ख़राब अर्थव्यवस्था के बीच ऑटो उद्योग की स्थिति लगातार बदतर होती जा रही है। लगातार दसवें महीने कारों सहित यात्री वाहनों की बिक्री में गिरावट रही है। पिछले एक साल में इसमें 30.9 फ़ीसदी की गिरावट आई है। पिछले साल अगस्त महीने में जहाँ क़रीब तीन लाख यात्री वाहनों की बिक्री हुई थी वहीं इस साल अगस्त में यह गिरकर क़रीब दो लाख तक पहुँच गई है। पिछले महीने ही ख़बर आयी थी कि साल भर में क़रीब 300 डीलर दुकानें बंद हो गई हैं और इसके बाद कुछ डीलरों के दिवालिया होने की स्थिति पैदा हो गई है। हाल के दिनों में ऐसी ख़बरें आती रही हैं ऑटो सेक्टर की हालत ख़राब है और ऑटो पार्ट्स बनाने वाली कंपनियों को बड़ी संख्या में लोगों को नौकरी से निकालना पड़ा है।
कार बनाने वाली भारत की सबसे बड़ी कंपनी मारुति सुजुकी की कारों की बिक्री में पिछले एक साल में 36 फ़ीसदी की गिरावट आई है। 'नेटर्वक 18' की रिपोर्ट में कहा गया है कि टाटा मोटर्स की कारों की बिक्री में पिछले साल के मुक़ाबले 60 फ़ीसदी की गिरावट आई है। स्कोडा की कारों में 12.5 फ़ीसदी की गिरावट आई है। कोरियाई निर्माता कंपनी ह्युंडई को 17 फ़ीसदी का नुक़सान हुआ। होंडा के वाहनों की बिक्री में भी 51.3 गिरावट आई। निसान को 54.5 और फ़िएट को 56.5 फ़ीसदी नुक़सान हुआ।
ऐसी रिपोर्टें रही हैं कि यह गिरावट माँग में कमी आने के कारण है और लोगों की ख़रीदने की क्षमता कम हुई है। बहुत सारे लोगों की नौकरियाँ गईं हैं और जो लोग नौकरी में हैं वह भी पैसे ख़र्च नहीं करना चाहते हैं। व्यापार में लगे लोग भी पैसे बाजार में लगाने से डरते हैं। नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने भी हाल ही में कहा था कि लोगों का एक दूसरे पर विश्वास नहीं रहा और वे पैसे अपनी जेब से निकालना नहीं चाहते हैं। उन्होंने कहा था कि इसीलिए देश में 70 साल में ऐसा नकदी संकट नहीं आया।
डीलरों की हालत ख़राब
साल भर में क़रीब 300 डीलर दुकानों के बंद होने की ख़बरों के बाद पिछले महीने ही महिंद्रा एंड महिंद्रा के प्रबंध निदेशक पवन गोयनका ने कहा था कि उन्हें इस बात की चिंता है कि सप्लाई लाइन से जुड़े लोग और डीलर बहुत जल्द ही दिवालिया हो जाएँगे। महिंद्रा एंड महिंद्रा ने निवेश और विस्तार की योजना फ़िलहाल टाल दी है। कंपनी ने इसी साल वित्तीय वर्ष में उत्पादन क्षमता बढ़ाने की योजना बनाई थी और उस पर निवेश के बारे में भी सोचा था।
महिंद्रा एंड महिंद्रा ने अप्रैल से अब तक 1,500 कर्मचारियों को बाहर का रास्ता दिखाया है। इसे मानते हुए गोयनका ने सफ़ाई दी थी कि वह नहीं चाहते कि ऐसा और लोगों के साथ हो, वह उन लोगों को दूसरे काम देने और उन्हें किसी भी तरह साथ रखने की कोशिश करते रहेंगे।
उन्होंने कहा था कि गाड़ी उत्पादन से जुड़ी कंपनियों की ख़ास चिंता उन्हें नहीं है क्योंकि वे कुछ समय तक इस दौर से गुज़र सकते हैं। लेकिन डीलरों में से ज़्यादातर लोगों के पास इतने पैसे नहीं होते कि वे लंबे समय तक मंदी झेल पाएँगे।
लाखों नौकरियाँ गईं
हाल ही में फ़ेडरेशन ऑफ़ ऑटोमोबाइल डीलर्स एसोसिएशन ने कहा था कि बीते साल भर में डीलरों से जुड़े 2 लाख लोगों की नौकरियाँ चली गई हैं। अगस्त महीने में इंडियन ऑटोमोबाइल एसोसिएशन ने कहा था कि बीते 3 महीने में 15 हज़ार लोगों को नौकरी से निकाला गया है।
अगस्त महीने में ऑटो इंडस्ट्री की ख़राब हालत पर सोसाइटी ऑफ़ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्युफ़ैक्चरर्स (एसआईएएम यानी सियाम) ने कहा था कि यही हाल रहा तो इस सेक्टर में लगभग 10 लाख लोगों को बेरोज़गार होना पड़ सकता है। वाहनों की बिक्री कम हो रही है, इसे ज़्यादा टैक्स देना पड़ रहा है, इसे उत्पादन कम करना पड़ रहा है। इसका नतीजा यह है कि इस सेक्टर से जुड़े कल कारखानों में लोगों की नौकरियाँ जा रही हैं।
इससे पहले जुलाई महीने में तो एक रिपोर्ट आई थी कि कल-पुर्जे बनाने वाली कंपनियों में क़रीब 10 लाख लोगों की नौकरियाँ चली गई हैं। ऑटोमोटिव कंपोनेंट मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (एसीएमए) के महानिदेशक विन्नी मेहता ने ‘टाइम्स ऑफ़ इंडिया’ से बताया था, ‘यह संकट है और हम पिछले एक साल से अधिक दबाव में हैं, जिसके परिणामस्वरूप कारख़ानों में उत्पादन में बड़ी कटौती हुई है। हमारा अनुमान है कि नौकरी का नुक़सान 8 लाख से 10 लाख के बीच है। ये नौकरियाँ हरियाणा, पुणे, चेन्नई, नासिक, उत्तराखंड और जमशेदपुर जैसे प्रमुख ऑटोमोबाइल विनिर्माण स्थानों से गई हैं।’
हालाँकि, हाल में ऑटो सेक्टर को बढ़ावा देने के लिए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कई घोषणाएँ की हैं। इसमें ऑटो इंडस्ट्री के लिए राहत पैकेज के साथ नियमों में छूट भी शामिल है। लेकिन सवाल यह है कि जब लोगों के पास नौकरियाँ नहीं होंगी और पैसे नहीं होंगे तो कारों की बिक्री कैसे बढ़ेगी?
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