जम्मू कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री और पीडीपी नेता महबूबा मुफ़्ती को रिहा कर दिया गया है। जम्मू कश्मीर में पिछले साल 5 अगस्त को अनुच्छेद 370 में बदलाव के वक़्त से वह हिरासत में थीं। पहले उन्हें नज़रबंद रखा गया था लेकिन बाद में उन्हें सख़्त क़ानून जन सुरक्षा अधिनियम यानी पीएसए के तहत हिरासत में रखा गया था। महबूबा की रिहाई तब हुई जब सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय हिरासत की सीमा ख़त्म होने वाली थी। महबूबा मुफ़्ती के ट्विटर हैंडल से ट्वीट कर रिहाई की जानकारी दी गई। अब तक महबूबा की बेटी इल्तिजा उनके ट्विटर हैंडल को संभाल रही थीं। महबूबा के ट्विटर हैंडल से ट्वीट किया गया, 'चूँकि मुफ्ती का अवैध हिरासत आख़िरकार ख़त्म हुआ, मैं उन सभी को धन्यवाद देना चाहती हूँ जिन्होंने इन कठिन समय में मेरा साथ दिया। मैं आप सभी का आभार मानती हूँ। अब इल्तिजा विदा लेती है। ख़ुदा आपकी रक्षा करे।'
As Ms Mufti’s illegal detention finally comes to an end, Id like to thank everybody who supported me in these tough times. I owe a debt of gratitude to you all. This is Iltija signing off. فی امان اﷲ May allah protect you
— Mehbooba Mufti (@MehboobaMufti) October 13, 2020
I’m pleased to hear that @MehboobaMufti Sahiba has been released after more than a year in detention. Her continued detention was a travesty & was against the basic tenets of democracy. Welcome out Mehbooba.
— Omar Abdullah (@OmarAbdullah) October 13, 2020
जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाये जाने के बाद से ही पहले हिरासत और फिर राजनीतिक नज़रबंदी में रहे राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को मार्च महीने में ही रिहा किया गया था। उनसे पूर्व दो हफ़्ते पहले उमर के पिता फ़ारूक़ अब्दुल्ला को भी रिहा कर दिया गया था। जबकि राज्य की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती को नज़रबंद रखा गया था।
केंद्र की मोदी सरकार ने बीते साल 5 अगस्त को जम्मू-कश्मीर राज्य का विशेष दर्जा ख़त्म कर दिया था और उसे दो हिस्सों में बाँट दिया था। जम्मू कश्मीर और लद्दाख दो केंद्रशासित प्रदेश बना दिया गया था।
उमर अब्दुल्ला पर सरकार ने पब्लिक सेफ़्टी एक्ट (पीएसए) लगाया था। उन पर बीती 5 फ़रवरी को पीएसए लगाया गया था।
पीएसए के तहत आतंकवादियों, अलगाववादियों और जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा बलों पर पत्थर फेंकने वालों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की जाती रही है। यह पहली बार हुआ जब मुख्यधारा के राजनेताओं पर पीएसए लगाया गया।
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