भारत का झंडा नहीं उठाने के मुद्दे पर दिया बयान क्या जम्मू-कश्मीर के पूर्व मु्ख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती को राजनीतिक रूप से भारी पड़ेगा? यह सवाल इसलिए उठ रहा है कि उनकी पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के 3 वरिष्ठ सदस्यों ने इसी मुद्दे पर पार्टी छोड़ दी है।
टी. एस. बाजवा, वेद महाजन और हुसैन ए. वफ़ा ने यह कह कर इस्तीफ़ा दे दिया है कि 'मुफ़्ती की कही बातों से उनकी राष्ट्रवादी भावनाएं आहत हुई हैं।'
याद दिला दें कि पिछले हफ़्ते महबूबा मुफ़्ती ने कहा था कि जब तक जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा बहाल नहीं हो जाता, वह न चुनाव लड़ेंगी, न ही भारत का झंडा उठाएंगी।
क्या कहा था महबूबा ने?
मुफ़्ती ने कहा था, "हम राष्ट्रीय ध्वज तभी उठाएंगे, जब हमारे राज्य का ध्वज को वापस लाया जाएगा। राष्ट्रीय ध्वज केवल इस (जम्मू- कश्मीर) ध्वज और संविधान वजह से है। हम इसी ध्वज के कारण देश के बाकी हिस्सों से जुड़े हुए हैं।" पब्लिक सेफ़्टी एक्ट के तहत गिरफ़्तार महबूबा मुफ़्ती ने 14 महीने बाद जेल से रिहा होने पर कहा था कि राज्य के विशेष दर्जे को 'डकैतों' ने लूट लिया।
बीजेपी ने क्या किया?
राष्ट्रीय झंडा नहीं उठाने के महबूबा के बयान पर बीजेपी के कार्यकर्ताओ ने इस तरह प्रतिक्रिया जताई कि उन्होंने सोमवार को पीडीपी के जम्मू कार्यालय पर तिरंगा फहरा दिया। सैकड़ों की संख्या में बीजेपी कार्यकर्ता तिरंगा लेकर वहां पहुँचे और नारेबाजी की। इनमें से कुछ लोग पीडीपी के झंडे वाले खंभे के पास की दीवार पर चढ़ गए। कार्यकर्ताओं ने खंभे पर तिरंगा झंडा लहरा दिया।
यह मुद्दा एक बड़ा विवाद बनता जा रहा है। मुफ़्ती ने बीते शुक्रवार को केंद्र सरकार पर तीखा हमला बोलते हुए कहा था कि राज्य के विशेष दर्जे को फिर से पाने के लिए कोई भी संवैधानिक लड़ाई नहीं छोड़ेंगी। महबूबा ने केंद्र पर हमलावर अंदाज में कहा, "एक डाकू पराक्रमी हो सकता है, लेकिन उसे चोरी का सामान वापस करना होगा। उन लोगों ने संविधान को ध्वस्त कर दिया। संसद के पास यह शक्ति नहीं कि वो विशेष दर्जा छीन सके।"
याद दिला दें कि जम्मू-कश्मीर के 6 राजनीतिक दलों ने अलायंस ऑफ़ गुप्कर डेक्लेरेशन नामक एक राजनीतिक फ्रंट बनाया है, जिसका मक़सद राज्य में 5 अगस्त 2019 के पहले की स्थिति को बहाल करना है। इसमें पीडीपी, नैशनल कॉनफ्रेंस, कांग्रेस, सीपीआईएम, जम्मू-कश्मीर पीपल्स कॉन्फ्रेंस और जम्मू-कश्मीर पीपल्स मूवमेंट शामिल हैं।
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