क्या कहा है महबूबा ने?
इस एक मिनट और बीस सेकंड के ऑडियो क्लिप में, 61 वर्षीय महबूबा मुफ्ती कह रही हैं,'मुझे आज एक साल से अधिक समय बाद रिहा किया गया है। इस दौरान, 5 अगस्त, 2019 के काले दिन के काले निर्णय ने मेरे दिल और आत्मा पर हर पल हमला किया। मुझे एहसास है कि जम्मू-कश्मीर के सभी लोगों की यही स्थिति रही होगी। इस डकैती और अपमान को भुलाया नहीं जा सकता है। अब हम सभी को यह दोहराना होगा कि दिल्ली दरबार ने 5 अगस्त को जो असंवैधानिक, अलोकतांत्रिक और ग़ैरक़ानूनी तरीके से हमसे छीन लिया है, इसे वापस लेना होगा। बल्कि उसके साथ-साथ कश्मीर मुद्दा, जिस के लिये जम्मू-कश्मीर में हजारों लोगों ने अपने जीवन का बलिदान दिया है, हमें इसे सुलझाने के लिए अपना संघर्ष जारी रखना होगा। मेरा मानना है कि यह रास्ता बिल्कुल भी आसान नहीं होगा, लेकिन मुझे यकीन है कि हम सभी का साहस और दृढ़ संकल्प हमें इस कठिन मार्ग पर चलने में मदद करेगा। आज, जब मुझे रिहा किया गया तो मैं चाहती हूं कि जम्मू-कश्मीर के सभी लोग, जो देश की विभिन्न जेलों में बंद हैं, उन्हें जल्द से जल्द रिहा किया जाए।'
पिछले सा़ल, जब नई दिल्ली भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 और 35 'ए' को रद्द करने की तैयारी कर रहा था, महबूबा मुफ़्ती के इस बयान ने दिल्ली के राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी थी कि यदि नई दिल्ली जम्मू और कश्मीर की विशेष संवैधानिक स्थिति को हटा देती है, तो कश्मीर में, भारत के पास तिरंगा फहराने वाला कोई नहीं होगा।
गुपकार घोषणा
4 अगस्त को सर्वदलीय बैठक में महबूबा मुफ्ती भी मौजूद थीं, जिसे फ़ारूक़ अब्दुल्ला ने श्रीनगर के गुपकार रोड पर अपने आवास पर बुलाया था। बैठक में जम्मू-कश्मीर की विशेष संवैधानिक स्थिति को सुरक्षित रखने का संकल्प लिया गया। संकल्प, जिसे 'गुपकार घोषणा' के रूप में जाना जाता है, पर फ़ारूक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती ने हस्ताक्षर किए। उस रात उन सभी नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया था।“
'महबूबा मुफ़्ती के पास संघर्ष ही एकमात्र तरीका है, जिससे वह कश्मीर के लोगों के साथ अपनी विश्वसनीयता बहाल कर सकती हैं, जो बीजेपी के साथ गठबंधन सरकार बना कर खो चुकी हैं। महबूबा की पार्टी पीडीपी के अधिकांश वरिष्ठ नेताओं ने पार्टी छोड़ दी है। फिलहाल, उनकी पार्टी में ज़्यादा दम नहीं है।
सिबत मोहम्मद हसन, राजनीतिक विश्लेषक
आरोप पत्र
महबूबा मुफ़्ती के ख़िलाफ़ वह आरोप पत्र, जिसके कारण उन्हें सार्वजनिक सुरक्षा क़ानून के तहत 14 महीने की कैद में रहना पड़ा, उसकी विशेषज्ञों ने आलोचना की क्योंकि इसमें कुछ हास्यास्पद आरोप लगाए गए।डोज़ियर में कहा गया था कि 'अभियुक्त (महबूबा मुफ़्ती) को लोग ख़तरनाक, षड्यंत्रकारी और उनके आक्रामक स्वभाव के कारण, बाप की लाडली के नाम से बुलाते हैं।'
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