जम्मू-कश्मीर के हंदवाड़ा में शहीद होने वाले पाँच जवानों में से एक कर्नल आशुतोष शर्मा अपनी जान की परवाह किए बिना बंधक बनाए गए नागरिकों को छुड़ाने के लिए आतंकवादियों की माँद में घुस गए थे। वह आख़िरी समय तक आतंकवादियों के ख़िलाफ़ बहादुरी से लड़ते रहे।
कर्नल आशुतोष शर्मा सेना के 21 राष्ट्रीय राइफ़ल्स यूनिट के कमांडिंग अफ़सर थे। आतंकवाद के ख़िलाफ़ मिशन में अनुकरणी बहादुरी के लिए उन्हें दो बार शौर्य पुरस्कार मिला। इनमें से एक बार तो यह सम्मान कमांडिंग अफ़सर रहने के दौरान बहादुरी दिखाने के लिए मिला था। कर्नल शर्मा ने तब एक आतंकवादी से कई सुरक्षा कर्मियों की जानें बचाई थीं। आतंकवादी कपड़ों में ग्रेनेड छुपाकर जवानों के क़रीब जा रहा था। तब उस आतंकवादी को जवानों के बीच पहुँचने से पहले ही मार गिराया था। इससे सेना और जम्मू-कश्मीर पुलिस के कई जवानों की जानें बच गई थीं क्योंकि एक बार यदि वह आतंकवादी जवानों के बीच पहुँचकर ग्रेनेड को फोड़ देता तो बड़ा नुक़सान हो सकता था।
कर्नल शर्मा काफ़ी लंबे समय से कश्मीर घाटी में तैनात थे। कश्मीर घाटी में तैनात श्रेष्ठ कमांडिंग अफ़सरों में उनकी गिनती थी। आतंकवाद के ख़िलाफ़ अभियान में हमेशा उन्होंने अपनी टीम का आगे रहकर नेतृत्व किया। ऐसा ही हंदवाड़ा में भी हुआ। हंदवाड़ा के चांजमुल्ला इलाक़े में आतंकियों की मौजूदगी की जानकारी मिलने के बाद सुरक्षा बलों ने साझा ऑपरेशन चलाया। इसमें सेना की राष्ट्रीय रायफल्स और जम्मू-कश्मीर पुलिस के जवान शामिल हुए। नागरिकों को आज़ाद कराने के लिए सेना के कर्नल आशुतोष शर्मा, मेजर अनुज सूद, नायक राजेश व लांस नायक दिनेश और जम्मू-कश्मीर पुलिस के एक सब-इंस्पेक्टर शकील क़ाज़ी आतंकवादियों द्वारा कब्जा किए गए घर में घुसे।
इस दौरान एक-एक करके घर में बंधक बनाए गए सभी नागरिकों को सुरक्षित निकाल लिया गया। जांबाजों ने पहले नागरिकों को सुरक्षित किया। लेकिन इस दौरान बहादुर जवानों को भी कई गोलियाँ लग गईं। बता दें कि इस मुठभेड़ में दो आतंकवादी मारे गए हैं।
'एएनआई' के अनुसार, कर्नल आशुतोष शर्मा पिछले पाँच साल में सेना में कर्नल रैंक के पहले ऐसे अफ़सर हैं जो आतंकवादियों के ख़िलाफ़ मुठभेड़ में शहीद हुए हैं। इससे पाँच साल पहले जनवरी 2015 में कर्नल एम एन राय कश्मीर घाटी में एक अभियान में शहीद हुए थे और उसी साल नवंबर में कर्नल संतोष महादिक भी शहीद हुए थे।
अपनी राय बतायें