1984 के दंगों पर हाई कोर्ट का फ़ैसला देते हुए कोर्ट ने आज़ादी के बाद भारत मे हुए नरसंहारों पर भी तीखी टिप्पणी भी है। फ़ैसला 1993 के मुंबई दंगे, 2002 के गुजरात नरसंहार, 2008 के कंधमाल और 2013 के मुजफ़्फ़रनगर के नरसंहारों पर भी सवाल उठाता है। अदालत का एक निष्कर्ष यह भी है कि अल्पसंख्यकों का नरसंहार करने वालों को राजनीतिक समर्थन नहीं होता तो इस तरह की घटनाएँ नहीं होतीं। अदालत के अनुसार देश में मानवता के ख़िलाफ़ होने वाले अपराधों और नरसंहारों से निपटने के लिए कोई सख़्त क़ानून नहीं है। कोर्ट ने कहा कि ऐसे जघन्य अपराधों को रोकने के लिए एक मजबूत क़ानूनी व्यवस्था बनाई जानी चाहिए। कोर्ट ने यह भी कहा कि 84 के बाद हुए सारे नरसंहारों में अपराधियों को राजनीतिक संरक्षण मिला और वे सजा से बचने में कामयाब होते रहे।
दिल्ली, गुजरात, हर जगह दंगाइयों को राजनीतिक संरक्षण मिला - कोर्ट
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- 18 Dec, 2018
दिल्ली हाई कोर्ट ने सिख विरोधी दंगों पर फ़ैसला सुनाते हुए देश के अन्य भागों में हुए दंगों का भी ज़िक़्र किया और कहा कि दंगाइयों को हमेशा राजनीतिक संरक्षण मिलता रहा है।
