loader

विदेशी निवेशक भारत छोड़ चीन की ओर क्यों भाग रहे हैं?

भारत का शेयर बाज़ार औंधे मुंह क्यों गिर रहा है? अक्टूबर 2024 से भारतीय शेयर बाज़ार ने 1 ट्रिलियन डॉलर गँवा दिया है, जबकि चीन के बाज़ार को 2 ट्रिलियन डॉलर का फ़ायदा हुआ है। चीन के हैंगसेंग सूचकांक में केवल एक महीने में 16% की वृद्धि हुई है, जबकि भारत की निफ्टी में 2% से अधिक की गिरावट आई है। तो क्या भारत से विदेशी निवेशक चीन की ओर भाग रहे हैं या स्थिति कुछ और ही है?

दरअसल, पिछले कुछ महीनों से भारतीय शेयर बाजार जूझ रहा है। पिछले साल अक्टूबर महीने से सेंसेक्स में क़रीब 12 फ़ीसदी की गिरावट आई है। पिछले छह महीनों में सेंसेक्स और निफ्टी में क्रमशः 9% और 10% की गिरावट आई है। कहा जा रहा है कि यह गिरावट इसलिए आई है कि विदेशी निवेशक बड़े पैमाने पर भारतीय शेयर बाजार से अपना पैसा निकाल रहे हैं। जो रिपोर्टें आ रही हैं वह इस बात की पुष्टि करती हैं।

ताज़ा ख़बरें

सितंबर महीने में बाजार के शिखर पर पहुँचने के बाद से विदेशी संस्थागत निवेशकों यानी एफ़आईआई ने क़रीब 25 अरब डॉलर की निकासी की है। यह तब हुआ जब शेयर बाज़ार में उच्च मूल्यांकन और अर्थव्यवस्था के धीमा होने की चिंताएँ हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार भारतीय शेयर बाजार में एफआईआई की बिकवाली लगातार जारी है। जनवरी में एक्सचेंजों के माध्यम से 81,903 करोड़ रुपये के शेयर बेचने के बाद एफआईआई ने इस महीने 21 फरवरी तक 30,588 करोड़ रुपये के शेयर बेचे।

तो सवाल है कि विदेशी निवेशक शेयर बाज़ार से पैसे निकालकर कहाँ ले जा रहे हैं? इस सवाल का जवाब इसमें भी मिलता है कि ये पैसे क्यों निकाल रहे हैं? 

विदेशी निवेशक विभिन्न कारणों से भारतीय शेयरों से पैसा निकाल रहे हैं। इनमें भारत का जीडीपी विकास दर धीमा होना, कंपनियों के कमजोर नतीजे, अमेरिका में ट्रेजरी यील्ड में वृद्धि, अमेरिका में मजबूत आर्थिक विकास और डॉलर में तेजी शामिल है। अमेरिकी बाजार में बेहतर रिटर्न मिलने के कारण, एफआईआई भारत जैसे उभरते बाजारों के बजाय वहां निवेश करना पसंद कर रहे हैं। इस बीच, चीन के शेयर बाजार ने भी जोरदार वापसी की है। इस वजह से भारतीय इक्विटी तुलनात्मक रूप से कम आकर्षक लग रही है। 
चीन की एआई डीपसीक की एंट्री, चीनी कंपनियों के अपेक्षाकृत सस्ते मूल्यांकन, अलीबाबा और लेनोवो जैसी फर्मों के अच्छे प्रदर्शन से एफ़आईआई चीन में फिर से रुचि दिखा रहे हैं।
लाइव मिंट की रिपोर्ट के अनुसार जियोजित फाइनेंशियल सर्विसेज के शोध प्रमुख विनोद नायर ने कहा, "'सेल इंडिया, बाय चीन' की रणनीति से लाभ मिलता है। बाज़ार का मूड सतर्क है, निराशावादी भावनाएँ तब तक बनी रहने की संभावना है जब तक कि कॉर्पोरेट आय में उल्लेखनीय सुधार नहीं होता और आसान ग्लोबल लिक्विडिटी और स्थिर मुद्रा के साथ अनुकूल माहौल नहीं बनता है।"
अर्थतंत्र से और ख़बरें

एफ़डीआई में भी बड़ी गिरावट

देश की आर्थिक स्थिति को दिखाने वाला एक इंडिकेटर एफ़डीआई यानी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश भी है। हाल के महीनों में इसमें काफ़ी ज़्यादा गिरावट आई है। इसका मतलब है कि एफ़डीआई निवेशकों का भारतीय अर्थव्यवस्था से मुनाफा कमाने से विश्वास डगमगाया है। एफडीआई में रिकॉर्ड गिरावट की ख़बर आई है। पिछले वर्षों की समान अवधि की तुलना में इस वित्त वर्ष की अप्रैल से अक्टूबर अवधि में भारत में शुद्ध प्रत्यक्ष विदेशी निवेश यानी एफ़डीआई प्रवाह 12 साल के निचले स्तर पर आ गया। 

आरबीआई के आँकड़ों से पता चलता है कि अप्रैल-अक्टूबर 2024 में भारत में शुद्ध एफडीआई प्रवाह घटकर 14.5 बिलियन डॉलर रह गया, जो 2012-13 के बाद सबसे कम है। तब यह 13.8 बिलियन डॉलर था। 2012-13 से 2023-24 तक शुद्ध एफडीआई महामारी के बाद से साल दर साल धीमा होता जा रहा है। 2020-21 के अप्रैल से अक्टूबर की अवधि के दौरान शुद्ध एफडीआई 34 बिलियन डॉलर था, जो 2021-22 में घटकर 32.8 बिलियन डॉलर, 2022-23 में 27.5 बिलियन डॉलर और 2023-24 में 15.7 बिलियन डॉलर रह गया।

ख़ास ख़बरें

जबकि विदेशी कंपनियां निवेश के लिए भारत से दूर होती दिख रही हैं, ऐसा लगता है कि भारतीय कंपनियां भी ऐसा ही कर रही हैं। अप्रैल-अक्टूबर 2024 में भारतीय कंपनियों द्वारा विदेशी निवेश बढ़कर 12.4 बिलियन डॉलर हो गया, जो कम से कम 2011-12 के बाद सबसे अधिक है। यह पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में 55 प्रतिशत की वृद्धि है।

जियोजित फाइनेंशियल सर्विसेज के मुख्य निवेश रणनीतिकार डॉ. वी के विजयकुमार के अनुसार, भारतीय बाजारों के लिए सबसे बड़ी चिंता एफआईआई की निरंतर बिक्री है। इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने कहा, 'चीनी शेयरों में तेज उछाल एक और निकट अवधि की चुनौती है। वेल्थमिल्स सिक्योरिटीज में इक्विटी स्ट्रैटेजी के निदेशक क्रांती बाथिनी ने भी बताया कि अल्पावधि में निवेशकों के लिए चीन का बाजार अधिक आकर्षक हो गया है।' हालाँकि, चीनी शेयरों में मजबूत तेजी के बावजूद, सभी विशेषज्ञों का मानना ​​​​है कि यह रुझान लंबे समय तक नहीं रहेगा।

(इस रिपोर्ट का संपादन अमित कुमार सिंह ने किया है)
सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
क़मर वहीद नक़वी
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

अर्थतंत्र से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें