नरेंद्र मोदी सरकार के पदभार संभालते ही अर्थव्यवस्था से जुड़ी बुरी ख़बरें आने लगी हैं। हालाँकि पहली मोदी सरकार अर्थव्यवस्था को लेकर इतनी लापरवाह रही कि हर मामले में अर्थव्यवस्था पिछड़ती रही और उसका नतीजा भी उसी समय दिखने लगा। पर चुनाव सामने होने की वजह से सरकार उन आँकड़ों को लगातार छिपा रही थी। अब ये बातें सामने आने लगी हैं। ताज़ा मिसाल खाद्य पदार्थों के सूचकांक को लेकर है। खाद्य पदार्थों का थोक मूल्य सूचकांक पिछले तिमाही में बढ़ कर 7.37 प्रतिशत पर पहुँच गया, जिससे सरकार का चिंतित होना स्वाभाविक है। दिसंबर 2018 में यह -0.42 प्रतिशत पर था।
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यह आँकड़ा भारतीय रिज़र्व बैंक की बैठक के ठीक पहले आया है। रिज़र्व बैंक 5-6 जून को होने वाली बैठक में अगली तिमाही के लिए मुद्रा नीति का एलान करेगा। इस बैठक में इस पर विचार किया जाएगा कि ब्याज़ दरें घटाई जाएँ या नहीं। यह समझा जाता है कि बैंक ब्याज दरें कम कर सकता है। पर खाद्य पदार्थों के थोक मूल्य सूचकांक के बढ़ने की वजह से रिज़र्व बैंक इस पर हिचक रहा है।
पश्चिम भारत और दक्षिण के राज्यों में सूखे की वजह से खाने-पीने की चीजें महंगी हुई हैं। इसके साथ ही मानसून के पहले होने वाली बारिश औसत से 24.70 प्रतिशत कम रही। यह कमी भी इन दो इलाक़ों में ही देखी गई। कर्नाटक के देवनगिरी बाज़ार में मक्के की कीमत 2,000 रुपए क्विटंल है, एक साल पहले यह 1,270 रुपए थी। इसी तरह राजस्थान में बाजरे और महाराष्ट्र में जवार की कीमत भी पिछले साल की तुलना में बढ़ी हुई हैं।
दलहन के भाव भी तेज़ हुए हैं। अरहर की कीमत महाराष्ट्र के लातूर में 2,300 रुपए प्रति क्विंटल बढ़ कर 5,950 रुपए पर पहुँची तो नागौर में मूंग की कीमत 1400 रुपए प्रति क्विंटल बढ़ी और 6,000 रुपए पर है। इसी तरह मध्य प्रदेश में उड़द की कीमत भी बढ़ी हुई है।
खाद्य पदार्थों की कीमत बढ़ने का असर उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर पड़ेगा और उसका बढ़ना लगभग तय है। महँगाई के मुद्दे पर भी सरकार कहती रही है कि वह इसे रोकने में कामयाब रही है। पर सच तो यह है कि पिछले तीन साल में महँगाई दर बढ़ी है। अब और बढ़ेगी। सरकार अब यह आँकड़ा छुपाने के बदले उसे स्वीकार करेगी। यह बेहतर इसलिए भी है कि इसके बाद ही सरकार इसे ठीक करने के लिए कोई कदम उठाएगी।
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