रफ़ाल पर उठे राजनीतिक भूचाल की वजह से विवादों के घेरे में आए अनिल अंबानी एक बार फिर सुर्खियों में हैं। उनकी कंपनी रिलायंस कम्युनिकेशन्स ने ख़ुद को दिवालिया घोषित करने की न्यायिक प्रक्रिया शुरू करने का फ़ैसला किया है। कंपनी नेशनल कंपनी लॉ ट्राइब्यूनल्स में जल्द ही अर्ज़ी देगी। इसे 45,000 करोड़ रुपए का क़र्ज़ चुकाना है और यह कई मुक़दमों में फँसी होने की वजह से अपनी जायदाद नहीं बेच सकती है।
रिलायंस कम्युनिकेशन के निदेशक मंडल ने शुक्रवार को बैठक की और इसमें बाद कंपनी लॉ ट्राइब्यूनल जाने का फ़ैसला किया। बोर्ड की बैठक में इस पर चिंता जताई गई कि बीते 18 महीनों की लगातार कोशिशों के बावजूद कंपनी अपनी संपत्ति का कुछ हिस्सा बेच कर क़र्ज़दारों को चुकाने में नाकाम रही। ऐसे में दिवालिया घोषित करने की प्रक्रिया ख़ुद शुरू करना बेहतर है।
घाटे में अनिल अंबानी
धारूभाई अंबानी के छोटे बेटे अनिल अपने भाई मुकेश से साल 2007 में अलग हो गए। अर्थ-व्यापार की मशहूर पत्रिका फ़ोर्ब्स के मुताबिक़, उस समय अनिल अंबानी के पास कुल 45 अरब डॉलर की जायदाद थी, जबकि बड़े भाई के पास 49 अरब डॉलर की संपत्ति थी।दस साल में अनिल अंबानी की रिलायंस कम्युनिकेशन्स, रिलायंस इन्फ़्रास्ट्रक्चर और रिलायंस कैपिटल का मार्केट कैपिटलाइजेशन 56,600 करोड़ रुपये से घट कर 47,017 करोड़ रुपये हो गया। इसमें रिलायंस होम फ़ाइनेंस, रिलायंस निप्पन एसेट मैनेजमेंट भी शामिल है।
दूसरी ओर, मुकेश अंबानी की रिलायंस इंडस्ट्रीज़ की क़ीमत 96,668 करोड़ रुपये से बढ़ कर 5,90,500 करोड़ रुपये हो गया।
समाजवादी पार्टी के सदस्य अंबानी
अनिल अंबानी अपने गिरते व्यवसायिक कारोबार की वजह से सुर्खियों में हैं। पर वे इसके पहले कई बार गैर-व्यवसायिक कारणों से भी चर्चा में रह चुके हैं। कभी अमर सिंह के नज़दीक समझे जाने वाले अनिल उनकी मदद से ही समाजवादी पार्टी में आए थे और उसकी ओर से ही राज्यसभा सांसद भी बने थे। समझा जाता है कि मुलायम सिंह यादव की नज़दीकी का ख़ामियाज़ा उन्हें यह भुगतना पड़ा की इंदिरा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के टी-3 टर्मिनल का ठेका सबसे कम क़ीमत के बावजूद उनकी कंपनी को नहीं मिला था। उसके बाद अनिल ने पार्टी छोड़ दी और राज्यसभा की सदस्यता भी। इस तरह वे राजनीति से दूर होकर व्यवसाय पर ध्यान देने की कोशिश करने लगे।पर अनिल एक बार फिर राजनीतिक बहस के केंद्र में आ गए जब कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी ने रफ़ाल सौदे पर सवाल उठाया। उन्होंने आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कहने पर ही तत्कालीन फ्रांसीसी राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद ने रफ़ाल बनाने के लिए दसॉ के भारतीय पार्टनर के रूप में रिलायंस डिफ़ेन्स को चुना। आरोप यह लगाया गया कि रिलायंस डिफ़ेन्स को विमानन या हवाई जहाज या उसके कल-पुर्जे बनाने का कोई अनुभव नहीं है तो उसे ऑफ़सेट पार्टनर कैसे चुना गया। राहुल गाँधी ने यह भी कहा कि रिलायंस को बग़ैर कुछ किए ही 284 करोड़ रुपये की पहली किश्त मिल चुकी है।
क्या अनिल अंबानी के लगातार गिरते व्यवसाय को सहारा देने के लिए रिलायंस डिफेन्स को रफ़ाल का ऑफ़सेट पार्टनर चुना गया? इस सवाल का जवाब ढूंढना फ़िलहाल मुश्किल है। पर यह साफ़ है कि अनिल अंबानी का व्यवसाय अच्छा नहीं चल रहा है। ऐसे में भारत में रक्षा उत्पादन और विमानन, दोनों ही नए और बड़े व्यवसायिक क्षेत्र हैं, पर इसमें रिलायंस कितना कामयाब होगा, यह बताना अभी मुश्किल है।
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