मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने ‘मास्टर स्ट्रोक’ खेला है। आलाकमान और दिल्ली द्वारा सुनाया जाने वाला ‘फैसला’ नाथ ने भोपाल में ही करवा दिया है। नाथ अगले साल होने वाले राज्य विधानसभा चुनाव में एक बार फिर कांग्रेस की ओर से सीएम पद का चेहरा होंगे।
कमल नाथ ने सोमवार को मध्य प्रदेश कांग्रेस की बैठक बुलाई। बैठक को लेकर कई तरह से कयास लगाये जा रहे थे। यह सुगबुगाहट जोरों पर थी कि इस बैठक में राज्य विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष से जुड़ा दायित्व छोड़ने का एलान कमल नाथ कर देंगे।
दरअसल नाथ के पास नेता प्रतिपक्ष के अलावा मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष पद का दायित्व भी है। काफी वक्त से ‘एक नेता-एक पद’ की बात दबे सुरों में प्रदेश कांग्रेस में हो रही है।
तीन दिन पहले ऐसे ही एक सवाल पर कमल नाथ भड़क गए थे। उन्होंने झल्लाते हुए मीडिया से कहा था कि वे पद के पीछे नहीं दौड़ते। मध्य प्रदेश में पीसीसी चीफ बनाने की मांग भी उन्होंने नहीं की थी। आलाकमान ने 2018 के विधानसभा चुनाव के पहले इस पद को संभालने को कहा था और इसी वजह से दायित्व को संभाला था।
नाथ ने यह भी कहा था कि आलाकमान कहेगा, तो बिना देर किए वे पद छोड़ देंगे।
मध्य प्रदेश में कमल नाथ के बाद कांग्रेस में कोई दूसरा बड़ा क्षत्रप है, तो - वे पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह हैं। बड़ी संख्या में ठाकुर नेताओं के अलावा अन्य जातियों के नेता भी दिग्विजय सिंह का पूरा सपोर्ट करते हैं।
कमल नाथ की कार्यशैली और फैसलों से अरुण यादव, अजय सिंह राहुल, सुरेश पचौरी और कांतिलाल भूरिया जैसे दिग्गज नेताओं के कथित तौर पर खफ़ा होने संबंधी खबरों ने कमल नाथ द्वारा बुलाई गई बैठक के महत्व को बढ़ा दिया था।
पार्टीजनों के अलावा प्रेक्षकों, और मीडिया की नज़र भी सोमवार शाम को नाथ के निवास पर हुई इस महत्वपूर्ण बैठक पर टिकी हुई थी।
भानोट ने बताया कि हर 15 दिनों में प्रदेश कांग्रेस की बैठक बुलाये जाने और विभिन्न विषयों पर विमर्श करने संबंधी निर्णय बैठक में लिया गया है।
‘एक नेता, दो पद’ के सवाल का भानोट ने कोई जवाब नहीं दिया। उन्होंने कहा, ‘बैठक केवल और केवल 2023 विधानसभा चुनावों तक ही सीमित रही।’
अरुण यादव के हाथों पलटवाई बाजी!
मध्य प्रदेश कांग्रेस के उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार कमल नाथ ने दिल्ली का निर्णय भोपाल में कराये जाने के लिए पूर्व केन्द्रीय मंत्री और पीसीसी चीफ रहे अरुण यादव का ‘सहारा’ लिया।
सूत्रों ने बताया कि करीब डेढ़ घंटे चली बैठक का आगाज अरुण यादव ने किया। असंतुष्ट धड़ा इससे खुश दिखा। वह मानकर चल रहा था, यादव वही बात करेंगे जो उनके (असंतुष्टों के) दिलों में है। असंतुष्ट इस फिराक़ में बताये गये थे कि अरुण यादव जैसे ही नाथ विरोधी कोई बात कहेंगे वैसे ही असंतुष्ट भी फट पड़ेंगे। मगर ऐसा कुछ भी नहीं हो पाया।
असल में अरुण यादव ने मध्य प्रदेश की शिवराज सरकार की तमाम कमियां-खामियां गिनाने के साथ भाजपा सरकार के खिलाफ़ माहौल बनाने के लिए मुद्दे गिनाए। अपनी बात रखते हुए अरुण यादव ने जब कहा, ‘मेरी राय है कि आने वाला विधानसभा का चुनाव कमल नाथ की अगुवाई में ही लड़ा जाना चाहिए। मुख्यमंत्री पद का चेहरा कमल नाथ को ही बनाया चाहिए, तो कथित असंतुष्ट खेमे के ज्यादातर नेताओं के चेहरों पर हवाइयां उड़ गईं।
यादव के प्रस्ताव (कमल नाथ की अगुवाई और उनके चेहरे को आगे करके चुनाव लड़ा जाये) का एकसुर में (बैठक में मौजूद अधिकांश नेताओं और पदाधिकारियों ने) समर्थन किया। समर्थन मिलते ही फैसला ले लिया गया कि मध्य प्रदेश विधानसभा का आने वाला चुनाव कमल नाथ को मुख्यमंत्री प्रोजेक्ट करके ही लड़ा जायेगा।
गुस्स़े में नज़र आये दिग्विजय सिंह!
सूत्रों के अनुसार बैठक में पहुंचे दिग्विजय सिंह काफी तमतमाये हुए थे। पिछले कुछ वक्त से उनकी नाथ के साथ कथित तौर पर पटरी नहीं बैठ रही है। अनबन चल रही है। पिछले दिनों शिवराज सरकार के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान दिग्विजय सिंह और नाथ के बीच गर्मागर्म बहस का वीडियो वायरल भी हुआ था।
बताया गया है कि दिग्विजय सिंह अपने सिपाहसालार, पूर्व मंत्री और वरिष्ठ विधायक डॉ. गोविंद सिंह को विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी दिलाना चाहते हैं। इस एक मसले के अलावा भी कई ऐसे मुद्दे हैं जिन पर अभी से ‘पूरी पारदर्शिता’ रखे जाने की जरूरत दिग्विजय सिंह बतला रहे हैं।
कमल नाथ बहुत ज्यादा भाव दिग्विजय सिंह को नहीं दे रहे हैं, इसी वजह से इन दोनों क्षत्रपों के बीच अनबन बढ़ती ही जा रही है।
कमल नाथ ने चौंकाया था!
कमल नाथ ने रविवार को पार्टीजनों, प्रेक्षकों और मीडिया को चौंकाया था। चैत्र नवरात्रि के दूसरे दिन 3 अप्रैल को कमल नाथ अपने चौपर से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के गृह जिले सीहोर में स्थित प्रसिद्ध सलकनपुर देवी मंदिर के दर्शन के लिए पहुंचे थे। नाथ अपने साथ अरुण यादव को भी ले गये थे। यादव को साथ देखकर नाथ समर्थक कई कांग्रेसी भी भौंचक्के रह गये थे।
सबको साधने की नीति!
कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि विधानसभा चुनाव 2023 के मद्देनज़र कमल नाथ किसी भी नेता और पार्टीजन को बेवजह नाराज़ करने के मूड में नहीं हैं। वे सबको साथ लेकर चलने की रणनीति पर आगे बढ़ना चाह रहे हैं। इस रणनीति के तहत भाजपा के खिलाफ चुनावी शंखनाद का ब्ल्यू प्रिंट भी नाथ ने बना लिया है। आने वाले दो-तीन दिनों में कुछ बड़ी घोषणाएं, और फैसले नाथ द्वारा लिये जाने के संकेत सूत्रों ने दिए हैं।
सूत्रों के मुताबिक़, कमल नाथ केवल पीसीसी चीफ रहेंगे, नेता प्रतिपक्ष का पद वे जल्दी छोड़ देंगे। कमल नाथ, दिग्विजय सिंह समर्थक डॉ.गोविंद सिंह को नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी सौंप सकते हैं।
हालांकि नेता प्रतिपक्ष पद पर नाथ के ही बेहद करीबी आदिवासी नेता बाला बच्चन, अनुसूचित जाति वर्ग से आने वाले सज्जन सिंह वर्मा और विजय लक्ष्मी साधो सहित कई नेताओं की निगाहें भी टिकी हुई हैं।
लॉटरी किसकी खुलेगी? यह जल्द साफ हो जायेगा, ऐसा सूत्रों ने बताया।
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