रिज़र्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल सरकार को लोकलुभावन घोषणाएँ करने के लिए रिज़र्व बैंक के ख़ज़ाने को ख़ाली नहीं करना चाहते। पटेल ने मंगलवार को वित्त मामलों की संसद की स्थायी समिति के सामने यह बात साफ़-साफ़ कह दी। पटेल का कहना है कि बैंक ने यह पैसा बचा कर रखा है कि कभी कोई अचानक संकट आ जाए, तो उससे उबरा जा सके और देश की साख को बट्टा न लगे। यह पैसा इसलिए नहीं है कि इसे रोज़मर्रा के ख़र्चों में उड़ाया जाए।
बैंक-सरकार में तनातनी जारी
केन्द्र सरकार और रिज़र्व बैंक के बीच बहुत दिनों से बैंक के भरे-पूरे ख़ज़ाने को लेकर काफ़ी तनातनी चल रही है। रिज़र्व बैंक के पास क़रीब नौ लाख सत्तर हज़ार करोड़ रुपये का अतिरिक्त धन भंडार है। सरकार चाहती है कि बैंक इसमें से कुछ हिस्सा अपने पास रखे और बाक़ी पैसा सरकार को दे दे ताकि इस चुनावी साल में सरकार बहुत-सी लोकलुभावन योजनाओं की घोषणाएँ की जा सकें।बैंक और सरकार के बीच झगड़े की एक बड़ी जड़ यही है। सरकार का कहना है कि दुनिया के दूसरे तमाम देशों के केन्द्रीय बैंकों (रिज़र्व बैंक भारत का केन्द्रीय बैंक है) के मुक़ाबले रिज़र्व बैंक कहीं ज़्यादा अतिरिक्त धन भंडार अपने पास रखता है। इतना पैसा ख़ज़ाने में बेकार पड़ा रहता है। यह सरकार को मिले तो सरकार उसे बहुत-सी उपयोगी मदों में ख़र्च कर सकती है। पैसा कुछ काम ही आए, तो अच्छा है।पैनल को लेकर एकराय नहीं
तो कितना पैसा रिज़र्व बैंक अपने पास 'रिज़र्व' में रखे? 19 नवम्बर की बैठक में तय हुआ कि इसके लिए एक पैनल बनेगा, जो सारे मामले की समीक्षा कर अपने सुझाव देगा। लेकिन इस पैनल की भी अपनी अलग कहानी है। सूत्रों के मुताबिक़ पैनल की अध्यक्षता को लेकर सरकार और रिज़र्व बैंक में अलग-अलग राय है। सरकार चाहती है कि रिज़र्व बैंक के पूर्व गवर्नर बिमल जालान इस पैनल के अध्यक्ष बनें, लेकिन रिज़र्व बैंक ने अपने पूर्व डिप्टी गवर्नर राकेश मोहन का नाम सुझाया है। जालान और मोहन को लेकर क्यों दोनों पक्षों की राय अलग-अलग है, इसकी भी एक पृष्ठभूमि है।
स्वायत्तता में न हो दख़ल
पटेल ने संसद की स्थायी समिति के सामने फिर कहा कि बैंक की स्वायत्तता से छेड़छाड़ नहीं की जानी चाहिए। मौद्रिक नीति में किसी और का कोई हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए। यह नीति तय करना केवल और केवल रिज़र्व बैंक का काम होना चाहिए। क्योंकि विशेषज्ञ ही मौद्रिक नीति के जटिल पहलुओं को समझ सकते हैं।इसी तरह पटेल ने समिति से कहा कि जमाकर्ताओं का हित देखना भी केवल रिज़र्व बैंक का ही ज़िम्मा है और इस मामले में रिज़र्व बैंक की स्वायत्ता अक्षुण्ण रहनी ही चाहिए। इसी तरह अगर रिज़र्व बैंक अपने अतिरिक्त धन भंडार को बनाए रखने पर ज़ोर दे रहा है, वह इसलिए कि यह देश की 'ट्रिपल ए' रेटिंग के लिए निहायत ज़रूरी है।तेल की क़ीमत है चुनौती
स्थायी समिति की बैठक में उर्जित अर्थव्यवस्था को मिलनेवाली जिन चुनौतियों की तरफ़ इशारा कर रहे थे, उनमें सबसे बड़ी चुनौती तो तेल की क़ीमतों की ही है, जिनमें पिछले कुछ सालों में भारी उतार-चढ़ाव बना हुआ है और जिसके कारण दुनिया के कई देशों की अर्थव्यवस्था भारी दबाव में रही है। रुपये की गिरती क़ीमतें भी एक बड़ी चुनौती है और कभी-कभी रुपये की क़ीमत को थामने के लिए रिज़र्व बैंक को बाज़ार में भारी मात्रा में डॉलर बेचने भी पड़ते हैं।इसके अलावा रिज़र्व बैंक का कहना है कि जीएसटी से उम्मीद से कम हुई वसूली और फ़सलों के समर्थन मूल्य में बढ़ोत्तरी का दबाव भी हमारी अर्थव्यवस्था पर है। इनसे सरकार को अपने वित्तीय और राजकोषीय प्रबन्धन में मुश्किलें आ सकती हैं।लेकिन पिछले ही दिनों वित्त मंत्री अरुण जेटली का बयान आया था कि सरकार की वित्तीय स्थिति अभी बिलकुल ठीक है और सरकार को रिज़र्व बैंक से फ़िलहाल कोई पैसा नहीं चाहिए।
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