जिस कर्नाटक में हिजाब विवाद और धार्मिक उत्सवों में मुसलिम व्यापारियों पर प्रतिबंध लगाने का मामला आया है वहाँ, अब एक और विवाद खड़ा हो सकता है। बीजेपी विधायक और मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई के राजनीतिक सचिव एम पी रेणुकाचार्य ने राज्य के सभी मदरसों पर प्रतिबंध लगाने की मांग की है।
उन्होंने मदरसों को बंद करने की मांग करते हुए दावा किया कि वे 'देश-विरोधी पाठ' का प्रोपेगेंडा फैलाते हैं। रेणुकाचार्य के इस बयान से विवाद होने की संभावना है। यह ऐसा तीसरा मुद्दा है जिससे हाल में मुसलमान निशाने पर लिए गए हैं या उनसे जुड़े विवाद खड़े हुए हैं।
कर्नाटक में हिजाब विवाद के बाद हाल ही में मंदिरों द्वारा मेले में मुसलिम दुकानदारों पर प्रतिबंध लगाने का विवाद उठा था। निशाने पर मुसलिम ही हैं। स्कूली कक्षाओं में भी। धार्मिक आयोजनों को लेकर लगने वाले मेले में भी। स्कूल प्रबंधनों ने हिजाब पर प्रतिबंध लगाया था तो सरकार ने समर्थन किया था और जब मंदिरों ने प्रतिबंध लगाया है तो भी सरकार इसके समर्थन में है। सरकार ने मुसलिम दुकानदारों पर प्रतिबंध के पक्ष में तर्क दिए हैं।
यह विवाद इसलिए उछला है कि पिछले सप्ताह कम से कम छह मंदिरों ने प्रतिबंध लगाए हैं। पिछले पाँच दिनों में उडुपी, दक्षिण कन्नड़ और शिवमूगा जिलों में मंदिरों के बाहर बैनर देखे गए हैं जिनमें घोषणा की गई है कि मुसलिम व्यापारियों को दशकों पुरानी स्थानीय परंपराओं को तोड़ते हुए धार्मिक मेलों में स्टॉल लगाने की अनुमति नहीं दी जाएगी। हालाँकि, कई मंदिरों से जुड़े लोगों ने दावा किया कि इसके लिए उन पर दबाव डाला गया है।
इसी बीच अब मदरसा को लेकर बयान दिया गया है। द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार रेणुकाचार्य ने शनिवार को कहा, 'मैं सीएम और शिक्षा मंत्री से मदरसों पर प्रतिबंध लगाने का अनुरोध करता हूँ। क्या हमारे पास अन्य स्कूल नहीं हैं जहाँ हिंदू और ईसाई छात्र पढ़ते हैं? वे वहाँ राष्ट्र विरोधी पाठ पढ़ाते हैं। उन्हें प्रतिबंधित किया जाना चाहिए या अन्य स्कूलों में पढ़ाए जाने वाले पाठ्यक्रम को पढ़वाया जाना चाहिए।'
यह विवाद इसलिए अहम है कि हाल में राज्य में हिजाब विवाद हुआ था। स्कूलों में हिजाब पर प्रतिबंध लगाया गया है और कहा गया है कि शिक्षण संस्थानों में सिर्फ़ यूनिफॉर्म ही चलेगी और किसी धार्मिक पहचान वाली पोशाक की अनुमति नहीं दी जाएगी। हाई कोर्ट ने भी स्कूलों के प्रतिबंध को वाजिब ठहराया है और अब इसके ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में अपील की गई है। इसी बीच अब मुसलिम दुकानदारों पर प्रतिबंध का विवाद आया है। जब यह विवाद बढ़ा तो सरकार ने भी इस पर प्रतिक्रिया दी।
दरअसल, कर्नाटक सरकार ने बुधवार को कुछ मंदिरों द्वारा धार्मिक त्योहारों के दौरान मुसलिम व्यापारियों पर प्रतिबंध लगाने के फ़ैसले का बचाव किया था। विधानसभा में तर्क देने के लिए एक क़ानून का ज़िक्र किया गया है। उस क़ानून में प्रावधान है कि मेलों और पवित्र अवसरों पर हिंदुओं के अलावा अन्य लोगों को मंदिर परिसर के अंदर जाने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।
राज्य के क़ानून मंत्री जेसी मधुस्वामी ने कहा कि 2002 में पारित हिंदू धार्मिक संस्थान और धर्मार्थ बंदोबस्ती अधिनियम के अनुसार, एक हिंदू धार्मिक संस्थान के पास की जगह को दूसरे धर्म के व्यक्ति को पट्टे पर देना प्रतिबंधित है।
उन्होंने कहा, 'अगर मुसलिम व्यापारियों पर प्रतिबंध लगाने की ये हालिया घटनाएँ धार्मिक संस्थानों के परिसर के बाहर हुई हैं तो हम उन्हें सुधारेंगे। अन्यथा, मानदंडों के अनुसार, किसी अन्य समुदाय को परिसर में दुकान स्थापित करने की अनुमति नहीं है। मंत्री ने इसका भी ज़िक्र किया कि 2002 में कांग्रेस सरकार थी।
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