कर्नाटक में बीजेपी की चुनावी लिस्ट को महासंग्राम मचा हुआ है। बीजेपी की लिस्ट सोमवार को आने वाली थी, नहीं आई। मंगलवार को वो लिस्ट नहीं आई। पूर्व सीएम बी एस येदियुरप्पा, पूर्व मंत्री ईश्वरप्पा समेत कई नेता लिस्ट को लेकर असंतुष्ट नजर आ रहे हैं। पिछले दो दिनों से हो रहे घटनाक्रम को लेकर बीजेपी चिन्ता में पड़ गई है। न उससे बगावत थम रही है और न वो कांग्रेस के मुद्दों का जवाब दे पा रही है। राज्य विधानसभा चुनाव 10 मई को है और 13 मई को नतीजे आएंगे।
बीजेपी के वरिष्ठ नेता केएस ईश्वरप्पा ने आज मंगलवार को कहा कि वो 10 मई को होने वाला कर्नाटक चुनाव नहीं लड़ेंगे। ईश्वरप्पा की इस घोषणा से उन अटकलों को और हवा मिली की बीजेपी प्रत्याशियों की सूची ही नहीं जारी कर पा रही है। ईश्वरप्पा ने बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा को लिखे पत्र में कहा, "मैं चुनावी राजनीति से हट रहा हूं।"
उन्होंने कन्नड़ में एक संक्षिप्त पत्र में लिखा। जिसमें उन्होंने कहा- पार्टी ने मुझे पिछले 40 वर्षों में बहुत सारी जिम्मेदारियां दी हैं। मैं एक बूथ प्रभारी से लेकर राज्य पार्टी प्रमुख तक गया। मुझे उपमुख्यमंत्री बनने का भी सम्मान मिला। उन्होंने कहा कि चुनाव न लड़ने का फैसला उनका अपना है।
पूर्व मंत्री ईश्वरप्पा
कहा जा रहा है कि ईश्वरप्पा का यह कदम एहतियातन लिया गया हो, क्योंकि पिछले महीने उन्हें संकेत मिला था कि उन्हें उम्मीदवार के रूप में हटा दिया जाएगा।
ईश्वरप्पा इस जून में 75 वर्ष के हो गए, नेताओं के चुनाव लड़ने और पदों पर बैठने के लिए भाजपा में अनौपचारिक आयु सीमा को पार कर गए।
भाजपा ने 224 सदस्यीय विधानसभा के चुनाव के लिए अपने उम्मीदवारों की घोषणा को लगभग अंतिम समय तक टाल दिया है। गुरुवार को नामांकन बंद हो गया।
उम्मीदवारों को अंतिम रूप देने के लिए पार्टी ने मैराथन बैठकें की हैं।
रिपोर्ट्स बताती हैं कि कई मौजूदा विधायकों को हटा दिया गया है और कांग्रेस और जनता दल सेक्युलर के दलबदलुओं, जिन्होंने भाजपा सरकार स्थापित करने में मदद की, को पुरस्कृत किया जाएगा।
येदियुरप्पा दिल्ली से खाली हाथ लौटेः कर्नाटक बीजेपी के उम्मीदवारों की पहली सूची जारी होने में देरी का बड़ा कारण है राज्य बीजेपी के सबसे बड़े नेता बीएस येदियुरप्पा की नाराजगी है। वो प्रत्याशियों के चयन को लेकर शनिवार से ही दिल्ली में डेरा डाले हुए थे। लेकिन मंगलवार को वह नाराज होकर बेंगलुरु वापस लौट गये।
इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक येदियुरप्पा की नाराजगी का कारण टिकट बंटवारे में उनकी न सुना जाना बताया जा रहा है। हालांकि कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई और केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी ने येदियुरप्पा की नाराजगी की खबरों का खंडन करते हुए कहा कि उन्हें अपने किसी निजी काम के चलते अचानक से बेंगलुरु लौटना पड़ा।
येदियुरप्पा की नाराजगी और बंगलौर वापस लौटने का प्रमुख कारण उनके तीस उम्मीदवारों को टिकट वितरण में प्राथमिकता न देना है। सूत्रों के अनुसार येदियुरप्पा को उनके सभी उम्मीदवारों को टिकट देने और उनकी जीत सुनिश्चित करने का भरोसा दिया गया था। लेकिन पार्टी अब इससे मुकर रही है जिससे वे नाराज बताये जा रहे हैं। जिन तीस उम्मीदवारों के टिकट के लिए येदियुरप्पा अड़े हुए हैं उनमें से एक उनका छोटा बेटा बी वाई विजयेंद्र हैं। येदियुरप्पा अपने बेटे को अपनी परंपरागत सीट शिकारीपुरा से मैदान में उतारना चाहते हैं। इसकी घोषणा उन्होंने जुलाई 2022 में ही कर दी थी। जब उन्होंने कहा था कि वह चुनावी राजनीति से संन्यास ले रहे हैं, लेकिन विजयेंद्र शिवमोगा जिले की शिकारीपुरा सीट से उनकी जगह लेंगे।
येदियुरप्पा के इस कदम को उनके विरोध के तौर पर देखा जा रहा है। अगर येदियुरप्पा नाराज होते हैं तो बीजेपी को काफी नुकसान उठाना पड़ सकता है क्योंकि कर्नाटक बीजेपी में वही इकलौतै नेता हैं जिनकी पिछले बीस सालों से वोटर पर पकड़ है।
इंडियन एक्सप्रेस की खबर के अनुसार बीजेपी के एक नेता का कहना है कि येदियुरप्पा की नाराजगी को उनके बेटे को टिकट न दिये जाने के तौर पर देखा जाए बजाय किसी और बात के।
हालांकि प्रत्याशियों के चयन के लिए हो रही पार्टी की बैठकों में शामिल रहे प्रह्लाद जोशी और मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने कहा कि येदियुरप्पा की नाराजगी की खबरें सही नहीं हैं। वे हर बैठक में शामिल रहे हैं, यहां तक की पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा और अमित शाह के साथ होने वाली बैठकों में भी। उनके वापस लौट जाने के सवाल पर जोशी कहते हैं कि अचानक आए किसी काम की वजह से उन्हें वापस लौटना पड़ा है।
प्रत्याशियों की सूची जारी करने में हो रही देरी के कारण पर बोम्मई कहते हैं कि लिस्ट लगभग तैयार है, अमित शाह दिल्ली से बाहर हैं उनके आते ही सूची जारी कर दी जाएगी।
पार्टी भले ही कितने दावे करे कि सब कुछ ठीक है, लेकिन वो येदियुरप्पा को किसी भी कीमत पर नाराज नहीं कर सकती है। क्योंकि कर्नाटक बीजेपी में वह इकलौते ऐसे नेता हैं जिनकी हर समुदाय पर पकड़ है, इसके साथ ही वह वहां के सबसे महत्वपूर्ण लिंगायत समुदाय से भी आते हैं जो राज्य का सबसे बड़ा जातीय आधार है। किसी भी पार्टी के लिए लिंगायत को अलग करके सरकार बनाना लगभग असंभव सी स्थिति है।
लिंगायत वोटों की अहमियत को देखते हुए कांग्रेस ने अपने प्रमुख लिंगायात चेहरे सिद्धरमैया को आगे कर रखा है। सिद्धारमैया ने हाल ही में घोषणा की थी कि वे अपनी आखिरी चुनाव लड़ रहे हैं, उनकी भावुक अपील का असर भी पड़ता दिख रहा है।
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