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आयकर सीमा बढ़ाना तो ठीक है, पर सोशल सेक्टर के ख़र्च में कटौती क्यों?

आयकर छूट की सीमा को बढ़ा देने के बाद भले ही कुछ लोग इस बजट को लेकर बम-बम हैं, लेकिन उस बड़ी आबादी का क्या जो सोशल सेक्टर पर निर्भर है। सोशल सेक्टर पर ही गरीब, निम्न वर्ग और निम्न मध्य वर्ग का भविष्य निर्भर करता है। सरकार भी इस सोशल सेक्टर के माध्यम से शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, रोजगार, आर्थिक गतिविधियों में महिलाओं की भागीदारी और किसानों की भलाई कर पाती है। लेकिन इस बजट में क्या सरकार ने सोशल सेक्टर के मद में बढ़ोतरी की है?

वित्त वर्ष 2023-24 के आँकड़ों के अनुसार आयकर भरने वालों की संख्या क़रीब-क़रीब 7 करोड़ है। अब 140 करोड़ की आबादी में सोशल सेक्टर पर निर्भर लोगों की संख्या के बारे में अंदाज़ा लगाना ज़्यादा मुश्किल नहीं होना चाहिए। आयकर छूट की सीमा को लेकर बजट की तारीफ़ में जो 'मास्टरस्ट्रोक' शब्द का इस्तेमाल किया जा रहा है, वह किसके लिए है, इसे बेहद आसानी से समझा जा सकता है। लेकिन सोशल सेक्टर पर निर्भर लोगों का क्या? आइए, जानते हैं कि इस क्षेत्र के लिए बजट में क्या प्रावधान किया गया है। 

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वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट भाषण में ‘विकसित भारत’ के छह सिद्धांत गिनाए हैं। इसमें शून्य गरीबी, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, व्यापक स्वास्थ्य सेवा, सार्थक रोजगार, आर्थिक गतिविधियों में महिलाओं को शामिल करना और किसानों की भलाई शामिल हैं। लेकिन ऐसा करने के लिए जिन सेक्टर को बड़े आवंटन की ज़रूरत है, उसमें इस बार ऐसा कुछ नहीं किया गया है। 

कृषि

इस हिस्से में सबसे ज़्यादा कृषि जुड़ा है। कृषि को विकास का इंजन माना जाता है। द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार इस बार के बजट में कृषि और किसान कल्याण विभाग के लिए आवंटन में मुश्किल से ही कोई बढ़ोतरी हुई है- 2024-25 (बीई) में 1.22 लाख करोड़ रुपये से 2025-26 (बीई) में 1.27 लाख करोड़ रुपये हो गया है। वास्तव में, यह तो चालू वर्ष के आवंटन 2024-25 के संशोधित अनुमान 1.31 करोड़ रुपये से भी कम है। 

रिपोर्ट के अनुसार तिलहन पर राष्ट्रीय मिशन का कृषि बजट के आँकड़ों में ज़िक्र ही नहीं है और दालों के लिए मिशन के लिए सिर्फ़ 1,000 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं। खाद्य सब्सिडी के लिए आवंटन भी कमोबेश पिछले साल के 2 लाख करोड़ रुपये जितना ही है। इससे उपभोक्ताओं को स्थिर और किफायती कीमतें मिल सकती थीं, जिससे वे अपनी आय को अन्य चीजों पर ख़र्च कर सकते थे। 
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मनरेगा

मनरेगा का बजट भी नहीं बढ़ाया गया है, जबकि ग्रामीण क्षेत्र में यह रोजगार और जीने के लिए न्यूनतम कमाई के लिए एक अहम योजना साबित हुई है। इस योजना के तहत मजदूरी में वृद्धि के लिए श्रमिक संघों और कॉर्पोरेट क्षेत्र की मांगों के बावजूद आवंटन 86,000 रुपये करोड़ पर स्थिर है। 

ऐसा तब है जब इस योजना को ग़रीबों के लिए वरदान बताया जाता रहा है। अर्थशास्त्र में नोबल पुरस्कार विजेता जोसेफ़ स्टिग्लिट्ज़ ने कहा था, 'मनरेगा भारत का एकमात्र सबसे बड़ा प्रगतिशील कार्यक्रम और पूरी दुनिया के लिए सबक़ है।' 

जब 2008 में वैश्विक आर्थिक संकट आया था, मनरेगा ने भारत को आर्थिक मंदी से उबरने में मदद की थी। यही स्थिति कोविड काल में भी हुई थी जब ग्रामीण मज़दूरों के लिए मनरेगा वरदान साबित हुआ।

रोजगार और कौशल 

पिछले साल घोषित रोजगार और कौशल के लिए प्रधान मंत्री पैकेज भी वास्तव में आगे नहीं बढ़ा है। अंग्रेज़ी अख़बार की रिपोर्ट के अनुसार 2024-25 में पीएम इंटर्नशिप योजना के लिए आवंटन 2,000 करोड़ रुपये था, लेकिन इसे घटाकर 380 करोड़ (संशोधित) रुपये कर दिया गया। हालांकि, इस साल का आवंटन काफी अधिक 10,780 करोड़ रुपये है, जो लगभग 18 लाख लोगों को कवर करने के लिए पर्याप्त होगा। अब तक पंजीकरण की संख्या केवल 1,25,000 है। इसका उद्देश्य पांच वर्षों में एक करोड़ इंटर्नशिप देना है। यदि लक्ष्य प्राप्त भी हो जाते हैं, तो इन इंटर्नशिप के लिए केवल 5,000 रुपये प्रति माह का भुगतान किया जाता है और नौकरी की कोई गारंटी नहीं है।

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आंगनवाड़ी और पोषण कार्यक्रम

सक्षम आंगनवाड़ी और पोषण 2.0 के लिए शायद ही कोई बढ़ोतरी हुई है- 2024-25 (बीई) के 21,200 करोड़ रुपये से 2025-26 (बीई) के 21,960 करोड़ रुपये हो गया है। दो साल पहले, 2023-24 के लिए वास्तविक व्यय पहले से ही 21,810 करोड़ रुपये था। इन लागत मानदंडों को 2018 से अपडेट नहीं किया गया है और उन्हें केवल महंगाई की भरपाई करने के लिए भी काफ़ी ज़्यादा बजट की ज़रूरत होगी। यदि आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं के मानदेय में भी वृद्धि की जाती है तो और भी अधिक आवंटन की ज़रूरत होगी।

अब ऐसे में आयकर छूट की सीमा बढ़ा देने से क्या सबकुछ ठीक हो जाएगा? अर्थव्यवस्था मांग और ख़पत से चलती है। यदि अर्थव्यवस्था में मांग ही नहीं होगी तो इससे ख़पत कैसे बढ़ेगी? क्या 140 करोड़ की आबादी में आयकर रिटर्न भरने वाले सिर्फ़ सात करोड़ लोगों को मामूली राहत देने से मांग और ख़पत बढ़ जाएगी? यदि उस बड़े हिस्से के हाथ में जब तक आमदनी नहीं आएगी तो क्या मांग और ख़पत का साइकल सामान्य रूप से घूम पाएगा? क्या बड़े पैमाने पर रोजगार के लिए कुछ प्रावधान किए गए हैं? क्या आम लोगों की आमदनी बढ़ाने के उपाए किए गए हैं? क्या लोगों को बचत करने पर प्रोत्साहन देने जैसे उपाए किए गए हैं? क्या बजट के अब तक सामने आए प्रावधानों से ऐसा लगता है?

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क़मर वहीद नक़वी
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