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प्रज्ञा ठाकुर ने बीजेपी की सदस्यता लेने के साथ ही आक्रामकता दिखानी शुरू कर दी। उन्होंने अपने ऊपर हुए कथित अत्याचार के लिए भोपाल से कांग्रेस प्रत्याशी दिग्विजय सिंह की सोच को परोक्ष रूप से ज़िम्मेदार बताया। वह बहुत बढ़-चढ़ कर बोलने लगीं और उसी रौ में उन्होंने महाराष्ट्र सरकार के आतंकवाद विरोधी दस्ते के तात्कालीन प्रमुख हेमंत करकरे के बारे में बहुत ही आपत्तिजनक और अपमानजनक बातें बोल गईं। उन्होंने उनको कुटिल कहा, पापी कहा और देशद्रोही तक कह डाला। उन्होंने यह भी कहा कि शहीद करकरे की मृत्यु इसलिए हुयी कि इन मोहतरमा ने उनको बद्दुआ दे दी थी। यह कहना था कि पूरा देश उनके ख़िलाफ़ टूट पड़ा।
जो बहादुर पुलिस अफ़सर मुंबई को आतंकवादी हमले से बचाने के लिए शहीद हुआ था, जिसने पाकिस्तान से आये आतंकवादियों को सामने से चुनौती दी थी, जिसके सीने पर अंधेरे में छुपे हुए आतंकवादियों ने गोली मारी थी, उसका आपमान सहन करने के लिए देश तैयार नहीं था।
बीजेपी को भी लगा कि ग़लती हो गयी, लेकिन प्रज्ञा ठाकुर अपने को पीड़ित बताकर सहानुभूति लेने के चक्कर में डटी रहीं। जब बीजेपी ने शहीद हेमंत करकरे के बारे में दिए गए उनके बयान को उनका निजी बयान बताकर पल्ला झाड लिया, तब भी वह अपना राग अलापती रहीं। लेकिन कुछ टीवी चैनलों और अखबारों ने प्रज्ञा ठाकुर के असंतुलित बयान को जिस तरह से उठाया, उससे बीजेपी को लगा कि बात बिगड़ गयी है।
साध्वी को भोपाल से उम्मीदवार बना कर कांग्रेस को 'हिन्दू आतंकवाद' के घेरे में लेने का प्रयास उल्टा पड़ गया। जो बीजेपी पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद और सैनिकों की शहादत को मुद्दा बनाकर चुनाव लड़ रही है, उसकी एक प्रत्याशी पाकिस्तानी आतंकवाद के ख़िलाफ़ मोर्चा लेने वाले सबसे बहादुर योद्धा को अपमानित कर रही थी।
ज़ाहिर है, बीजेपी जिस मोहरे को अपने फ़ायदे के लिए इस्तेमाल करना चाहती थी, वही उसके लिए सबसे बड़ी मुसीबत बन चुका है। पार्टी के नेताओं की समझ में आ गया कि प्रज्ञा ठाकुर की बदज़ुबानी को सही ठहराने की कोशिश में उनका भारी नुक़सान होने वाला है। शायद इसीलिये प्रज्ञा ठाकुर को पार्टी ने फटकारा और उन्होंने शहीद करकरे की शान में की गयी बदतमीज़ी के लिए माफ़ी मांग ली। लेकिन माफ़ी भी ऐसी माँगी, जिससे पार्टी को नुक़सान होने का ख़तरा बना हुआ है। माफ़ी की भाषा ऐसी है, जिसको पढने पर लग जाता है कि वह माफ़ी तो मांग रही हैं, लेकिन अभी भी शहीद हेमंत करकरे को गुनहगार साबित करने से बाज़ नहीं आ रही हैं।
उन्होंने लिख कर माफ़ी नहीं माँगी है। संवाददाताओं से बातचीत के दौरान उन्होंने कहा कि, 'जो मैंने कहा था वह मेरी व्यक्तिगत पीड़ा थी, जो मैंने सुनाई थी। मेरे बयान से किसी को ठेस पहुंची है तो मैं अपना बयान वापस लेती हूं, और माफी मांगती हूं। देश के दुश्मन इससे खुश हो रहे हैं, इसलिए मैं अपने बयान को वापस ले रही हूं और माफ़ी भी माँगती हूँ।'
अब तो साफ़ लगने लगा है कि साध्वी प्रज्ञा दिग्विजय सिंह को भी चुनौती नहीं दे पाएँगीं, क्योंकि वह जहाँ भी जाएँगी, उनसे शहीद हेमंत करकरे के बारे में सवाल पूछे जाएँगे।
दिग्विजय सिंह को हिन्दू विरोधी साबित करने की कोशिश तो उसी दिन दफ़न हो गयी थी, जब उन्होंने हिन्दू धर्म की सबसे कठिन तीर्थयात्रा, नर्मदा परिक्रमा को विधि विधान से पूरी की थी।
टीवी की बहसों में जो विश्लेषक एंकरों द्वारा की जा रही दिग्विजय सिंह की निंदा के बीच चुप बैठे रहते थे, वे अब कहने लगे हैं कि दिग्विजय सिंह ने कभी भी हिन्दू आतंकवाद या भगवा आतंकवाद जैसे शब्दों का प्रयोग नहीं किया है। उनके मुताबिक़, दिग्विजय हमेशा 'संघी आतंकवाद' शब्द का प्रयोग करते हैं। मीडिया के सहयोग से आरएसएस और बीजेपी के नेता उनको हिन्दू विरोधी साबित करने के लिए दिन रात लगे रहते हैं। प्रज्ञा ठाकुर को उनके ख़िलाफ़ उम्मीदवार बनाकर इसी बात को रेखांकित किया जाना था। प्रज्ञा ठाकुर उसी प्रोजेक्ट का हिस्सा थीं।
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