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झारखंड में कांग्रेस की बैठक

झारखंडः क्यों लड़ाई से पहले ही लड़खड़ाती दिख रही कांग्रेस?

2019 के विधानसभा चुनाव में सत्ता गंवाने और लोकसभा चुनावों में आदिवासियों के लिए रिजर्व सभी पांच सीटों पर हार के बाद बीजेपी झारखंड में सत्ता हासिल करने के लिए हर एक दांव आजमाने में जुटी है। हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीजों से पार्टी वैसे ही उत्साह में है। बीजेपी के सबसे बड़े ब्रांड नरेंद्र मोदी की झारखंड चुनाव पर सीधी नजर है। दूसरी तरफ झारखंड में सत्तारूढ़ कांग्रेस चुनावी लड़ाई से पहले ही लड़खड़ाती दिख रही है।

लड़खड़ाने की कई वजहें साफ हैं। साथ ही पिछला स्ट्राइक रेट दोहराने की बड़ी चुनौती भी पार्टी के सामने है। हरियाणा चुनाव में हार से चोट खाई कांग्रेस झारखंड को लेकर सबक लेती या किसी वैसी धारधार रणनीति पर काम करती नहीं दिख रही, जिससे वह अपने बड़े सहयोगी झारखंड मुक्ति मोर्चा के साथ कदमताल कर सके।

बीजेपी जिस आक्रामकता और रणनीति के साथ इस बार सत्तारूढ़ दलों की घेराबंदी करती दिख रही है, उसमें उसकी पहली नजर कांग्रेस की कड़ियों को तोड़ने की है। बीजेपी को पता है झारखंड मुक्ति मोर्चा के गढ़ में दरक लगाना कठिन भी हो सकता है, लेकिन कांग्रेस को आसानी से पीछे धकेला जा सकता है।

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इधर विधानसभा चुनाव लड़ने की तैयारियों में मजबूती दिखाने की कोशिशें करती कांग्रेस की रणनीति में कोई वैसी धार नहीं दिखती, जिससे वह चुनावी लड़ाई में उतरी मोदी-शाह की फौज का सामना करे। झारखंड में कांग्रेस के प्रभारी गुलाम अहमद मीर और प्रदेश अध्यक्ष केशव महतो कमलेश अपने पुराने अनुभवों के साथ सब कुछ संभालने कोशिशों में जुटे हैं, लेकिन उनकी राहें भी आसान नहीं दिखती। कांग्रेस में प्रदेश स्तर पर फायरब्रांड अथवा मास लीडर का भी टोटा है, जो भीड़ को बांध सके अथवा हवाओं को बदल सके।  

81 सदस्यीय झारखंड विधानसभा के लिए दो चरणों में 13 नवंबर को 43 और और 20 नवंबर को 38 सीटों के लिए वोट डाले जाएंगे। झारखंड मुक्ति मोर्चा के सबसे बड़े दारोमदार हेमंत सोरेन हैं। 31 जनवरी की रात प्रवर्तन निदेशालय के द्वारा हेमंत सोरेन को गिरफ्तार किए जाने के बाद पार्टी में जो राजनीतिक परिस्थतियां उभरी थी, उसमें हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन ने मोर्चा संभाला था। उन्होंने खुद गांडेय विधानसभा सीट से उपचुनाव भी जीता। इस बार भी वे चुनाव लड़ रही हैं। उनका कद पार्टी में बड़ा हुआ है और अब वे जेएमएम की फायरब्रांड नेता के अलावा अगली कतार में शामिल रणनीतिकार की भूमिका में शामिल हैं।

हेमंत सोरेन और कल्पना सोरेन की जोड़ी ने अलग- अलग रैली और सभा की कमान संभाल रखी है। अलबत्ता कांग्रेस के कई उम्मीदवारों के नामांकन सभा में शामिल होकर हेमंत सोरेन ने गठबंधन को दम देने की कोशिशें की है। झारखंड मुक्ति मोर्चा के कैडर और समर्थक भी बीजेपी की आक्रमकता को भांपते हुए गोलबंद होते दिख रहे हैं। दल की निगाहें अपने आदिवासी वोट बैंक को इंटैक्ट रखने पर है।

हालांकि कांग्रेस उम्मीदवारों के नामांकन के बाद कई जगहों पर बड़ी भीड़ जरूर जुटी। प्रदेश के सभी प्रमुख नेता अलग-अलग जगहों पर पहुंचे। लेकिन इन भीड़ के पीछे की वजह रही कि कांग्रेस में दर्जन भर नेता, उम्मीदवार अपने- अपने क्षेत्र में प्रभाव रखते हैं। उधर बीजेपी ने उम्मीदवारों के नामांकन के साथ ही चुनावी रंग को गाढ़ा बनाने की तैयारियों के साथ ग्राउंड पर नजर आई। बीजेपी अपनी रणनीति को पुख्ता करने की कोशिशें करती दिख रही है।

उम्मीदवारों की घोषणा में देर और प्रचार युद्ध में पीछे

इंडिया ब्लॉक में शामिल कांग्रेस, झारखंड में जेएमएम के बाद अपनी हैसियत रखती है। इस बार पार्टी गठबंधन में 30 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। गठबंधन में आरजेडी और सीपीआई-एमएल भी शामिल है। हालांकि यह गठबंधन फूलप्रूफ नहीं हुआ। मसलन पलामू रिजन के विश्रामपुर और छतरपुर में कांग्रेस और आरजेडी दोनों ने उम्मीदवार उतारे हैं।

उम्मीदवारों की सूची जारी करने में भी कांग्रेस ने देरी की। इससे उम्मीदवारों में ऊहापोह की स्थिति बनी रही। 28 अक्टूबर की देर रात कांग्रेस ने अपनी तीसरी सूची में बोकारो और धनबाद सीट के लिए उम्मीदवार की घोषणा की थी, जबकि नामांकन भरने की आखिरी तारीख 29 नवंबर थी। पार्टी ने बरही सीट पर अपने विधायक उमाशंकर अकेला का टिकट काटा, तो वे सपा के टिकट से मैदान में कूद पड़े हैं। पलामू में पांकी सीट पर पार्टी के पूर्व विधायक देवेंद्र सिंह बिट्टू टिकट नहीं मिलने के बाद निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर खम ठोंक रहे हैं।
उधर राज्य की 68 सीटों पर चुनाव लड़ रही बीजेपी ने सबसे पहले 19 अक्तूबर को एक साथ 66 उम्मीदवारों की सूची जारी कर दी थी। कांग्रेस समेत इंडिया ब्लॉक में शामिल दलों के घोषणा पत्र का अब तक इंतजार है। बीजेपी ने 25 अक्टूबर को ‘पंच प्रण’ के नाम से पहला घोषणा पत्र जारी किया है। पार्टी तीन चरणों में घोषणा पत्र जारी करने जा रही है।

चुनावी रणनीति को धार देने के लिए अथवा वोटों के समीकरणों के लिहाज से केंद्रीय नेताओं के दौरे अथवा सभा, रैली को लेकर भी कांग्रेस लगातार पिछड़ती नजर आ रही है। 19 अक्टूबर को रांची में राहुल गांधी ने संविधान सम्मान सम्मेलन किया था। इस सम्मेलन में सिविल सोसाइटी और विभिन्न संगठनों के लोग शामिल हुए थे। इस सम्मेलन में राहुल गांधी ने जातीय जनगणना, आरक्षण और संविधान की रक्षा पर जोर दिए। इसे झारखंड में चुनावी फिजा तैयार करने के लिहाज से महत्वपूर्ण माना गया। एक नवंबर को कांग्रेस के महासचिव केसी वेणुगोपाल और सांसद गौरव गोगोई का रांची में कांग्रेसियों के साथ संवाद कार्यक्रम हुआ, पर इसमें भी पार्टी के कई नेताओं ने टिकट बंटवारे में गड़बड़ी के आरोपों के साथ हंगामा खड़ा कर दिया। केसी वेणुगोपाल इसे संभालने की कोशिशों के साथ एकजुटता का मंत्र दे गए।
पहले चरण के चुनाव को लेकर प्रचार के लिए सिर्फ दस दिनों का वक्त है। विधानसभा क्षेत्रवार जिस तरह बीजेपी ने रैलियों, सभा की झड़ी लगा दी है उसमें कांग्रेस कहीं टिकती नजर नहीं आती। कांग्रेस समेत इंडिया ब्लॉक के गलियारे में भी इसकी चर्चा शुरू है कि चुनावी जंग के लिए बीजेपी पहले से सभी हथियारों पर सान चढ़ा रखी है।

पिछले बीस सितंबर से दो अक्टूबर तक बीजेपी की झारखंड में परिवर्तन यात्रा को लेकर झारखंड में पीएम मोदी, गृह मंत्री अमित शाह पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के अलावा दूसरे प्रदेशों के आधे दर्जन मुख्यमंत्री, कई केंद्रीय मंत्री और नेताओं की सभाएं, रैलियां हो चुकी हैं।
इधर तीन नवंबर से बीजेपी नये तेवर के साथ प्रचार युद्ध में उतर रही है। इसी सिलसिले में गृह मंत्री की तीन नवंबर को झारखंड में तीन जगहों पर और चार नवंबर को पीएम मोदी की कोल्हान के चाईबासा में रैली है। लगभग 50 दिनों के दौरान पीएम मोदी का झारखंड में यह तीसरा दौरा होगा। केंद्रीय मंत्री और झारखंड में बीजेपी के चुनाव प्रभारी शिवराज सिंह चौहान और असम के मुख्यमंत्री जो सह प्रभारी हैं, ने वैसे ही सत्तारूढ़ दलों की आलोचनाओं की परवाह किए बिना चार महीनों के दौरान झारखंड को मथ कर रख दिया है।

कांग्रेस ने प्रचार के लिए स्टार प्रचारकों की सूची जारी की है। इसमें कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी, वायनाड से लोकसभा प्रत्याशी प्रियंका गांधी सहित कई राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय नेताओं के नाम शामिल हैं। लेकिन अब तक सभा शुरू नहीं हुई है।

वोट शेयर और जीती सीटें बचाने की चुनौती

2019 के चुनाव में कांग्रेस, झारखंड मुक्ति मोर्चा और आरजेडी के साथ गठबंधन में 31 सीटों पर चुनाव लड़ी थी। पार्टी ने 16 सीटों पर जीत हासिल की। 2014 में हुए चुनाव की तुलना में उसे नौ सीटों का फायदा मिला। कांग्रेस का वोट शेयर 13.87 था। जेएमएम ने 43 सीटों पर लड़कर 30 सीटों पर जीत दर्ज की थी और उसका वोट शेयर 18.73 प्रतिशत था।

2020 में बाबूलाल मरांडी की पार्टी झारखंड विकास मोर्चा का बीजेपी में विलय होने पर कांग्रेस को भी इसका लाभ मिला, जब झाविमों के दो विधायक प्रदीप यादव और आदिवासी चेहरा बंधु तिर्की कांग्रेस के पाले में आ गए। बंधु तिर्की अभी कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष हैं। पार्टी ने इस बार राज्य में आदिवासियों के लिए रिजर्व 28 में से सात सीटों पर अपने विधायकों को टिकट दिए हैं, जिन्हें बीजेपी से सीधी चुनौती मिल रही है। 

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लोकसभा चुनावों में जेएमएम और कांग्रेस को जिन वोटों के साथ और जिन इलाके में सफलता मिली है उसके संकेत साफ है कि आदिवासी, मुस्लिम और दलित वोटों का समर्थन हासिल करने में दोनों दल सफल रहे। लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को आदिवासियों के लिए रिजर्व दो सीटों पर जीत तो मिली, लेकिन पार्टी के उम्मीदवारों को अनारक्षित (सामान्य) पांच सीटों पर हार का सामना करना पड़ा था। विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के सामने यही चुनौती बरकरार है। उसे 23 अनारक्षित (सामान्य) सीटों पर बीजेपी और उसकी सहयोगी दलों- आजसू, जदयू से लड़कर अपना स्ट्राइक रेट बचाना है। अनारक्षित सीटों और शहरी इलाकों में में बीजेपी का दबदबा पहले से रहा है। हालांकि इन इलाकों में ही कांग्रेस में कई दमदार चेहरे मैदान में है, जो बीजेपी के लिए चुनौती साबित हो सकते हैं।  

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नीरज सिन्हा
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