मध्य प्रदेश के इंदौर स्थित शासकीय लॉ कॉलेज में विवादास्पद किताब मामले का ‘पटाक्षेप’ हो गया है। जांच के बाद राज्य के उच्च शिक्षा विभाग ने कॉलेज के प्रिसिंपल और एक सहायक प्राध्यापक को सस्पेंड करने के साथ तीन विजिटिंग फैक्ल्टी को बर्खास्त कर दिया है। बर्खास्त तीनों विजिटिंग फैकल्टी पर प्रदेश के सरकारी कॉलेजों में लाइफ टाइम प्रतिबंध लगा दिया गया है।
बता दें, इंदौर लॉ कॉलेज की लाइब्रेरी में लेखक डॉक्टर फरहत खान की किताब ‘सामूहिक हिंसा एवं दाण्डिक न्याय पद्धति’ रखे जाने को लेकर विवाद हुआ था। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने इस मामले को उठाया था। उसकी अगुवाई में कॉलेज के छात्रों ने दो दिसंबर को प्रदर्शन किया था।
एबीवीपी का आरोप था कॉलेज के प्रिंसिपल और प्रोफेसर धार्मिक कट्टरता फैला रहे हैं। पुलिस में शिकायत करते हुए संबंधितों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की थी। विवाद सामने आने के बाद पुलिस ने प्रिसिंपल और सहायक प्राध्यापक सहित आधा दर्जन शिक्षकों के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया था। उच्च शिक्षा विभाग ने पूरे मामले पर जांच बैठाई थी।
उच्च शिक्षा विभाग द्वारा गठित सात सदस्यीय समिति ने तीनों दिनों में जांच पूरी करते हुए सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंप दी है। रिपोर्ट आने के बाद उच्च शिक्षा मंत्री डॉ. मोहन यादव ने प्राचार्य डॉ. इनामुर्ररहमान और सहायक प्राध्यापक डॉ. मिर्जा मोजिज बेग को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया है।
इसके अलावा विजिटिंग फैकल्टी अमीक खोखर, सोहेल वाणी और डॉ. फिरोज अहमद मीर को बर्खास्त किया गया है। विभाग ने आदेश दिया है कि ये तीनों फैकल्टी पूरे जीवनकाल में राज्य के किसी भी शासकीय कॉलेज में सेवाएं नहीं दे सकेंगे।
रिपोर्ट में सनसनीखेज खुलासे!
जांच कमेटी ने छात्रों और फैकल्टी के बयानों के साथ अन्य छानबीन के आधार पर अपनी रिपोर्ट में खुलासा किया है कि धारा 370 हटने के बाद 5 अगस्त के दिन को लेकर फैकल्टियों ने ‘ब्लैक डे’ मनाने की बात कही। इस धारा को लेकर अन्य विवादित बातें किये जाने संबंधी तथ्य भी कमेटी ने मिलने की बात कही है।
जांच कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार नई शिक्षा नीति के विरोध में कॉलेज में हस्ताक्षर अभियान चलाया गया। विद्यार्थियों को पब में ले जाने संबंधी वीडियो संदेश भी कमेटी के हाथ लगे हैं। इन संदेशों में गेस्ट फैकल्टी लिप्त मिली।
प्रिंसिपल को दोषी माना गया है
जांच कमेटी ने प्रिंसिपल डॉ. इनामुर्ररहमान को दोषी पाया है। रिपोर्ट में कहा गया है, ‘किताब के कंटेट सामाजिक समरसता और सौहार्द बिगाड़ने वाले हैं।’ यद्यपि यह किताब 2014 के तत्कालीन प्रशासन (डॉ. इनामुर्रहमान तब नहीं थे) ने खरीदी थी लेकिन उस वक्त के प्रशासन को जांच कमेटी ने ‘बख्श’ दिया है।
इस मामले को लेकर एफआईआर होने बाद प्रिंसिपल इनामुर्ररहमान ने पुलिस को दी गई अपनी लिखित सफाई में कहा था, ‘किताब साल 2014 में खरीदी गई और वे प्रिंसिपल 2019 में बने।’
इधर रिपोर्ट में कहा गया है, ‘इस किताब को लेकर साल 2019 में भी विवाद उठा था। साल 2021 में किताब की लेखक ने माफी मांग ली थी, लेकिन कॉलेज प्रबंधन जागृत नहीं हुआ। विवादित किताब को लाइब्रेरी से हटाया नहीं गया। कोई कार्रवाई नहीं की। इस मान से मौजूदा प्रिंसिपल दोषी हैं।’
न्यायिक जांच हो: एबीवीपी
सरकार की कार्रवाई से एबीवीपी संतुष्ट नही है। संगठन के मालवा प्रांत के मंत्री धनंजय सिंह चौहान चाहते हैं कि पूरे मामले की न्यायिक जांच करवाई जाये। वे यह भी मांग कर रहे हैं कि किताब मध्यप्रदेश के जिस भी कॉलेज में हो जब्त की जाये। कहीं भी इस किताब को पढ़ाने की छूट नहीं दी जाये।
किताब के जिन तथ्यों को लेकर विवाद है, उनमें कुछ प्रमुख बातें इस तरह से हैं:-
पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान, बर्मा में सांप्रदायिकता का संघर्ष नहीं है। शासन तो वहां भी सैकड़ों वर्ष अंग्रेजों का रहा था और अमेरिका का हस्तक्षेप आज भी इनकी सत्ता पर रहता है। आज सारे हिंदू संगठन एक स्वर से मुसलमानों के कश्मीर में धारा 370 लगाकर विशेष सुविधाएं देने का विरोध यह कहकर करते हैं कि कश्मीर में उग्रवाद धारा 370 के कारण ही पनप रहा है। यदि इनसे पूछा जाए कि पंजाब में उग्रवाद क्यों है? बिहार, उत्तर प्रदेश, असम में जहां हिंदू उग्रवाद है, वहां भी धारा 370 नहीं लगी है। हिंदू कहते हैं कि समान नागरिक संहिता की बात कहकर हम मुसलमानों के कानून में सुधार करना चाहते हैं, जो नारी के विरुद्ध है। यदि उनसे पूछा जाए कि आप अपने व्यक्तिगत कानून को और भी शास्त्रों के कानून को क्यों लागू करना चाहते हैं, जो शूद्र स्त्री और गैर हिंदुओं के विरुद्ध है। पहले हिंदुओं को अपने सिविल कोड में सुधार की बात करनी चाहिए।
उपरोक्त संक्षिप्त विवरण में हमने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उसकी परिवार की संस्थाओं के क्रियाकलाप पर प्रकाश डाला। हिंदुओं के जितने भी सामाजिक, राजनीतिक और धार्मिक संगठन बने हैं। उनका एकमात्र उद्देश्य देश के मुसलमानों का विनाश करना है और शूद्रों को दास बनाना है। हिंदू पद पादशाही कायम करना है और हिंदू राजतंत्र का शासन वापस लाकर ब्राह्मण को पृथ्वी का देवता बनाकर पूज्य बनाना है।
किताब में हिंदू संगठन पर भी टिप्पणी
डॉ. फरहत खान की इस किताब में विश्व हिंदू परिषद को लेकर लिखा गया है, ‘विश्व हिंदू परिषद जैसे संगठन हिंदू बहुमत का राज्य स्थापित करना चाहते हैं। दूसरे समुदायों को शक्तिहीन बनाकर गुलाम बनाना चाहते हैं। पंजाब में सिखों के खिलाफ शिवसेना जैसे त्रिशूलधारी नए संगठनों ने मोर्चा बना लिया है। अपनी सांप्रदायिक गतिविधियों को मंदिरों और अन्य धार्मिक स्थलों से संचालित करने लगे हैं। शिवसेना हिंदू राष्ट्र का नारा दे रही है, जो पूरे सिख समाज के विरुद्ध है। अब शिवसेना के नौजवान सिखों के घरों में डकैती और अनजानी घटनाएं कर रहे हैं। यहां तक कि निर्दाेष सिखों की हत्याएं भी कर रहे हैं। हिंदू शिव सेना के लोगों ने बैंक में डकैतियां भी डाली हैं।
पंजाब में जो कुछ हो रहा है, पंजाबी और उर्दू अखबार ही सही लिखते हैं और हिंदी अखबार झूठ। पंजाब का सच आज यह है कि मुख्य आतंकवादी हिंदू हैं और सिख प्रतिक्रिया में आतंकवादी बन रहा है।
फरहत खान गिरफ्तार
विवाद खड़ा होने और एफआईआर के बाद डॉ. फरहत खान लापता हो गई थीं। पुलिस ने उन्हें पुणे से गत दिवस गिरफ्तार कर लिया है। स्वास्थ्य कारणों से उन्हें जमानत मिल जाने की भी सूचना है।
मध्य प्रदेश की सरकार ने तमाम कार्रवाई के साथ विवादित किताब और फरहत खान की पीएचडी के कंटेट की जांच भी आरंभ कराई है।
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