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अबू आज़मी ने औरंगज़ेब की तारीफ़ की तो सियासी तूफ़ान क्यों?

महाराष्ट्र में सपा नेता अबू आज़मी के मुगल शासक औरंगज़ेब की तारीफ़ करने वाले बयान ने सियासी तूफ़ान खड़ा कर दिया है। उनके ख़िलाफ़ मुंबई और ठाणे में मुक़दमे दर्ज किए गए हैं। शिवसेना और भारतीय जनता पार्टी ने इसे बड़ा मुद्दा बना दिया है। लेकिन सवाल यह है कि अबू आज़मी के ख़िलाफ़ मुक़दमा क्यों दर्ज हुआ? इसके पीछे क्या राजनीतिक वजहें हैं, और शिवसेना-बीजेपी इसे क्यों भुनाने की कोशिश कर रही हैं?

अबू आज़मी ने सोमवार को एक बयान में कहा था कि औरंगज़ेब कोई क्रूर शासक नहीं था, बल्कि एक अच्छा प्रशासक था। उन्होंने दावा किया कि औरंगज़ेब के शासन में भारत 'सोने की चिड़िया' था, उसकी जीडीपी 24% थी, और उसने कई मंदिर बनवाए थे। इस बयान के बाद शिवसेना और बीजेपी ने इसे हिंदू भावनाओं के ख़िलाफ़ बताते हुए तीखी प्रतिक्रिया दी। 

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मुंबई के मरीन ड्राइव पुलिस स्टेशन में शिवसेना प्रवक्ता किरण पावसकर ने शिकायत दर्ज कराई। इसमें अबू आज़मी के ख़िलाफ़ देशद्रोह का मामला चलाने की मांग की गई। वहीं, ठाणे के वागले एस्टेट पुलिस स्टेशन में शिवसेना सांसद नरेश म्हास्के ने भारतीय न्याय संहिता की धारा 299 यानी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाना, 302, और 356 के तहत मुक़दमा दर्ज कराया। पुलिस ने दोनों शिकायतों पर कार्रवाई शुरू कर दी है। एफ़आईआर दर्ज होने के बाद अबू आजमी ने कहा है कि उनके बयान को तोड़ मरोड़कर पेश किया गया।

महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने कहा, 'औरंगज़ेब ने छत्रपति संभाजी महाराज को 40 दिन तक प्रताड़ित किया। उसकी तारीफ़ करना महापाप है। अबू आज़मी के ख़िलाफ़ देशद्रोह का केस दर्ज होना चाहिए।' यहाँ तक कि विधानसभा में भी उनकी निलंबन की मांग उठी।

क्या है राजनीतिक वजह?

अबू आज़मी का बयान ऐसे समय में आया है, जब महाराष्ट्र में सत्तारूढ़ महायुति गठबंधन अपनी हिंदुत्ववादी छवि को मज़बूत करने की कोशिश कर रहा है। औरंगज़ेब को लेकर इतिहास में हमेशा से विवाद रहा है। कुछ लोग उसे कट्टर और हिंदू-विरोधी शासक मानते हैं, तो कुछ उसे कुशल प्रशासक बताते हैं। 

सपा नेता अबू आज़मी का बयान इस संवेदनशील मुद्दे को फिर से हवा देने वाला साबित हुआ।

वोट बैंक की सियासत

महाराष्ट्र में हिंदुत्व और मराठा गौरव का मुद्दा हमेशा से वोटरों को प्रभावित करता रहा है। शिवाजी और संभाजी महाराज यहाँ के लोगों के लिए आस्था और सम्मान के प्रतीक हैं। ऐसे में औरंगज़ेब की तारीफ़ को उनके अपमान से जोड़कर शिवसेना-बीजेपी इसे भावनात्मक मुद्दा बना रही हैं, ताकि हिंदू वोटरों को एकजुट किया जा सके।

विपक्ष पर हमला

सपा भले ही महाराष्ट्र में बड़ी ताक़त न हो, लेकिन वह विपक्षी गठबंधन एमवीए की सहयोगी है। आज़मी के बयान को मुद्दा बनाकर बीजेपी-शिवसेना विपक्ष को 'मुगल समर्थक' और 'हिंदू विरोधी' बताने की कोशिश कर रही हैं। यह 2024 लोकसभा चुनाव के बाद और 2026 विधानसभा चुनाव से पहले एक रणनीति हो सकती है।

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फिल्म 'छावा' का असर

हाल ही में रिलीज़ हुई फ़िल्म 'छावा' ने औरंगज़ेब के ख़िलाफ़ भावनाओं को फिर से भड़काया है। यह फ़िल्म संभाजी महाराज की वीरता पर आधारित है। आज़मी का बयान इस संदर्भ में और विवादास्पद बन गया, जिसे सत्तारूढ़ दल भुनाने में जुट गए।

छावा फिल्म पर यह भी आरोप है कि इसमें वर्तमान राष्ट्रवादी भावनाओं को भुनाने की कोशिश की गई है, जिससे यह पूरी तरह ऐतिहासिक न होकर प्रोपगेंडा अधिक बन गई है। फ़िल्म को लेकर कई और विवाद भी सामने आ रहे हैं। 

शिवसेना और बीजेपी इसे मुद्दा क्यों बना रहे हैं?

शिवसेना और बीजेपी के लिए यह मुद्दा कई मायनों में फायदेमंद है-

  • हिंदुत्व की राजनीति: दोनों दल अपनी हिंदुत्ववादी पहचान को मज़बूत करना चाहते हैं। औरंगज़ेब का नाम लेते ही धार्मिक ध्रुवीकरण की संभावना बढ़ जाती है, जो इनके कोर वोटरों को लामबंद कर सकती है।
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  • मराठा गौरव का दांव: शिवसेना (शिंदे गुट) खास तौर पर मराठा समुदाय के बीच अपनी पैठ बढ़ाने की कोशिश में है। संभाजी महाराज का अपमान करने वाले किसी भी बयान को मुद्दा बनाकर वह खुद को मराठा हितों का रक्षक साबित करना चाहती है।

  • विपक्ष को घेरना: यह मुद्दा उठाकर बीजेपी-शिवसेना विपक्षी दलों पर हमला बोल रही हैं। उद्धव ठाकरे की शिवसेना ने भी आज़मी की आलोचना की है, लेकिन सत्तारूढ़ दल इसे एमवीए की कमजोरी के तौर पर पेश कर रहे हैं।

यह पूरा मामला सिर्फ़ अबू आज़मी के बयान से कहीं ज़्यादा है। यह महाराष्ट्र की बदलती राजनीतिक जमीन पर सत्ता और विपक्ष के बीच की जंग का हिस्सा है।

सत्तारूढ़ गठबंधन के लिए यह एक सुनहरा मौक़ा है, जिससे वे अपनी हिंदुत्ववादी छवि को चमकाने के साथ-साथ विपक्ष को कठघरे में खड़ा कर सकें। दूसरी ओर, आज़मी का बयान सपा के लिए मुश्किलें बढ़ा सकता है, क्योंकि यह उसे मुस्लिम तुष्टिकरण के आरोपों में फंसा सकता है। कुछ जानकारों का मानना है कि यह विवाद लंबे समय तक नहीं टिकेगा, क्योंकि जनता के सामने रोजगार, महंगाई और विकास जैसे मुद्दे अभी भी ज्यादा अहम हैं। फिर भी, मौजूदा माहौल में यह सियासी ड्रामा विधानसभा में हंगामे और सड़कों पर प्रदर्शन के साथ कुछ दिनों तक सुर्खियों में बना रह सकता है।

अबू आज़मी ने अपने बयान पर सफाई दी है कि उनके शब्दों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया, लेकिन सवाल यह है कि क्या यह सफ़ाई उन्हें इस राजनीतिक आंधी से बचा पाएगी? या फिर शिवसेना-बीजेपी इसे और बड़ा हथियार बनाएंगी? 

(इस रिपोर्ट का संपादन अमित कुमार सिंह ने किया है।)

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