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जम्मू कश्मीर राज्य का विशेष दर्जा छीने जाने के साढ़े तीन साल बाद केंद्र सरकार वहां तैनात सेना को कश्मीर घाटी के भीतरी इलाकों से हटाने पर विचार कर रही है। यह बात आज 20 फरवरी को इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित एक रिपोर्ट में कही गई है। अगर सेना के इस प्रस्ताव को मंजूरी मिली तो सेना की मौजूदगी सिर्फ लाइन ऑफ कंट्रोल (एलओसी) पर होगी। जम्मू कश्मीर के राजनीतिक दल लंबे समय से कश्मीर के भीतरी इलाकों से सेना हटाने की मांग कर रहे हैं। राज्य में प्रशासन बदलने के बाद तमाम अधिकारी सरकार से कह रहे हैं कि जम्मू कश्मीर की स्थिति सामान्य बताने का दावा तभी किया जा सकता है, जब वहां पर सेना नहीं हो।
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार जम्मू-कश्मीर में सेना के लगभग 1.3 लाख जवान तैनात हैं, जिनमें से लगभग 80,000 सीमा पर तैनात हैं। राष्ट्रीय राइफल्स के लगभग 40,000-45,000 कर्मियों के पास कश्मीर के भीतरी इलाकों में आतंकवाद विरोधी घटनाओं को संभालने की जिम्मेदारी है।
इंडियन एक्सप्रेस को गृह मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया कि सेना हटाने के प्रस्ताव पर विचार करने का मकसद यही है कि वहां न सिर्फ सामान्य हालात का दावा करना है, बल्कि उसे दिखाना भी है। केंद्र सरकार का दावा है कि जम्मू-कश्मीर में आतंकवादी हिंसा की घटनाओं और सुरक्षाकर्मियों की हत्याओं में 5 अगस्त, 2019 से पहले के मुकाबले लगभग 50 फीसदी की कमी आई है। अधिकारी ने कहा कि केंद्र सरकार ने जो फैसले लिए उस वजह से 5 अगस्त, 2019 के बाद से घाटी में हिंसा लगातार कम हुई है। पथराव लगभग खत्म है। कानून-व्यवस्था की स्थिति काफी हद तक नियंत्रण में है। ऐसे में अगर सामान्य हालत का दावा किया जाएगा तो वहां सेना की बड़ी मौजूदगी की बात अजीब लगेगी। एक अन्य सरकारी अधिकारी का कहना है कि आदर्श स्थिति तो यह होगी कि जम्मू-कश्मीर पुलिस को भीतरी इलाकों में आतंकवादरोधी अभियानों की कमान सौंप दी जाए। इस प्रस्ताव पर चर्चा हो रही है।
इंडियन एक्सप्रेस को सूत्रों ने बताया कि चर्चा में यह भी आया है कि सेना को चरणबद्ध तरीके से वापस लिया जाए। हो सकता है कि सेना को पहले अनंतनाग और कुलगाम जैसे कुछ जिलों से वापस लिया जाए। इसके बाद स्थिति का आकलन किया जाएगा। नतीजे बेहतर रहे तो अधिक निकासी के लिए कदम उठाए जाएंगे।
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