जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ़्ती पर पब्लिक सेफ़्टी एक्ट यानी पीएसए लगाया गया है। महबूबा मुफ़्ती ने पीएसए का ऑर्डर मिलने की पुष्टि की है। यह क़ानून उनके अलावा पीडीपी और नेशनल कॉन्फ़्रेंस के दो अन्य नेताओं पर भी लगाया गया है। पीएसए एक सख़्त क़ानून है और इसके तहत किसी भी व्यक्ति को गिरफ़्तार किया जा सकता है और बिना किसी ट्रायल के दो साल तक जेल में रखा जा सकता है। सरकार यह क़ानून किसी व्यक्ति पर राज्य की सुरक्षा को ख़तरे का हवाला देकर लगाती है।
यह क़ानून काफ़ी पहले से जम्मू-कश्मीर में है, लेकिन पिछले साल ही इसे पूरे देश में लागू किया गया है और तब इस पर काफ़ी विवाद हुआ था। कहा गया था कि यह क़ानून सरकार को अपने ही लोगों के ख़िलाफ़ असीमित अधिकार देता है और इससे राज्य के ख़तरे के नाम पर लोगों की आज़ादी कभी भी छीनी जा सकती है। यह इसलिए कि व्यक्ति दो साल तक कहीं कोई अपील भी दायर नहीं कर सकता।
रिपोर्ट के अनुसार मजिस्ट्रेट ने महबूबा मुफ़्ती को उनके आवास पर इस डिटेंशन ऑर्डर को दिया, जहाँ वह पहले से हिरासत में हैं। महबूबा मुफ़्ती के ट्विटर हैंडल से ट्वीट कर इसकी पुष्टि की गई है। इस ट्वीट में महबूबा ने कहा है, 'उस तानाशाही सरकार से राज्य के दो पूर्व मुख्यमंत्रियों पर पीएसए जैसा कठोर क़ानून लगाने की ही उम्मीद कर सकते हैं, जिसने 9 साल के बच्चे पर भी देशद्रोही टिप्पणी के लिए केस किया हो। देश के मूल्यों को अपमान किया जा रहा है, ऐसे में हम कब तक दर्शक बने रहेंगे।' महबूबा की नज़रबंदी के बाद से इस ट्विटर एकाउंट को उनकी बेटी आधिकारिक तौर पर इल्तिजा मुफ्ती संभाल रही हैं।
Ms Mufti received a PSA order sometime back.Slapping the draconian PSA on 2 ex J&K CMs is expected from an autocratic regime that books 9 year olds for ‘seditious remarks’. Question is how much longer will we act as bystanders as they desecrate what this nation stands for?
— Mehbooba Mufti (@MehboobaMufti) February 6, 2020
उमर अब्दुल्ला पर भी पीएसए लगाया गया है। पिछले साल अगस्त में जम्मू-कश्मीर से जुड़े अनुच्छेद 370 में बदलाव किए जाने के बाद से ही ये दोनों नेता नज़रबंद चल रहे हैं। 'हिंदुस्तान टाइम्स' की एक रिपोर्ट में एक पुलिस अधिकारी के हवाले से कहा गया है कि दोनों नेताओं पर पीएसए इसलिए लगाया गया है क्योंकि दोनों नेताओं की नज़रबंदी की मियाद गुरुवार को समाप्त हो रही थी।
इसके अलावा जिन दो अन्य नेताओं पर पीएसए लगाया गया, उनमें नैशनल कॉन्फ्रेंस के सीनियर नेता अली मोहम्मद सागर और पीडीपी के सरताज मदनी शामिल हैं। बता दें कि उमर के पिता फारूक अब्दुल्ला पर 17 सितंबर, 2019 को ही पीएसए लगा दिया गया था।
बता दें कि ये सभी नेता अनुच्छेद 370 में बदलाव किए जाने के समय से ही हिरासत में हैं। केंद्र सरकार ने 5 अगस्त को जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 के प्रावधानों में फेरबदल किया था। इससे राज्य को प्राप्त विशेष दर्जा समाप्त हो गया था। राज्य को दो हिस्सों में बाँटकर जम्मू-कश्मीर और लद्दाख क्षेत्र को केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया है। इस फ़ैसले के बाद से क्षेत्र में पाबंदी लगा दी गई है। एक रिपोर्ट के मुताबिक़ 400 से ज़्यादा नेताओं को गिरफ़्तार किया गया था। हालाँकि, हाल के दिनों में कुछ नेताओं को छोड़ा गया है।
जम्मू-कश्मीर में चारों नेताओं के ख़िलाफ़ गुरुवार को पीएसए उस दिन लगाया गया जब सोमवार को ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद में राज्य के दो पूर्व मुख्यमंत्रियों के उन बयानों का ज़िक्र किया जिसे अगस्त में अनुच्छेद 370 में बदलाव के दौरान दोनों नेताओं ने दिया था।
पीएसए क्यों है 'ख़तरनाक'?
8 अप्रैल, 1978 को जम्मू-कश्मीर जन सुरक्षा अधिनियम को मंजूरी दी गई थी। तत्कालीन मुख्यमंत्री शेख अब्दुल्ला ने इसे विधानसभा से पारित कराया था। इसके तहत 16 साल से अधिक की उम्र के किसी भी आदमी को गिरफ़्तार किया जा सकता है और बग़ैर मुक़दमा चलाए उसे दो साल तक जेल में रखा जा सकता है। बाद में 2018 में इसमें संशोधन किया गया, जिसके तहत यह प्रावधान जोड़ा गया कि जम्मू-कश्मीर के बाहर भी किसी आदमी को पीएसए के तहत गिरफ़्तार किया जा सकता है।
इस अधिनियम के तहत कोई व्यक्ति यदि ऐसा कोई काम करता है, जिससे सार्वजनिक क़ानून व्यवस्था पर बुरा असर पड़ता है तो उसे एक साल के लिए गिरफ़्तार किया जा सकता है।
यदि कोई आदमी ऐसा कुछ करता है जिससे राज्य की सुरक्षा पर कोई संकट खड़ा होता है तो उसे दो साल के लिए जेल में रखा जा सकता है। इस क़ानून में यह कहा गया है कि पीएसए के तहत गिरफ़्तारी का आदेश डिवीज़नल कमिश्नर या ज़िला मजिस्ट्रेट दे सकते हैं।
गिरफ़्तार करने वाले आदमी के लिए यह बताना ज़रूरी नहीं होगा कि वह क्यों गिरफ़्तार कर रहा है।
पीएसए की धारा 22 के तहत यह कहा गया है कि इस अधिनियम के प्रावधानों के तहत अच्छी मंशा से काम करने वाले के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी।
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