8 नवंबर 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी की घोषणा की थी। आज आठ नवंबर को छह साल पूरे हो गये। तब इसके जो फायदे बताए गए थे उनमें से एक प्रमुख ये भी था कि अर्थव्यवस्था में नकदी यानी कैश का चलन कम करना है और 'कैशलेस इकॉनमी' बनाना है। तो क्या ऐसा हुआ?
एक दिन पहले ही ख़बर आई है कि आरबीआई के आँकड़ों के अनुसार ही 21 अक्टूबर, 2022 को समाप्त पखवाड़े में 30.88 लाख करोड़ रुपये चलन में हैं। यानी आम जनता के पास रिकॉर्ड उच्च स्तर पर मुद्रा रही। नोटबंदी से पहले 4 नवंबर, 2016 को 17.97 लाख करोड़ रुपये ही आम जनता के पास चलन में थे। इसका मतलब है कि अर्थव्यवस्था में कैश का चलन 72 प्रतिशत बढ़ गया है। तो क्या इस लक्ष्य को पाने में विफलता हाथ नहीं लगी? सरकार भले ही कुछ भी दावे करे, आँकड़े चीख-चीख कर विफलता की कहानी कहते हैं।
वैसे, यदि इसके अलावा दूसरे फायदे की बात की जाए तो क्या नोटबंदी के घोषित दूसरे लक्ष्य को पाया गया? इस सवाल का जवाब बाद में पहले यह जान लें कि प्रधानमंत्री मोदी ने छह साल पहले नोटबंदी की घोषणा करते हुए क्या कहा था।
प्रधानमंत्री मोदी ने टेलीविज़न पर देश को संबोधित करते हुए एलान किया था कि रात 12 बजे यानी घोषणा के सिर्फ चार घंटे बाद 500 रुपए और 1000 रुपए के नोट चलन से बाहर हो जाएंगे, यानी इन नोटों को स्वीकार नहीं किया जाएगा, ये बेकार हो जाएंगे।
प्रधानमंत्री की घोषणा, और इसके बाद तत्कालीन वित्तमंत्री और तमाम बड़े नौकरशाहों ने अलग-अलग मौक़ों पर नोटबंदी के कई मक़सद बताए थे। उनमें से प्रमुख हैं-
- कालेधन को ख़त्म करना
- देश को कैशलेस बनाना
- बड़े नोटों को कम करना
- नकली नोटों को खत्म करना
- आतंकियों और नक्सलियों की कमर तोड़ना
- नशीली दवाओं का क़ारोबार तबाह करना।
लेकिन नोटबंदी लागू होने से पहले ही घोषणा के तुरत बाद देश में अफरा-तफरी मच गई। बैंकों के बाहर लंबी-लंबी कतारें लग गईं। सोने की दुकानों पर भीड़ लग गई। बैंकों के बाहर लाइनें लगाकर नोटों को बदलवाने के लिए लोगों को हफ्तों तक परेशान होना पड़ा था। बाद में 500 के नए नोट और 2000 रुपए के नये नोट जारी किए गए थे। एक तरफ़ लोग अपने पुराने नोटों को जमा करने के लिए परेशान हो रहे थे वहीं दूसरी तरफ़ लोगों को हर रोज़ की ज़रूरत की चीजों के लिए पैसों की किल्लत हो गई थी। चाहे बैंक हों या फिर एटीएम लंबी-लंबी लाइनें लग रही थीं। ठिठुराती सर्द रात में भी लोग लाइनों में इंतज़ार कर रहे थे। पैसे के बिना इलाज नहीं होने, शादियाँ टूटने जैसी दिक्कतें आई थीं। लाइनों में लोगों के मरने की ख़बरें भी आई थीं।
तो सवाल है कि ये सब कष्ट झेलने के बाद भी क्या नोटबंदी के मक़सद को हासिल किया जा सका?
काला धन
क्या नोटबंदी से काला धन ख़त्म करने का लक्ष्य हासिल हुआ? भारतीय रिजर्व बैंक के आँकड़ों के अनुसार, 99 प्रतिशत से अधिक यानी क़रीब पूरा पैसा बैंकिंग प्रणाली में वापस आ गया जिसे अमान्य क़रार दे दिया गया था। 15.41 लाख करोड़ रुपये के जो नोट अमान्य हो गए, उनमें से 15.31 लाख करोड़ रुपये के नोट वापस आ गए थे। नोटबंदी की कवायद के बाद से कितना काला धन बरामद हुआ है? इस पर अब तक कोई आँकड़ा सरकार की ओर से जारी नहीं किया गया है। हालाँकि फरवरी 2019 में तत्कालीन वित्त मंत्री पीयूष गोयल ने संसद को बताया था कि नोटबंदी सहित विभिन्न काला धन विरोधी उपायों के माध्यम से काला धन के रूप में 1.3 लाख करोड़ रुपये की वसूली की गई है। इस बीच काला धन की बरामदगी के मामले लगातार आते रहे हैं।
आँकड़ों से पता चलता है कि व्यवस्था में काले धन का पता लगाने में नोटबंदी विफल साबित हुई।
नकली नोट
नकली नोटों पर क्या लगाम लगा? आरबीआई ने 27 मई को जारी अपनी वार्षिक रिपोर्ट में कहा है कि मार्च को समाप्त हुए वित्तीय वर्ष में जाली नोटों में 10.7 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। केंद्रीय बैंक ने 500 रुपये के नकली नोटों में 101.93 प्रतिशत की वृद्धि का पता लगाया, जबकि 2,000 रुपये के नकली नोटों में 54 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई। 10 रुपये और 20 रुपये के नकली नोटों में 16.45 और 16.48 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी। 200 रुपये के नकली नोट 11.7 फीसदी बढ़े। रिपोर्ट में कहा गया है कि 50 रुपये और 100 रुपये के नकली नोटों में क्रमशः 28.65 और 16.71 प्रतिशत की गिरावट आई है।
कैशलेस इकॉनमी का जो लक्ष्य बताया गया था उसका हस्र क्या हुआ यह छुपा नहीं है, क्योंकि चलन में अब पहले से भी 72 फ़ीसदी से ज़्यादा नोट हैं।
इसके अलावा न तो आतंकवादियों व नक्सलियों की कमर टूटी और न ही नशीली दवाओं का कारोबार ख़त्म हुआ। आतंकवाद आज भी एक बड़ी समस्या बना हुआ है। आज भी पाकिस्तान के आतंकवादी कश्मीर में हिंसा का घिनौना खेल खेल रहे हैं। आज भी नागरिकों और भारतीय सुरक्षा बलों को जान माल का नुक़सान हो रहा है। नक्सली गतिविधियों के मामले में भी कुछ ऐसी ही स्थिति है।
तो आख़िर नोटबंदी से हुआ क्या?
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भविष्यवाणी की थी कि नोटबंदी से अर्थव्यवस्था की कमर टूट जायेगी और जीडीपी ग्रोथ में दो प्वाइंट की गिरावट आयेगी। 2019 में ही विकास दर 8% से गिर कर 5% के क़रीब हो गयी थी। 2019 में ऐसी ख़बरें आई थीं कि बड़ी संख्या में लोग बेरोजगार हुए। अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर ससटेनेबल इम्पलॉयमेंट की ओर से जारी ‘स्टेट ऑफ़ वर्किंग इंडिया 2019’ रिपोर्ट में दावा किया गया था कि नोटबंदी के बाद दो साल में 50 लाख लोग बेरोज़गार हो गए थे। रिपोर्ट में कहा गया था कि देश में बेरोजगारी की दर 2018 में बढ़कर सबसे ज़्यादा 6 प्रतिशत हो गई थी। तब यह भी रिपोर्ट आई थी कि देश में बेरोज़गारी की दर 45 साल में सबसे ज़्यादा हो गई थी। बाद में इन सब पर जल्दबाज़ी में लागू किए गए जीएसटी का भी असर पड़ा। 2020 के बाद भी आर्थिक मोर्चे पर देश की हालत ख़राब ही रही, लेकिन तब कोरोना और फिर लॉकडाउन को इसके लिए दोष दिया जाने लगा। दोष कुछ भी लगाया जाए, आँकड़े हालात साफ़-साफ़ बयां कर रहे हैं।
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