नेपाली सत्ता प्रतिष्ठान के शीर्ष पर बैठे प्रधानमंत्री के. पी. ओली ने जब यह एलान किया कि कालापानी, लिपुलेख और लिम्पियाधुरा नेपाल का हिस्सा हैं और उन्हें हर हाल में वापस लाकर रहेंगे तो कई सवाल खड़े हुए। सबसे बड़ा सवाल तो भारत की उस नाकाम कूटनीति से जुड़ा हुआ है, जो अपने छोटे पड़ोसी का विश्वास जीतने में असफल है। इसके साथ ही मौजूदा विदेश नीति पर भी सवाल उठता है, जिसकी प्राथमिकता में पहले से मजबूत रिश्ते वाले देश कहीं नहीं है। दरअसल यह इस ओर भी संकेत करता है कि किस तरह भारत की विदेश नीति दिशाहीन और लुंजपुंज है, जिससे नेपाल भी नहीं संभलता है।