लंबे समय से आतंकवाद से जूझ रहा जम्मू-कश्मीर एक बेहद ख़तरनाक मोड़ पर पहुँच चुका है। पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद की चपेट में दशकों से परेशान भारत का यह अशांत राज्य नए किस्म के आतंकवाद का सामना कर रहा है। यह है घरेलू आतंकवाद। अब स्थानीय लोग बड़ी तादाद में आतंकवाद का रास्ता चुन रहे हैं, भारतीय सुरक्षा बलों से मुठभेड़ में मारे जा रहे हैं। ये लोग पाकिस्तान से आने वाले आतंकवादी नहीं है, ये शोपियाँ, पुलवामा, अंनतनाग और कुलगाम जैसी जगहों से हैं। ये सामान्य मध्यवर्ग से हैं, ज़्यादातर लोग पढ़े लिखे युवक हैं।
जम्मू-कश्मीर में चल रहे आतंकवाद में का यह नया और अधिक ख़तरनाक ट्रेंड है। इन लोगों से निपटना ज़्यादा मुश्किल होगा क्योंकि स्थानीय होने के कारण सुरक्षा बलों पर हमला करने की स्थिति में है, इन्हें स्थानीय सच्चाई का पता है, ये सुरक्षा बलों के ठिकानों को जानते हैं, ये निशाना आसानी से चुन सकते हैं।
इंडियन एक्सप्रेस ने सरकारी आँकड़े देते हुए एक ख़बर छापी है। इस ख़बर के मुताबिक़, इस साल शुरू के छह महीने यानी जनवरी से जून तक घाटी में कुल 121 आतंकवादी मारे गए। लेकिन पिछले साल इस दौरान 76 आतंकवादी मारे गए थे। पूरे 2018 में कुल 192 आतंकवादी अलग-अलग मुठभेड़ों में मारे गए थे। उसके एक साल पहले यानी 2017 में 145 लोग मारे गए थे। उस साल शुरू के 6 महीने यानी जनवरी से जून तक कुल 57 आतंकवादी मारे गए थे। हाँ, यह भी सच है कि इस साल पत्थरबाजी, विरोध प्रदर्शन और हड़ताल में कमी आई है।
स्थानीय आतंकवादी
सरकारी आँकड़ों के मुताबिक़, इस साल अब तक मारे गए 121 आतंकवादियों में सिर्फ़ 21 पाकिस्तानी हैं। यानी 100 घाटी के लोग हैं। इसका मतलब यह है कि मारे गए आतंकवादियों में 82 प्रतिशत स्थानीय हैं। ये सभी 121 आतंकवादी अलग अलग जगहों पर सुरक्षा बलों के साथ हुई मुठभेड़ों में मारे गए, लेकिन ये तमाम झड़पें घाटी में ही हुईं। ये वारदात दक्षिण कश्मीर में हुईं। इन मुठभेड़ों में पुलवामा में 36 आतंकवादी मारे गए, शोपियाँ में 34 और अनंतनाग में 16। इसके अलावा घाटी के अलग अलग जगहों पर छोटी मोटी झड़पें होती रहीं। चिंता की बात यह भी है कि ये खबरें ऐसे समय आ रही हैं जब केंद्र सरकार ने सुरक्षा बलों की 100 कंपनियाँ यानी
10 हज़ार सैनिकों को वहाँ भेजा है। घाटी के आतंकवादी
सुरक्षा बलों का कहना है कि इस साल अब तक 76 नए लोगों ने हथियार उठा लिए और आतंकवाद का ख़तरनाक रास्ता चुन लिया है। इनमें सबसे ज़्यादा 39 लोग हिज़बुल मुजाहिदीन में गए। जैश-ए-मुहम्मद में 21 लोग शामिल हुए हैं। आतंकवाद का ख़तरनाक रास्ता चुनने वालों में सभी लोग घाटी के ही हैं। इनमें से सबसे ज़्यादा 20 लोग पुलवामा के हैं। शोपियाँ के 15, अनंतनाग ज़िले के 13 और कुलगाम के भी 13 युवक आतंकवादी गुटों में शामिल हुए हैं।
यह साफ़ है कि जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद पहले की तरह ही चल रहा है। सरकार के दावों के उलट न तो वहाँ आतंकवादी वारदातों में कमी हुई है न ही इसमें मरने वाले आतंकवादियों की तादाद में। इसके उलट पहले से अधिक लोग आतंकवाद का रास्ता चुन रहे हैं और उनमें अधिकतर घाटी के ही हैं।
इस ख़तरनाक ट्रेंड को इससे जोड़ कर देखा जाना चाहिए कि इसके साथ ही राज्य में इसलामिक स्टेट जैसे आतंकवादी संगठन के पैठ बनाने की ख़बरें भी आ रही हैं। इन संगठनों से स्थानीय युवक ही जुड़ रहे हैं। इसे इससे समझा जा सकता है कि इसलामिक स्टेट ने अपनी समाचार एजेन्सी ‘अमक़’ में दावा किया है कि उसने हिन्दुस्तान में अपना नया प्रांत स्थापित किया है, इसका नाम है ‘विलाया-ए-हिन्द’। इस संगठन ने यह भी दावा किया है कि कश्मीर में सुरक्षा बलों के हाथों मारा गया आतंकवादी इशफ़ाक अहमद सोफ़ी उसका सदस्य है। शोपियाँ में शुक्रवार को हुई मुठभेड़ में सोफ़ी मारा गया था।
35 ए हटाने की तलवार!
इससे भी ख़तरनाक स्थिति यह है कि स्थानीय लोगों में यह रुझान ऐसे समय देखा जा रहा है जब केंद्र की सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी कभी
अनुच्छेद 35 ए को ख़त्म करने की बात करती है तो कभी वह अनुच्छेद 370 हटाने की धमकी देती है। ये अनुच्छेद कश्मीर को भारत में विशेष राज्य का दर्ज देते हैं और स्थानीय लोगों के दिल के क़रीब हैं। ये दोनों ही अनुच्छेद स्थानीय लोगों के लिए संवेदनशील हैं। जब-जब इनसे छेड़-छाड़ करने की बात उठती है, स्थानीय कश्मीरियों को लगता है कि उनके साथ अन्याय किया जा रहा है। यह अलगाव की भावना को मजबूत करेगा, इसकी पूरी संभावना है।
अपनी राय बतायें