loader

इंडोनेशिया के एक फ़ैसले से भारत में खाने का तेल और होगा महंगा!

भारत में खाने वाले तेल के दाम फिर से नयी ऊँचाई को छू सकते हैं। महंगाई की मार झेल रहे लोग तेल की बढ़ने वाली क़ीमतों को कितना सह पाएँगे, यह तो बाद में पता चलेगा, लेकिन इसकी क़ीमतें बढ़ने की आशंका भर से भारत सहित दुनिया भर में हंगामा मचा है। 

दरअसल, पाम ऑयल के सबसे बड़े निर्यातक इंडोनेशिया ने पाम ऑयल के निर्यात पर अचानक प्रतिबंध लगाने का फ़ैसला ले लिया है। उसने यह फ़ैसला इसलिए लिया है ताकि उसके घरेलू बाज़ार में तेल व कच्चे माल की कमी न आए और बढ़ती क़ीमतों पर लगाम लगाया जा सके। पाम ऑयल दुनिया के सबसे अधिक इस्तेमाल किए जाने वाले खाना पकाने के तेलों में से एक है। इंडोनेशिया के इस फ़ैसले से भारत को तगड़ा झटका लगने की आशंका है। ऐसा इसलिए क्योंकि इंडोनेशिया पर भारत की निर्भरता काफ़ी ज़्यादा है। भारत में पाम ऑयल के कुल आयात का क़रीब 50-60 फ़ीसदी हिस्सा इंडोनेशिया से आता है। इंडोनेशिया यह प्रतिबंध 28 अप्रैल को लगाएगा, लेकिन इसकी घोषणा के बीच ही अभी इस हफ़्ते के आख़िर में क़रीब 5 फ़ीसदी दाम बढ़ गया है।

ताज़ा ख़बरें

अब रिपोर्टों में कहा जा रहा है कि यदि कल यह प्रतिबंध लागू होता है तो क़ीमतें क़रीब 10 फ़ीसदी बढ़ सकती हैं। अगर इंडोनेशिया 28 अप्रैल से कच्चे पाम तेल के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने का फ़ैसला करता है तो साबुन, शैम्पू, कुकीज़ और नूडल्स की क़ीमतें भी कम से कम 8-10% तक बढ़ सकती हैं। ऐसा इसलिए कि इन चीजों में भी पाम ऑयल का इस्तेमाल होता है। 

दरअसल, पाम ऑयल एक ऐसा वनस्पति तेल है जिसमें कोई सुगंध नहीं होता है इसलिए इसके इस्तेमाल बड़े पैमाने पर अलग-अलग चीजों के लिए किया जाता है। होटल, रेस्तरां में भी पाम तेल का इस्तेमाल खाद्य तेल की तरह होता है। इसके अलावा कई उद्योगों में इसका इस्तेमाल होता है। नहाने वाला साबुन बनाने में भी पाम तेल का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल होता है। क्रीम और टॉफी-चॉकलेट में भी इसका इस्तेमाल किया जाता है।

दूसरे खाद्य तेल के दाम बढ़ेंगे

उद्योग पर नज़र रखने वालों का अनुमान है कि दुनिया के सबसे बड़े पाम तेल उत्पादक द्वारा गुरुवार से निर्यात पर प्रतिबंध लगाने के क़दम से पाम तेल, सोया तेल, सूरजमुखी तेल और रेपसीड तेल सहित सभी प्रमुख खाद्य तेलों की क़ीमतों में वृद्धि होगी।

खाने वाले तेल के दामों में पहले ही काफी उछाल आया हुआ है। जो सरसों तेल 2013 में क़रीब 90-100 रुपये प्रति लीटर था वह मार्च 2023 में क़रीब 200 रुपये प्रति लीटर हो गया।

सोयाबीन तेल भी 2013 में 96 रुपये प्रति लीटर से बढ़कर क़रीब 180 रुपय प्रति लीटर और सूरजमुखी तेल 106 रुपये से 2023 में बढ़कर क़रीब 190-200 रुपये प्रति लीटर हो गया।

28 मई 2020 से 28 मई 2021 के बीच के सरकारी आँकड़ों के मुताबिक मूंगफली का तेल बीस परसेंट, सरसों का तेल चवालीस परसेंट से ज्यादा, वनस्पति क़रीब पैंतालीस परसेंट, सोया तेल क़रीब तिरपन परसेंट, सूरजमुखी का तेल छप्पन परसेंट और पाम ऑयल क़रीब साढ़े चौवन परसेंट महंगा हुआ था।

अर्थतंत्र से और ख़बरें

बहरहाल, पाम ऑयल का इस्तेमाल इतने क्षेत्रों में किया जाता है कि यदि इसके दाम बढ़े तो भारत में कई चीजों के दाम बढ़ेंगे। यह सरकार के लिए बड़ी चिंता का विषय है। यह चिंता इसलिए भी है कि भारत अधिकतर पाम ऑयल आयात करता है। एक रिपोर्ट के अनुसार भारत सालाना 22.5 मिलियन टन खाद्य तेल की खपत करता है, जिसमें से 9-9.95 मिलियन टन घरेलू आपूर्ति होती है और बाक़ी आयात करना पड़ता है। 

इस आयात पर निर्भरता को कम करने के लिए ही पिछले साल कैबिनेट ने नेशनल पाम ऑयल मिशन को मंजूरी दी थी। इस पर 11,000 करोड़ रुपये खर्च किए जाने हैं। सरकार ने कहा है कि नेशनल पाम ऑयल मिशन का मुख्य उद्देश्‍य किसानों को पाम की खेती के लिए सुनिश्चित व्यावहारिक मूल्य प्रदान करना है। पिछले साल कहा गया था कि अगले 5 साल में 11,040 करोड़ रुपये के निवेश से पाम आयल मिशन उत्तर-पूर्वी राज्यों में 3.28 लाख हेक्टेयर और शेष भारत में 3.22 लाख हेक्टेयर में चलाया जाएगा। तो सवाल यह है कि आख़िर इस पर मिशन मोड पर काम करने की ज़रूरत क्यों पड़ी है?

ख़ास ख़बरें

इसका सीधा जवाब तो यह है कि पाम ऑयल पर भारत की आयात पर निर्भरता को कम किया जाए। और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर महंगाई बढ़ने पर भारत में इसका असर नहीं हो। यदि अभी पाम ऑयल महंगा होगा तो सभी खाद्य तेल महंगे होंगे और इसका मतलब है कि खाद्य महंगाई बढ़ेगी। पहले से ही खाद्य महंगाई काफ़ी ज़्यादा बढ़ी हुई है। एक राहत वाली ख़बर यह बताई जा रही है कि इंडोनेशिया का पाम ऑयल पर यह प्रतिबंध क़रीब एक महीने में शायद हट जाएगा। यानी यह काफी लंबे समय तक नहीं चलेगा। लेकिन तब तक बढ़ी क़ीमतों से सरकार कैसे निपटेगी? यह सवाल इसलिए कि भारत में रिजर्व बैंक द्वारा तय की गई 6 फ़ीसदी की ऊपरी सीमा से ज़्यादा महंगाई पिछले तीन महीने से लगातार बनी हुई है और यह बढ़ ही रही है। 

सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
क़मर वहीद नक़वी
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

अर्थतंत्र से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें