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बड़े पर्दे के सहारे लोकसभा का चुनाव लड़ने की तैयारी

जैसे-जैसे लोकसभा चुनाव नज़दीक आ रहे हैं, सिनेमा के बड़े पर्दे पर राजनीतिक जंग तेज़ होती जा रही है। अभी तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि चमकाने वाली एक के बाद एक कई फ़िल्में रिलीज़ हुई हैं। अब मोदी को एक नाकाम प्रधानमंत्री साबित करने वाली फ़िल्म भी जल्द ही बड़े पर्दे पर दिखाई देगी। 

'चौकीदार चोर है?' शीर्षक से बन रही इस फ़िल्म के पोस्टर रिलीज़ होने के मौके़ पर शुक्रवार को जमकर हंगामा हुआ। बीजेपी समर्थकों ने पोस्टर रिलीज़ होने के दौरान ही प्रेस क्लब में घुसकर फ़िल्म का पोस्टर फाड़ दिया और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हक़ में जमकर नारे लगाए। बीजेपी समर्थकों के विरोध में वहाँ मौजूद कुछ लोगों ने नरेंद्र मोदी चोर है के भी नारे लगाए। 

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हम सच्चाई सामने लाएँगे

फ़िल्म के निर्देशक शादाब चौहान ने इस मौके़ पर कहा,  'देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है। फ़िल्मकार होने के नाते देश में जो कुछ हो रहा है उसे बड़े पर्दे पर लाना हमारी ज़िम्मेदारी है और हमने यह ज़िम्मेदारी निभाई है। अगर कुछ लोगों को इस फ़िल्म पर एतराज़ है तो उन्हें विरोध करने का हक़ है। वे विरोध करते रहें, हम सच्चाई सामने लाकर रहेंगे।' नीचे देखें इस दौैरान हुए हंगामे का वीडियो - 

11 फ़रवरी को आएगा पहला ट्रेलर  

फ़िल्म का आधिकारिक टीज़र 4 फरवरी को रिलीज़ होगा और पहला ट्रेलर 11 फ़रवरी को आएगा। शादाब के मुताबिक़ यह फ़िल्म पिछले 6 महीने से बन रही थी। उनकी योजना इस फ़िल्म को लोकसभा चुनाव से पहले रिलीज़ करने की है। चौहान के मुताबिक़, उनकी यह फ़िल्म मोदी सरकार के विकास के बड़े-बड़े दावों की पोल खोलेगी और देश की असली तसवीर जनता के सामने लाएगी।

राजनीति से कोई लेना-देना नहीं

जब फ़िल्म के निर्देशक से पूछा गया कि क्या इस फ़िल्म को बनाने के लिए कांग्रेस का समर्थन मिला है तो उन्होंने इस से साफ़ इनकार किया। उन्होंने कहा, 'मैं एक आज़ाद ख्याल व्यक्ति हूँ। किसी राजनीतिक दल से मेरा कोई ताल्लुक नहीं है। पूरी तरह तथ्यों के आधार पर इस फ़िल्म की स्क्रिप्ट लिखी गई है। कोई भी राजनीतिक दल अगर इन मुद्दों को उठाता है तो यह उनकी राजनीति का हिस्सा है। हमारी फ़िल्म का राजनीति से या किसी दल से कोई लेना-देना नहीं है।'

इस फ़िल्म में मुख्य तौर पर 5 बड़े मुद्दे उठाए गए हैं। जैसा कि नाम से ही ज़ाहिर है, फ़िल्म में राहुल गाँधी का किरदार मुख्य होगा।

फ़िल्म 'चौकीदार चोर है?' में नोटबंदी के बाद देश में मध्यमवर्गीय परिवारों के सामने आए संकट, महिलाओं पर हो रहे अत्याचार, किसानों की समस्याओं के साथ ही और बेरोजगारी के मुद्दे पर मोदी सरकार की जमकर बखिया उधेड़ी गई है।

सरकार की नाकामियाँ दिखाएगी फ़िल्म

ज़ाहिर सी बात है कि फ़िल्म में इन मुद्दों को उठाकर मौजूदा सरकार की नाकामियों को बड़े पर्दे पर बेनक़ाब करने की कोशिश की गई है। फ़िल्म देश के राजनीतिक हालात पर कितना असर छोड़ेगी और लोकसभा चुनाव पर इस फ़िल्म का क्या असर होगा यह तो आने वाला वक्त बताएगा। लेकिन इस मुद्दे पर फ़िल्म बना कर फ़िल्मकार ने कहीं ना कहीं बतौर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि चमकाने वाली फ़िल्मों को चुनौती ज़रूर दी है। यह फ़िल्म कांग्रेस के नारे पर आधारित जरूर है लेकिन इस फ़िल्म को बनाने में सीधे तौर पर उसका हाथ नहीं है।

रैलियों में खू़ब चला नारा

ग़ौरतलब है कि रफ़ाल लड़ाकू विमानों की ख़रीद में  भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हुए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ 'चौकीदार चोर है' का नारा गढ़ा था। कुछ महीने पहले हुए 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव के दौरान राहुल अपनी लगभग हर रैली में कांग्रेस कार्यकर्ताओं से यह नारा लगवाते थे।

राहुल गाँधी के 'चौकीदार चोर है' के नारे ने मोदी सरकार और बीजेपी दोनों को बेचैन कर दिया है। इसके जवाब में हालाँकि बीजेपी ने भी नारा दिया था, 'अब यह श्योर है, चौकीदार प्योर है।' लेकिन कांग्रेस का नारा बीजेपी के नारों पर अभी भी भारी है।

'चौकीदार चोर है' नारे को आधार बनाकर बनाई जा रही फ़िल्म इस नारे की लोकप्रियता को भुनाने की कोशिश भी हो सकती है। इस फ़िल्म के जरिए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी का नारा कांग्रेस की रैलियों से निकल कर अब सिनेमा के पदों पर लगता हुआ दिखाई देगा। इस फ़िल्म ने सिनेमा के पर्दे पर बीजेपी और कांग्रेस के बीच एक नई जंग छेड़ दी है।

'एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर' भी आई

हाल ही में ही में पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह पर बनी फ़िल्म 'एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर' रिलीज़ हुई थी। यह फ़िल्म डॉ. मनमोहन सिंह के मीडिया एडवाइजर रहे संजय बारू की किताब पर आधारित है। बारू ने 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले इसी नाम से किताब लिखी थी। 2014 के चुनाव में बीजेपी ने इस किताब को राजनीतिक रूप से काफ़ी भुनाया था।

किताब के आधार पर फ़िल्म बना कर बीजेपी ने कांग्रेस पर कटाक्ष किया है कि कांग्रेस की सरकार एक परिवार के रिमोट कंट्रोल से चलती है। हालाँकि पर्दे पर फ़िल्म बहुत ज़्यादा कमाल नहीं दिखा पाई लेकिन चुनाव से पहले इस फ़िल्म को तमाम टीवी चैनलों पर दिखाया जाएगा। 

मोदी की छवि चमकाने की कोशिश

बीजेपी को उम्मीद है कि 'एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर' से उसे राजनीतिक फ़ायदा हो सकता है। फ़िल्म में डॉ. मनमोहन सिंह का किरदार बीजेपी नेता और जाने-माने फ़िल्म कलाकार अनुपम खेर ने निभाया है। प्रधानमंत्री मोदी की छवि को चमकाने वाली एक और फ़िल्म 'उरी : द सर्जिकल स्ट्राइक’ सिनेमाघरों में चल रही है। फ़िल्म को उत्तर प्रदेश में टैक्स फ़्री किया गया है। बीजेपी शासित प्रदेशों में भी इसे टैक्स फ़्री किए जाने की ख़बर है। इस फ़िल्म में नरेंद्र मोदी को एक कड़े फ़ैसले लेने वाले बोल्ड प्रधानमंत्री के रूप में दिखाया गया है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि चमकाने वाली एक और फ़िल्म जल्दी रिलीज़ होने वाली है। 'पीएम नरेंद्र मोदी' नाम से बनने वाली इस फ़िल्म को 23 अलग-अलग भाषाओं में देशभर में रिलीज़ किया जाएगा।

'पीएम नरेंद्र मोदी' फ़िल्म में मोदी का किरदार विवेक ओबराय ने निभाया है। यह फ़िल्म पूरी तरह नरेंद्र मोदी पर केंद्रित है। एक तरह से यह नरेंद्र मोदी की बायोपिक है। इसके जरिए नरेंद्र मोदी सिनेमा के बड़े परदे से होते हुए टीवी की छोटी स्क्रीन और मोबाइल स्क्रीन के जरिए घर-घर में पहुँचेंगे। 

दरअसल, इन फ़िल्मों के जरिए नरेंद्र मोदी 2014 के चुनाव में दिए 'हर-हर मोदी, घर-घर मोदी' के नारे को सार्थक कर रहे हैं। इसीलिए लोकसभा चुनाव से पहले एक के बाद एक उनकी छवि चमकाने वाली फ़िल्में रिलीज़ हो रही है। 

ज़ाहिर है कि लोकसभा चुनाव में चुनावी रैलियों और राजनीतिक पार्टियों के जनसंपर्क अभियान के अलावा फ़िल्मी पर्दे और टीवी स्क्रीन की भी एक अहम भूमिका होगी। यह पहली बार है कि जब कोई चुनाव सिनेमा के पर्दे से भी लड़ा जाएगा।

नरेंद्र मोदी की छवि को चमकाने वाली कई फ़िल्में सिनेमा के पर्दे पर हैं तो वहीं उनकी छवि को चुनौती देने वाली सिर्फ़ एक फ़िल्म ‘चौकीदार चोर है’ है। हालाँकि फ़िल्मकार का दावा है कि वह महीने भर बाद ही इस फ़िल्म को रिलीज़ करने की स्थिति में होंगे। 

कड़ा विरोध कर सकती है बीजेपी

फ़िल्म के पोस्टर रिलीज़ के कार्यक्रम में जिस तरह हंगामा हुआ, उसे देखते हुए लगता है कि इस फ़िल्म का आगे चलकर बीजेपी की तरफ़ से कड़ा विरोध हो सकता है। हो सकता है कि इस फ़िल्म को सेंसर बोर्ड की मंजूरी ही ना मिले। आगे क्या होगा, इस पर अभी कुछ कहना मुनासिब नहीं होगा। लेकिन यह ज़रूर है कि यह फ़िल्म बनाकर फ़िल्मकार ने राजनीति को प्रभावित करने की कोशिश ज़रूर की है।

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यूसुफ़ अंसारी
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