झारखंड सरकार ने असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा और केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान पर "विभिन्न समुदायों में नफरत फैलाने" और राज्य के शीर्ष नौकरशाहों को धमकी देने का आरोप लगाया है। झारखंड सरकार ने इस संबंध में चुनाव आयोग को पत्र लिखा है। यह जानकारी इंडियन एक्सप्रेस ने दी है। भाजपा ने सरमा और चौहान को झारखंड का चुनाव प्रभारी बनाया है। इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले दोनों राज्य का लगातार दौरा कर रहे हैं। सरमा के घटिया बयान तो सारी सीमाएं पार कर गए हैं।
झारखंड सरकार ने यह पत्र 2 सितंबर को केंद्रीय चुनाव आयोग को लिखा है। पत्र में, झारखंड सरकार ने असम के मुख्यमंत्री के झारखंड में आकर दिए गए "झूठे बयानों" को सामने रखा है। उसने पूछा कि क्या यह शीर्ष नौकरशाहों सहित मेजबान राज्य के सरकारी पदाधिकारियों के चरित्र हनन नहीं है। अभी चुनाव कार्यक्रम की घोषणा भी नहीं हुई है और भाजपा ने दो लोगों को राज्य में चुनाव प्रभारी बना दिया है। दोनों महत्वपूर्ण पदों पर हैं।
चुनाव आयोग के सूत्रों ने कहा कि आदर्श आचार संहिता लागू नहीं होने के कारण उनके हाथ बंधे हुए हैं। झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेतृत्व वाली झारखंड सरकार ने उन नेताओं के खिलाफ "कड़ी से कड़ी" कार्रवाई की मांग की, जिनके बारे में उनका कहना था कि वे "कीचड़ उछालने, झारखंड राज्य के आंतरिक मामलों और प्रशासन में हस्तक्षेप करने" में शामिल थे।
इस पत्र पर प्रधान सचिव (कैबिनेट सचिव एवं सतर्कता विभाग) वंदना डाडेल के हस्ताक्षर हैं। इसमें कहा गया है कि हालांकि अभी तक राज्य में आदर्श आचार संहिता लागू नहीं हुई है, चौहान और सरमा को भाजपा का राज्य चुनाव प्रभारी बनाया गया है। उन्हें 17 जून को नियुक्त किया गया था। दोनों हर हफ्ते झारखंड का दौरा करते हैं। पत्र में यह भी कहा गया है कि इससे झारखंड की पूरी राज्य मशीनरी गणमान्य व्यक्तियों को जेड-प्लस सुरक्षा देने में बिजी रहती है।
पत्र में कहा गया है कि “झारखंड सरकार कैबिनेट मंत्री शिवराज सिंह और असम के सीएम हिमंत बिस्वा सरमा को सभी आवश्यक सुविधाएं प्रदान करने में अपने कर्तव्य और जिम्मेदारियों को निभा रही है… हालांकि, यह ध्यान दिया जाए है कि राज्य के उनके दौरे के हर अवसर पर… वे लोग उत्तेजक और शत्रुतापूर्ण बयानों में लिप्त रहते हैं। झारखंड राज्य प्रशासन के खिलाफ मीडिया में ज़बरदस्त आरोप लगाते हैं। जिनमें डीजीपी, एसएसपी, एसपी जैसे शीर्ष अधिकारियों की गतिविधियां पर टिप्पणियां शामिल हैं...। वे कई गांवों का दौरा कर रहे हैं, रैलियां कर रहे हैं। निकट भविष्य में प्रतिशोध के डर से ईमानदार कर्मचारी हतोत्साहित हो गए हैं। राज्य में विभिन्न समुदायों के बीच नफरत फैलाने की प्रवृत्ति को बढ़ावा मिल रहा है।”
पत्र में सरमा, चौहान और अन्य भाजपा नेताओं के सोशल मीडिया पोस्ट के स्क्रीनशॉट भी लगाये गये हैं। जिसमें आरोप लगाया गया है कि भाजपा "सांप्रदायिक तनाव पैदा करने" की कोशिश कर रही है। पत्र में देवघर के पूर्व उपायुक्त मंजूनाथ भजंत्री को चुनाव आयोग द्वारा चुनाव ड्यूटी से हटाने और प्रतिबंधित करने का उल्लेख किया गया था, जिन्हें बाद में लोकसभा की विशेषाधिकार समिति ने तलब किया था। पत्र में देवघर के पुलिस अधीक्षक पीयूष पांडे और तत्कालीन डीजीपी झारखंड एमवी राव और अजीत पीटर डुंग डंग (तत्कालीन एसपी देवघर) पर कार्रवाई का भी उल्लेख किया गया है, जिसमें कहा गया है कि पत्र गोड्डा के सांसद निशिकांत दुबे की मामूली शिकायतों पर आधारित था।
पत्र में कहा गया है कि झारखंड की नौकरशाही और पुलिस पर "व्यवस्थित और सुनियोजित हमले" के कारण ऊपर से लेकर निचले स्तर पर कर्मचारियों में "भय की व्यापक भावना" पैदा हुई है। पत्र में ईसीआई से राज्य के नौकरशाहों के खिलाफ की गई शिकायतों की जांच करते समय निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए भी कहा गया। चुनाव आयोग से आग्रह किया गया है कि “(चौहान और सरमा को) राजनीतिक लाभ के लिए सरकारी खजाने की कीमत पर आधिकारिक पद और राज्य की आधिकारिक मशीनरी के दुरुपयोग की अनुमति न देने की सलाह दें।”
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