बीजेपी को छोड़कर जम्मू कश्मीर के तमाम राजनीतिक दलों के विरोध के बावजूद केंद्रीय गृह मंत्री ने आज मंगलवार को राजौरी में कहा कि राज्य के पहाड़ी समुदाय को जल्द ही आरक्षण का लाभ मिलेगा। राज्य में कई संगठन और पीडीपी समेत कई दल इस तरह के आरक्षण का विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि राज्य में हिन्दुओं को भी आपस में बांटा जा रहा है। अमित शाह के मंगलवार के भाषण में आरक्षण का उल्लेख कई सवालों को भी जन्म दे गया है। जम्मू कश्मीर से बाहर रह रहे पहाड़ी समुदाय के लोगों ने कहा कि हमें फिर से आश्वासन मिल गया। आखिर कब तक आश्वासन के भरोसे बैठे रहेंगे।
गृह मंत्री अमित शाह ने आज मंगलवार 4 अक्टूबर को जम्मू-कश्मीर के राजौरी में घोषणा की कि गुर्जरों और बक्करवाल के अलावा पहाड़ी समुदाय को जल्द ही अनुसूचित जनजाति (एसटी) के रूप में शिक्षा और नौकरियों में आरक्षण मिलेगा। यदि पहाड़ी लोगों को एसटी का दर्जा मिलता है, तो यह भारत में किसी भाषाई समूह को आरक्षण प्राप्त करने का पहला उदाहरण होगा। केंद्र सरकार को इसके लिए संसद में आरक्षण कानून में संशोधन करना होगा। हालांकि राज्य में गुर्जरों और बक्करवाल समुदाय को पहले से ही आरक्षण मिला हुआ है। लेकिन अमित शाह की घोषणा पहाड़ी समुदाय के लिए थी। वहां का पहाड़ी समुदाय कौन है, यह तस्वीर साफ नहीं है। कश्मीरी गुर्जर और बक्करवाल पहले से ही इस आरक्षण में छेड़छाड़ का विरोध कर रहे हैं।
शाह ने रैली में कहा, आयोग (उपराज्यपाल द्वारा गठित) ने रिपोर्ट भेज दी है और गुर्जर, बक्करवाल और पहाड़ी समुदायों के लिए आरक्षण की सिफारिश की है। यह जल्द ही दिया जाएगा। उन्होंने दावा किया कि अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को हटाए जाने के बाद ही ऐसा आरक्षण संभव हो पाया है। अब यहां के अल्पसंख्यकों, दलितों, आदिवासियों, पहाड़ियों को उनका हक मिलेगा।
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कुछ लोगों ने गुर्जरों और बक्करवालों को भी एसटी दर्जा दिलाने के लिए "उकसाने" की कोशिश की, लेकिन लोग उनकी चाल समझ गए।
- अमित शाह, 4 अक्टूबर को राजौरी रैली में
उन्होंने भीड़ से 5 अगस्त, 2019 को इस कदम के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को धन्यवाद देने का आग्रह किया, जब जम्मू और कश्मीर को कुछ स्वायत्तता देने वाले अनुच्छेद 35 ए और 370, संवैधानिक प्रावधानों को हटा दिया गया था।
राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांटा गया था। लद्दाख अलग हो गया था। जिनमें से जम्मू और कश्मीर में अलग विधानसभा बन सकती है। चुनाव अगले साल की शुरुआत में होने की संभावना है क्योंकि विधानसभा क्षेत्रों के निर्धारण और मतदाता सूची को अंतिम रूप देने की प्रक्रिया लगभग समाप्त हो चुकी है।
अमित शाह ने कहा, मैं आपसे जम्मू-कश्मीर को यहां शासन करने वाले तीन परिवारों के चंगुल से मुक्त करने की अपील करना चाहता हूं। उन्होंने परिवारों का नाम नहीं लिया, लेकिन महबूबा मुफ्ती की पीडीपी, उमर अब्दुल्ला की नेशनल कॉन्फ्रेंस और गांधी परिवार की तरफ संकेत साफ समझा जा सकता है। लेकिन शाह का दावा तब अटपटा लगने लगता है जब वहां की पर नजर डालें।
जम्मू और कश्मीर पहले एक राज्य था। वहां 2018 में एक चुनी हुई सरकार थी, जिसमें बीजेपी भी जूनियर पार्टनर थी। बीजेपी ने तब पीडीपी की महबूबा मुफ्ती को मुख्यमंत्री के रूप में स्वीकार किया था। इसी तरह नेशनल कॉन्फ्रेंस भी कभी केंद्र में बीजेपी की सहयोगी रही है।
बहरहाल, शाह ने कहा कि सत्ता अब 30,000 लोगों के पास है जो निष्पक्ष चुनाव के माध्यम से पंचायतों और जिला परिषदों के लिए चुने गए थे। यह रेखांकित करते हुए कि ग्राम स्तर के चुनाव पहले ही हो चुके हैं। पहले, केंद्र द्वारा विकास के लिए भेजा गया सारा पैसा कुछ लोगों द्वारा हड़प लिया गया था, लेकिन अब सब कुछ जनकल्याण पर खर्च किया जाता है।
उन्होंने यह भी दावा किया कि मोदी सरकार द्वारा आतंकवादियों के खिलाफ की गई कड़ी कार्रवाई की वजह से अब सुरक्षा की स्थिति बहुत बेहतर है। हालांकि राज्य के विपक्षी दलों का कहना है कि बीजेपी का इरादा कुछ औऱ है। वो यहां चुनाव जीतने के लिए सारा खेल कर रहे हैं।
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बीजेपी के दावे जमीनी हकीकत को झुठलाते हैं। बीजेपी आरक्षण का इस्तेमाल समुदायों को बांटने के लिए कर रही है।
महबूबा मुफ्ती, पीडीपी प्रमुख, 4 अक्टूबर को
इंटरनेट बंद किया
राजौरी में अमित शाह की रैली के दौरान राजौरी में इंटरनेट सेवाएं बंद रहीं। हालांकि इंटरनेट बंद करने की कोई वजह नहीं बताई गई। समझा जाता है कि पहाड़ी समुदाय को आरक्षण देने के संकेत के मद्देनजर धरना-प्रदर्शन को रोकने के लिए इंटरनेट सेवाएं बंद की गईं।
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