अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने सुप्रीम कोर्ट में सरकार का पक्ष रखते हुए कहा कि सीबीआई निदेशक को हटाने का फ़ैसला जनहित में लिया गया था।
निदेशक आलोक वर्मा की याचिका पर हो रही सुनवाई के दौरान उन्होंने कहा कि वर्मा के सारे अधिकार इसलिए छीन लिए गए थे कि सीबीआई पर लोगों का भरोसा बना रहे। उन्होंने तर्क दिया कि ब्यूरो के चोटी के दो अफ़सर एक दूसरे के ख़िलाफ़ थे, ब्यूरो को लेकर लोगों में तरह-तरह की नकारात्मक प्रतिक्रियाएँ थीं। ऐसे में वर्मा पहले की तरह ही काम करते रहते तो लोगों का भरोसा टूटता।
अगली सुनवाई 5 दिसंबर को होगी।
अटॉर्नी जनरल ने कांग्रेस नेता और वरिष्ठ वकील कपिल सिबल के तर्कों का जवाब देते हुए कहा कि सीबीआई निदेशक का एक बार चयन हो जाने के बाद उन्हें चुनने वाली समिति का काम पूरा हो जाता है। उसके बाद उसकी कोई उपयोगिता नहीं रहती है। ऐसे में वर्मा पर कोई निर्णय लेने के पहले उसके पास जाने का कोई मतलब नहीं है।
उन्होंने यह भी कहा कि वर्मा का तबादला नहीं हुआ है। वे पहले की तरह दिल्ली में हैं, उसी घर में रहते हैं जिसमें पहले थे।
इसके पहले सिबल ने चेतावनी देते हुए कहा था कि जो कुछ सीबीआई निदेशक के साथ हुआ, वही भविष्य में सीएजी और सीवीसी के साथ भी हो सकता है।
सिबल सुप्रीम कोर्ट में सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा की याचिका पर हो रही सुनवाई के दौरान लोकसभा में कांग्रेस संसदीय दल के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे की पैरवी कर रहे थे।
आलोक वर्मा ने अपने सारे अधिकार छीन लेने और ख़ुद को छुट्टी पर भेज देने के केंद्र सरकार के फ़ैसले को चुनौती देते हुए यह याचिका दायर की थी। 'नियुक्त करने वाला ही हटा सकता है'
सिबल ने कहा कि जिस तरह आज सीबीआई निदेशक को हटाया गया, इसे न रोका गया तो भविष्य में कम्प्ट्रोलर ऐंड ऑडिटर जनरल (सीएजी) और मुख्य सतर्कता आयुक्त (सीवीसी) को भी हटाया जा सकता है।
सिबल ने कहा कि जो नियुक्त करता है, उसे ही पद से हटाने या निकालने का अधिकार होता है, दूसरे को नहीं। इसलिए वर्मा को उनकी चयन समिति ही हटा सकती है। सरकारी आदेश ग़ैरक़ानूनी
इसके पहले वर्मा के वकील फ़ली नरीमन ने भी वर्मा को छुट्टी पर भेजे जाने के केंद्र सरकार के आदेश को ग़ैरक़ानूनी क़रार दिया था। सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान उन्होंने कहा कि चयन समिति की अनुमति के बग़ैर निदेशक को न तो छुट्टी पर भेजा जा सकता है न ही उनसे उनका कामकाज छीना जा सकता है।
वर्मा को कई तरह की गड़बड़ियों में दोषी पाए जाने के बाद केंद्र सरकार ने उनसे तमाम कामकाज ले कर उन्हें छुट्टी पर जाने को कह दिया था। उन्होंने इसके ख़िलाफ़ याचिका दायर की थी। सुनवाई सुबह शुरू होने के थोड़ी देर बाद ही लंच ब्रेक हो गया। दोपहर दो बजे फिर सुनवाई शुरू हुई।
मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, जस्टिस एस के कौल और जस्टिस के एम जोज़फ की खंडपीठ इस मामले की सुनवाई कर रही है।
नरीमन ने खंडपीठ से कहा कि चयन समिति में प्रधानमंत्री के अलावा मुख्य न्यायाधीश और लोकसभा में विपक्ष का नेता होता है। यदि लोकसभा में ऐसा कोई नेता न हो सबसे बड़े विपक्षी दल का नेता उनकी जगह लेता है। पर वर्मा के मामले में इस प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया। सिन्हा के आरोपों से अलग
वर्मा ने सुनवाई की शुरुआत में ही डीआईजी मनीष सिन्हा के लगाए गए आरोपों से ख़ुद को अलग कर लिया। सिन्हा ने अपनी पिटिशन में कहा था कि उन्हें पता चला कि केंद्रीय कोयला राज्यमंत्री हरिभाई पार्थीभाई चौधरी ने 2 करोड़ रुपये लेकर मोइन क़ुरैशी मामले की सीबीआई जाँच रुकवा दी थी। उनके मुताबिक़, उन्हें बताया गया था कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल ने जाँच में अड़चनें डाली थीं।
समझा जाता है कि अदालत सीवीसी को दिए वर्मा के जवाबों का विश्लेषण करेगा। इसके साथ ही सीबीआई के अंतरिम निदेशक एम. नागेश्वर राव की रिपोर्ट पर भी विचार करेगा।
सुप्रीम कोर्ट में एजी ने कहा, सीबीआई की साख का सवाल
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- 29 Nov, 2018
सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान यह तर्क दिया कि उनका तबादला चयन समिति की अनुमित के बग़ैर नहीं किया जा सकता है।
