कर्नाटक भाजपा प्रमुख नलिन कुमार कतील ने साफ़ तौर पर टीपू सुल्तान के मानने वालों को मारने की अपील कर दी है। उन्होंने कह दिया कि टीपू सुल्तान के वंशजों को खदेड़ कर जंगलों में भेज देना चाहिए।
टीपू सुल्तान को लेकर बीजेपी लगातार मुद्दा बनाती रही है। और इस वजह से इस पर विवाद भी होता रहा है। राज्य में पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा ने 2019 में माध्यमिक स्कूलों के इतिहास की किताब से टीपू सुल्तान के पाठ को हटाने की बात की थी तो इस पर काफी विवाद हुआ था। कर्नाटक में सत्ता में आने के तुरंत बाद जुलाई में बीजेपी सरकार ने टीपू सुल्तान की जयंती समारोह को ख़त्म कर दिया था। यह एक वार्षिक सरकारी कार्यक्रम था जिसको सिद्धारमैया के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के दौरान शुरू किया गया था। इसका 2015 से ही बीजेपी विरोध कर रही थी।
राज्य में दक्षिणपंथी टीपू सुल्तान को एक कट्टर अत्याचारी के रूप में देखते हैं और उन पर जबरदस्ती हजारों लोगों का धर्म परिवर्तन कराने का आरोप लगाते हैं। राज्य में बीजेपी का भी यही मानना है।
कोप्पल जिले के येलबुर्गा के पंचायत शहर में भाजपा के समर्थन को संबोधित करते हुए कतील ने कहा, 'हम भगवान राम, भगवान हनुमान के भक्त हैं। हम भगवान हनुमान की प्रार्थना और पूजा करते हैं, और हम टीपू के वंशज नहीं हैं। आइए टीपू के वंशजों को घर वापस भेजें।'
एनडीटीवी की रिपोर्ट के अनुसार कतील ने कहा, 'मैं यहां के लोगों से पूछता हूं कि क्या आप भगवान हनुमान या टीपू की पूजा करते हैं। फिर क्या आप उन लोगों को जंगल भेजेंगे जो टीपू के कट्टर अनुयायी हैं? इस बारे में सोचें। क्या आपको लगता है कि इस राज्य को भगवान हनुमान भक्तों या टीपू के वंशजों की आवश्यकता है? मैं एक चुनौती देता हूँ - जो लोग टीपू के कट्टर अनुयायी हैं, उन्हें इस उपजाऊ धरती पर जीवित नहीं रहना चाहिए।'
कई इतिहासकार टीपू को एक धर्मनिरपेक्ष और आधुनिक शासक के रूप में देखते हैं जिसने अंग्रेज़ों की ताक़त को चुनौती दी थी। टीपू एक राजा थे और किसी भी मध्ययुगीन राजा की तरह उन्होंने बग़ावत करने वाली प्रजा का मनोबल तोड़ने के लिये अत्याचार किया। मध्य युग के राजाओं का इतिहास ऐसी घटनाओं से भरा पड़ा है।
इतिहास में ऐसे ढेरों उदाहरण हैं, जो ये साबित करते हैं कि टीपू सुल्तान ने हिंदुओं की मदद की। उनके मंदिरों का जीर्णोंद्धार करवाया। उसके दरबार में लगभग सारे उच्च अधिकारी हिंदू ब्राह्मण थे। इसका सबसे बड़ा उदाहरण है- श्रंगेरी के मठ का पुनर्निर्माण।
1790 के आसपास मराठा सेना ने इस मठ को तहस-नहस कर दिया था। मठ के स्वामी सच्चिदानंद भारती तृतीय ने तब मैसूर के राजा टीपू सुल्तान से मदद की गुहार लगायी थी। दोनों के बीच तक़रीबन तीस चिट्ठियों का आदान-प्रदान हुआ था। ये पत्र आज भी श्रंगेरी मठ के संग्रहालय में पड़े हैं। टीपू ने एक चिट्ठी में स्वामी को लिखा- “जिन लोगों ने इस पवित्र स्थान के साथ पाप किया है उन्हें जल्दी ही अपने कुकर्मों की सजा मिलेगी। गुरुओं के साथ विश्वासघात का नतीजा यह होगा कि उनका पूरा परिवार बर्बाद हो जायेगा।"
इस महीने की शुरुआत में भी कतील ने यह दावा करके विवाद खड़ा कर दिया था कि राज्य में आगामी विधानसभा चुनाव 'टीपू बनाम सावरकर' के बारे में है। उन्होंने कहा था, 'उन्होंने (कांग्रेस) टीपू जयंती मनाने की अनुमति दी, जिसकी आवश्यकता नहीं थी और सावरकर के बारे में अपमानजनक बात की।'
इसी साल अप्रैल-मई में कर्नाटक में चुनाव है तो माना जा रहा है कि कतील इसको मुद्दा बना रहे हैं। पिछले महीने ही कतील ने अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं से कहा था कि वो रोड, नाली की बजाय लव जिहाद पर फोकस करें।
कतील ने पार्टी कार्यकर्ताओं से कहा था कि वे मतदाताओं से विकास की चर्चा में सड़कों और नालियों पर चर्चा नहीं करके, यह बताएं कि सिर्फ बीजेपी सरकार ही 'लव जिहाद' को रोक सकती है। इसके ख़िलाफ़ एक क़ानून बनाएगी।
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