जम्मू-कश्मीर के अलगाववादी नेता और ऑल पार्टी हुर्रियत कांफ्रेंस के प्रमुख पद से कुछ दिन पहले ही इस्तीफ़ा देने वाले सैयद अली शाह गिलानी को पाकिस्तान का सर्वोच्च नागरिक सम्मान निशान-ए-पाकिस्तान दिया जा सकता है। पाकिस्तानी संसद ने इससे जुड़ा एक प्रस्ताव पारित कर सरकार से कहा है कि गिलानी को इस सम्मान से नवाज़ा जाए। इसके साथ ही उनके नाम पर एक विश्वविद्यालय का नामकरण करने की माँग भी की गई है।
क्या है मामला?
कुछ दिन पहले ही गिलानी ने पाकिस्तान की तीखी आलोचना की थी। उन्होंने पाक-अधिकृत कश्मीर के अलगाववादी नेताओं पर भ्रष्टाचार में शामिल होने और इसलामाबाद की हां में हां मिलाने का आरोप भी लगाया था।
गिलानी को कश्मीर के अलगाववादी नेताओं में सबसे प्रमुख माना जाता है। लेकिन पिछले कुछ समय से उनकी पाकिस्तान से नहीं बन रही थी, इनके नामित व्यक्ति अब्दुल्ला गिलानी को पाक-अधिकृत कश्मीर के हुर्रियत कांफ्रेंस के प्रमुख के पद से हटा दिया गया था।
क्या कहा था गिलानी ने?
इससे गुस्साए गिलानी ने पाक-अधिकृत कश्मीर के अलगाववादी नेताओं पर आरोप लगाया था कि वे पाकिस्तान स्थित मेडिकल कॉलेज में दाखिले के लिए कश्मीरी छात्रों से पैसे लेते हैं।
इसके बाद गिलानी ने हुर्रियत कान्फ्रेंस के 'आजीवन प्रमुख' पद से इस्तीफ़ा देकर सबको चौंका दिया था।
दूसरी ओर, लंबे से समय से नज़रबंद गिलानी कश्मीरी अवाम से बुरी तरह कट चुके थे और आम जनता पर उनकी पहले जैसी पकड़ नहीं बची थी। कश्मीर के विशेष दर्जे को ख़त्म करने के मुद्दे पर न तो वह सड़क पर उतरे न ही किसी तरह के आन्दोलन की शुरुआत की।
अप्रासंगिक गिलानी?
गिलानी ने इस्तीफ़े का एलान करने वाले अपने ख़त में लिखा था कि हुर्रियत के घटक दल जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा ख़त्म होने के बाद लोगों का नेतृत्व करने में असफल रहे हैं। गिलानी ने यह भी कहा है कि उनकी विचारधारा में कोई अंतर नहीं आया है।
दूसरी ओर केंद्र सरकार ने हुर्रियत के नेताओं से बातचीत पर जोर न देकर उनके यहाँ छापे डलवाए, उन्हें गिरफ़्तार किया गया और नज़रबंद कर दिया गया। उनके बैंक खातों की पड़ताल की गयी और यह आरोप लगाया कि उन्हें पाकिस्तान से पैसे आते हैं और वे इस पैसे का इस्तेमाल कश्मीर को देश से अलग करने की साज़िश में कर रहे हैं।
गिलानी अब पूरी तरह अलग-थलग पड़ चुके हैं और अप्रासंगिक हो चुके हैं।
पाकिस्तान का सर्वोच्च नागरिक सम्मान देने का मतलब साफ़ है कि गिलानी अब रिटायर्ड जीवन बिताएं। इसलामाबाद उन्हें संकेत दे रहा है कि अब अलगाववादी आन्दोलन की बागडोर कोई और संभालेगा।
बता दें कि निशान-ए-पाकिस्तान का पुरस्कार इसके पहले पूर्व भारतीय प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई को मिल चुका है। इसके अलावा चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग, चीनी प्रधानमंत्री ली कछियांग, पूर्व चीनी प्रधानमंत्री ली पेंग, पूर्व चीनी राष्ट्रपति हू जिनताओ, अफ़्रीकी नेता नेल्सन मंडेला और नेपाल के राजा वीरेंद्र को भी मिल चुका है।
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