एंटी करप्शन ब्यूरो यानी एसीबी के खिलाफ टिप्पणियां करने के बाद कर्नाटक हाई कोर्ट के जज एचपी संदेश को तबादला किए जाने की धमकी मिली है। जस्टिस संदेश ने कहा है कि वह इस तरह की धमकियों से नहीं डरते।
जस्टिस संदेश ने बीते दिनों में एसीबी के कामकाज को लेकर कई टिप्पणियां की थी। यह टिप्पणियां बेंगलुरु शहर के उपायुक्त के दफ्तर में कार्यरत एक उप तहसीलदार पीएस महेश की जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान की गई थी।
पीएस महेश को मई, 2021 में 5 लाख रुपये की रिश्वत लेते हुए पकड़ा गया था। महेश ने अपने बयान में यह दावा किया था कि उसने यह रिश्वत बेंगलुरु शहर के तत्कालीन उपायुक्त डीसी जे मंजूनाथ के निर्देश पर ली थी।
अदालत ने इस पर आपत्ति जताई थी कि किस तरीके से वरिष्ठ पुलिस अफसरों को बचाया जा रहा है और इस मामले में केवल जूनियर अफसरों पर मुकदमा चलाया जा रहा है। सोमवार को इस मामले में सुनवाई के बाद एसीबी ने आईएएस अफसर मंजूनाथ को गिरफ्तार कर लिया।
भ्रष्टाचार का केंद्र बताया
कर्नाटक हाई कोर्ट ने इससे पहले की तमाम सुनवाईयों में भी एसीबी की खिंचाई की थी और इसे भ्रष्टाचार का केंद्र बताया था। सोमवार को अदालत में सुनवाई के दौरान जस्टिस संदेश ने कहा कि उन्हें एक साथी जज ने बताया है कि उनका तबादला किया जा सकता है क्योंकि एसीबी के एडीजीपी उनके बयानों से खुश नहीं हैं।
जस्टिस संदेश ने अदालत में ही कहा, “ऐसा लगता है कि एसीबी के एडीजीपी कोई ताकतवर इंसान हैं और मुझे यह बताया गया है कि मेरा तबादला किया जा सकता है।” उन्होंने कहा कि यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता और अदालत पर हमला है।
खेती करने के लिए तैयार हूं
जस्टिस संदेश ने एसीबी और इसके वकील की खिंचाई करते हुए कहा कि वह किसी पद के जाने से नहीं डरते, वह एक किसान के बेटे हैं और खेत में हल चलाने के लिए तैयार हैं। उन्होंने यह भी कहा कि वह किसी राजनीतिक दल या किसी विचारधारा से नहीं बल्कि संविधान से संबंध रखते हैं।
जस्टिस संदेश ने कहा कि उन्होंने जज बनने के बाद किसी तरह की संपत्ति जमा नहीं की है बल्कि अपने पिता की 4 एकड़ जमीन बेच चुके हैं। उन्होंने एसीबी के वकील से कहा कि वकालत एक पवित्र पेशा है और इसमें भ्रष्टाचार के लिए जगह नहीं है।
जस्टिस संदेश ने एसीबी से कहा कि आप जजों को धमकी देने वाली स्थिति में पहुंच गए हैं जबकि पूरा राज्य भ्रष्टाचार में डूबा हुआ है।
निश्चित रूप से हाई कोर्ट के जज की यह टिप्पणी एसीबी के कामकाज पर गंभीर सवाल खड़े करती है। साथ ही यह भी बताती है कि इस विभाग की खिंचाई करने वाले जज के सामने किस तरह की मुश्किलें आ सकती हैं।
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