पिछले साल 5 अगस्त को जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा ख़त्म करते हुए नरेंद्र मोदी सरकार ने अगर यह सोचा था कि वह कश्मीर के राजनीतिक दलों को अप्रासंगिक कर देगी तो शायद वो गलत था। एक साल बाद कश्मीर के मुख्यधारा राजनीतिक दलों ने फिर से कमर कसनी शुरू कर दी है।
जम्मू-कश्मीर के 6 राजनीतिक दलों के नेताओं ने पूर्व मुख्यमंत्री फ़ारूक़ अब्दुल्ला के घर पर एक बैठक बीते दिनों की। बैठक के बाद जारी साझा बयान जारी कर कहा गया कि वे अनुच्छेद 370 की बहाली के लिये नये सिरे से मुहिम शुरू करेंगे। इस बयान में गुपकार घोषणापत्र को लागू करने पर ज़ोर दिया गया।
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क्या है गुपकार घोषणा पत्र
श्रीनगर के गुपकार रोड स्थित फ़ारूक़ अब्दुल्ला के घर पर 4 अगस्त, 2019 को राज्य के राजनीतिक दलों की बैठक हुई थी, जिसमें कहा गया था कि जम्मू-कश्मीर का संविधान, अनुच्छेद 370, अनुच्छेद 35 'ए' और कश्मीर की पहचान हर हाल में बनाए रखने के लिए संघर्ष किया जाएगा। उसके अगले ही दिन राज्य का विशेष दर्जा ख़त्म कर दिया गया और तमाम बड़े नेताओं को जेल में डाल दिया गया। जम्मू-कश्मीर में एक लाख से अधिक सुरक्षा कर्मी तैनात कर दिए गए और पूरे राज्य में लॉकडाउन लगा दिया गया।बैठक के बाद जारी साझा बयान पर नैशनल कॉन्फ्रेंस के फ़ारूक अब्दुल्ला, पीडीपी की महबूबा मुफ़्ती, पीपल्स कॉन्फ़्रेंस के सज्जाद लोन, कांग्रेस के जी. ए. मीर. सीपीआईएम के एम. वाई. तारीगामी और आवामी नैशनल कॉन्फ्रेंस के मुज़फ़्फ़र शाह के दस्तखत थे।
सरकार की नई पहल
राजनीतिक दलों की ये पहल उस वक़्त हो रही है जब जम्मू कश्मीर में मोदी सरकार की तरफ़ से नई पहल की जा रही है और राजनीतिक प्रक्रिया को नये सिरे से शुरू करने की तैयारी है। पिछले दिनों सरकार ने पुराने उपराज्यपाल की जगह मनोज सिन्हा की नियुक्ति की हैं। मनोज सिन्हा को एक गंभीर नेता के तौर पर जाना जाता है। वह केंद्र में मंत्री रह चुके हैं और विवादों से अक्सर दूर रहते हैं । साथ ही कश्मीर से दस हज़ार सैनिकों की वापसी की भी तैयारी है।कश्मीरी नेताओं की बैठक और उसके बाद के साझा बयान से यह साफ़ हो रहा है कि राज्य में मोदी सरकार और बीजेपी की रणनीति बरक्स ये नेता भी अपनी तैयारी में जुट गये हैं।
लोग छोड़ रहे हैं बीजेपी
अब तक सभी राजनीतिक दल के लोग जेल में बंद थे, बीजेपी एकमात्र दल था, जिसके लोग घाटी में बाहर थे। इस दौरान कुछ लोग बीजेपी से जुड़े, कुछ पंचायत सदस्यों ने भी बीजेपी का समर्थन किया। पर अब स्थिति उलट रही है, लोग बीजेपी छोड़ रहे हैं, पंचायत सदस्य तक इस्तीफ़े दे रहे हैं। इसके पीछे आतंकवादियों का डर एक बडा कारण है। पिछले दिनों आतंकवादियों ने बीजेपी नेताओं को चुन चुन कर निशाना बनाया हैँ।सज्जाद लोन जैसे बडे नेता ने भी बीजेपी का साथ छोड़ दिया है। सज्जाद लोन वह व्यक्ति हैं, जिन्होंने 2014 में ही बीजेपी का हाथ पकड़ा था, लेकिन उन्हें भी लगने लगा है कि वह राज्य की जनता को बीजेपी के बारे में समझा नहीं पाएंगे।
घाटी के लोगों की सोच
विपक्षी दलों की बैठक से यह बात उभरी है कि लोगों में यह आम धारणा बन गई है कि बीजेपी जम्मू-कश्मीर के जनसंख्या को बदलना चाहती है, इस एक मात्र मुसलिम-बहुल राज्य से उसकी पहचान छीनना चाहती है।जम्मू-कश्मीर की डोमीसाइल नीति को इसका बड़ा कारण बताया जा रहा है। इसके तहत अब बाहर के लोगों को भी एक निश्चित समय सीमा तक राज्य में रहने के बाद राज्य की नागरिकता मिल सकती है, वे जायदाद खरीद सकते हैं, उन्हें नौकरी मिल सकती है। इसे इस रूप में देखा जा रहा है कि धीरे-धीरे शेष भारत के लोग घाटी में आकर बस जाएंगे और भविष्य में यहाँ न तो मुसलमान बहुसंख्यक रहेंगे न ही कश्मीरी।
कश्मीरियों की आशंका
इसके अलावा नए नियमों के अनुसार, सुरक्षा बल स्थानीय प्रशासन की अनुमति के बगैर ही अपनी मर्जी से निर्माण कार्य कर सकते हैं। नई आवास नीति में बाहर के लोगों के उद्योग और उनके व्यापार वगैरह के लिए अलग से ज़मीन की व्यवस्था करने की बात कही गई है। इसके साथ ही कश्मीर के बाहर के लोगों को नदी वगैरह में खनन का काम मिल सकेगा।जम्मू-कश्मीर के लोग इसे इस रूप में देख रहे हैं कि उनके पास जो कुछ था, वह उनसे छीना जा रहा है। उनके घर में बाहर के लोग काबिज हो जाएंगे और उनकी संपदा बाहर के लोगों के हाथों चली जाएगी।
जनता का दबाव
लोगों का गुस्सा इससे समझा जा सकता है कि मई महीने में जब नैशनल कॉन्फ्रेंक के नेता जेल में बंद थे, पार्टी प्रवक्ता आगा रसूल ने खुले आम कह दिया था कि पार्टी के बड़े नेताओं को चुप्पी तोड़नी चाहिए और विशेष दर्जे पर स्टैंड लेना चाहिए। कई बड़े और वरिष्ठ नेताओं ने भी शीर्ष नेतृत्व से कहा उन्होंने राज्य की पहचान और अस्मिता पर किसी तरह का समझौता किया तो राज्य में पार्टी पूरी तरह ख़त्म हो जाएगी।पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा कि वह तब तक चुनाव नहीं लड़ेंगे जब तक जम्मू-कश्मीर फिर से एक राज्य नहीं बन जाता तो उनका मखौल उड़ाया गया, लोगों ने उन पर तंज किए और गुस्सा जताया।
लोगों का गुस्सा इस बात पर था कि उमर ने राज्य के विशेष दर्जा को बहाल करने के मुद्दे पर क्यों नहीं कुछ कहा। इसी तरह का दवाब पीडीपी और दूसरे दलों पर भी है। इसी वजह से इन नेताओं ने गुपकार घोषणा पत्र को दुहराया है।
इन दलों का यह गठजोड़ अब राज्य की राजनीति तय करेगा। इनका ही राज्य में राजनीतिक आधार है, इनके पास कार्यकर्ता हैं और लोग इनकी बात सुन सकते हैं। उन्होंने यदि राज्य के विशेष दर्जे को बहाल करने के लिए यदि आन्दोलन छेड़ा तो निश्चित तौर पर राज्य की राजनीति करवट लेगी और उसमें बीजेपी और मोदी सरकार के लिए मुसीबत बढ़ सकती है।
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