय में राहुल गांधी को सराहा है। महाराष्ट्र में शिवसेना जब भारतीय जनता पार्टी के साथ सत्ता में हुआ करती थी, उस समय भी अर्थव्यवस्था और बेरोज़गारी पर उठाये गए राहुल गांधी के सवालों को सराहते हुए सामना ने उनकी सराहना की थी।
इस बार सराहने का जो आधार है, वह पत्रकारों के सवालों के जवाब में राहुल गांधी के दिये गये जवाब हैं। राहुल ने लॉकडाउन से देश के निकलने के तरीक़े पर भी बात की और कहा कि इसे कोरोना पर विजय की घोषणा के साथ ख़त्म नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि बिना जांच और इलाज के वायरस को ख़त्म नहीं किया जा सकता।
राहुल ने कहा था, ‘जब लोग घरों से बाहर निकलेंगे तो वायरस फिर से फैलेगा और यह ज्यादा से ज्यादा लोगों को अपना शिकार बना सकता है। इसलिए अधिक से अधिक लोगों की जांच कर लॉकडाउन खोलने से पहले ही इस वायरस को मात देनी होगी।’
शिवसेना ने सामना में कहा है कि कोरोना के संकट के समय में विरोधी पक्ष की भूमिका कैसी होनी चाहिए, राहुल गांधी इसका उत्कृष्ट उदाहरण हैं। संपादकीय में कहा गया है कि राहुल गांधी और मोदी के बीच इस मुद्दे पर प्रत्यक्ष संवाद या चर्चा होनी चाहिए। दरअसल, राहुल गांधी ने इस पत्रकार वार्ता में उन सभी मुद्दों पर अपने विचार रखे हैं, जो पिछले कुछ दिनों से चर्चा में तो हैं लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तीन बार राष्ट्र के नाम दिए गए संदेश में इनके जवाब नहीं मिले हैं।
राहुल गांधी ने कोरोना से निपटने को लेकर मोदी सरकार के कामकाज पर हल्ला बोलने के बजाय उन्हें वर्तमान हालात का सामना करने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि हम सकारात्मक सुझाव देने के लिए आये हैं न कि केंद्र सरकार के कामकाज पर टीका-टिप्पणी करने के लिए।
उन्होंने सरकार को ग़रीबों और मरीजों के लिए अनाज भण्डार खोलने की सलाह दी और कहा कि अब तक घोषणाएं हो रही हैं लेकिन खाना मजदूरों और ग़रीबों तक नहीं पहुंच पा रहा है जबकि देश के गोदामों में क्षमता से ज्यादा अनाज भरा हुआ है।
सबसे बड़ी बात राहुल गांधी ने जो कही वह यह थी कि कोरोना से लड़ने के लिए जिला स्तर और राज्य स्तर को सक्षम बनाना होगा। दरअसल, कोरोना के ख़िलाफ़ इस संघर्ष में यह बात बार-बार नज़र आ रही है कि राज्य सरकारों को केंद्र से उतनी मदद नहीं मिल पा रही है, जितनी अपेक्षित है।
राज्य सरकारें बार-बार केंद्र से सिर्फ आर्थिक सहायता ही नहीं जीएसटी के अपने हिस्से को समय पर देने की मांग भी कर रही हैं। महाराष्ट्र इसका सबसे बड़ा उदाहरण है, जो केंद्र सरकार से अपने हिस्से के 17 हजार करोड़ रुपये मांग रहा है लेकिन राज्य को यह रकम मिलने में देरी हो रही है।
पत्रकार वार्ता के दौरान राहुल गांधी से अनेक पत्रकारों ने केंद्र सरकार के कामकाज के बारे में सवाल पूछे लेकिन उन्होंने हर बार इस मुद्दे पर जवाब इस लड़ाई को कैसे लड़ा जाये और कोरोना के बाद देश में बेरोज़गारी और अर्थव्यवस्था में गिरावट का दौर शुरू होगा, इसी पर केंद्रित रखा।
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