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क्या 2019 में मोदी को राहुल नहीं, मायावती देंगी चुनौती?

मायावती 2019 के चुनाव में सर्वोच्च पद के लिए तीसरे मोर्चे के अगुआ के तौर पर अपना हैट रिंग में फेंकने जा रही हैं। उन्होंने इस सिलसिले में शरद पवार से बात की है। अखिलेश, अजीत सिंह, तेजस्वी यादव और हेमंत सोरेन उनकी टीम में पहले से हैं। बाक़ी ग़ैर-कांग्रेसी ग़ैर-बीजेपी विपक्षी दलों से संपर्क के लिए उनके संदेशवाहक काम पर निकल चुके हैं।

15 जनवरी को अपने 63वें जन्मदिन पर मायावती अपने दावे को देश के राजनैतिक रंगमंच पर पेश करना चाहती हैं। प्रेस ने अपनी ओर से यूपी की गठबंधन की सीटों के बँटवारे जैसे टीज़र पहले ही हवा में छोड़ दिए हैं।

दरअसल, कुछ दिन पहले डीएमके नेता स्टालिन द्वारा राहुल गाँधी का नाम अगले प्रधानमंत्री के तौर पर उछाल देने से अब तक चल रही गुपचुप गतिविधि में भूचाल आ गया है। जल्द ही ममता बनर्जी कैंप से भी कुछ न कुछ सामने आने की अपेक्षा राजनैतिक आकलनकर्ताओं को है जो तीसरे मोर्चे की ओर से 2019 के आम चुनाव में सर्वोच्च पद की एक और दावेदार हैं। तेलंगाना के मुख्यमंत्री उनके प्रमुख प्रस्तावक हैं।

बीएसपी के सभी विधायकों, सांसदों, सांगठनिक पदाधिकारियों को जनवरी के पहले हफ़्ते में लखनऊ पहुँचने के निर्देश बहन जी के दफ़्तर से जारी हो चुके हैं। ख़ुद मायावती नए वर्ष के पहले हफ़्ते में वहाँ पहुँच रही हैं। किसी क़िस्म के मीडिया विवाद से बचने के लिए जन्मदिन के कार्यक्रम को भव्यता से बचाने की योजना है जिससे संदेश राजनैतिक ही रहे।

उत्तर प्रदेश

मायावती जी और अखिलेश आजकल एकदम एक ही धुन में हैं। अखिलेश ने स्टालिन के राहुल गाँधी के पक्ष वाले बयान का प्रतिकार करके बहन जी को प्रसन्न रखा हुआ है। दरअसल, इधर अखिलेश के चाचा शिवपाल यादव की प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के ज़बरदस्त तरीके से अस्तित्व में आ जाने से भी अखिलेश के लिए मायावती से तालमेल की रक्षा करना बेहद ज़रूरी है। शिवपाल यादव भी मायावती से मिलने के लिए बेताब हैं। वे राहुल गाँधी से मिल भी चुके हैं और उनके बारे में आम धारणा यह है कि वे बीजेपी स्पॉन्सर्ड हैं जिससे वे हर हालत में पिंड छुड़ाना चाहते हैं।

छत्तीसगढ़

अजीत सिंह का लोकदल और छत्तीसगढ़ से अजीत जोगी भी मायावती जी के साथ पूरी तरह से हैं। ये लोग अन्य दलों से बातचीत भी कर रहे हैं। वफ़ादारी दिखाते हुए ये सभी कांग्रेस के नवनिर्वाचित मुख्यमंत्रियों के शपथ-ग्रहण समारोहों से दूर रहे जहाँ कई अन्य ग़ैर-भाजपाई ग़ैर-कांग्रेसी दलों के नेता मौजूद थे। ये सभी लोग 10 दिसंबर की दिल्ली में विपक्षी दलों की मीटिंग से भी नदारद थे। 

मायावती की योजना है कि पंजाब से लेकर झारखंड तक यानी पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड में विपक्षी मोर्चे की अगुवाई का नेतृत्व उनका हो।
mayawati trying to project herself pm candidate for 2019 - Satya Hindi
नई राजनीतिक समीकरण बनाने की कोशिश

इन राज्यों में लोकसभा की कुल 164 सीटें हैं जो बहुत बड़ी संख्या है। उनके संदेशवाहक आम आदमी पार्टी पर भी नज़र रख रहे हैं जिससे कांग्रेस ने हाल ही में संबंध सामान्य करने की कोशिश की है। हरियाणा में चौटाला की पार्टी के दोनों धड़े उनकी शरण में हैं। पंजाब दिल्ली और हरियाणा में आम आदमी पार्टी से अगर कांग्रेस का तालमेल टूटा तो गेंद बहन जी के पाले तक आ सकती है।

दो महीने पहले इनेलो-बसपा की ओर से गोहाना में आयोजित रैली में ओम प्रकाश चौटाला ने कहा भी था कि विपक्षी दलों को एकजुट कर मायावती को अगला पीएम बनाएँगे।

तीसरे मोर्चे की अहमियत

तीसरे मोर्चे का नेता बनने का दावा करने के लिए बीएसपी या तृणमूल कांग्रेस का लोकसभा में बीजेपी और कांग्रेस के बाद तीसरे नंबर पर आना ज़रूरी है। मायावती और ममता में नेतृत्व का मुक़ाबला है। ममता की दिक़्क़त यह है कि उनकी चादर बंगाल की कुल 42 सीटों तक ही फैल सकती है जबकि मायावती ने अपना लंगर 164 सीटों पर डाला हुआ है और छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र में भी वे उपस्थित हैं ही - दावे तो वे मध्य प्रदेश व राजस्थान में एक-दो सीटों के रखेंगी ही!

इस बार के जाड़ों में अच्छी-ख़ासी राजनैतिक उमस है।

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क़मर वहीद नक़वी
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