क्या ट्विटर के बाद अब ज़ूम के साथ भी सरकार की ठन सकती है? क्या ज़ूम निजता का हवाला देते हुए भारत सरकार को दिशा रवि और दूसरों के बीच हुई मीटिंग का ब्योरा देने से इनकार कर सकता है?
ये सवाल इसलिए उठ रहे हैं कि केंद्र सरकार ने 16 फ़रवरी को ज़ूम से कहा कि वह दिशा रवि और दूसरे लोगों के बीच हुई मीटिंग का ब्योरा दे, जिसमें टूलकिट बनाने और उसे शेयर करने के मुद्दे पर विचार विमर्श हुआ था।
क्या है मामला?
सरकार ने कई सवालों की एक सूची ज़ूम को सौंपी और उनका जवाब देने को कहा। पर अब तक उसे कोई जवाब नहीं मिला है।
स्वीडिश पर्यावरण कार्यकर्ता ग्रेटा तनबर्ग (थनबर्ग) ने भारत के किसान आन्दोलन से जुड़ा एक टूलकिट शेयर किया था। उन्होंने बाद में उसे डिलीट कर नया ट्वीट किया, जिसमें टूलकिट नहीं था।
दिल्ली पुलिस का कहना है कि दिशा रवि, निकिता जैकब और शांतनु मुलुक समेत 70 लोगों ने 11 जनवरी की ज़ूम मीटिंग में शिरकत की थी। पुलिस के अनुसार, इस मीटिंग में टूलकिट बनाने और उसे भेजने की रणनीति बनाई गई थी।
दिल्ली पुलिस ने एक बयान में कहा है, टूलकिट बनाने का मुख्य उद्येश्य भारत की चुनी गई सरकार के ख़िलाफ़ दुष्प्रचार और विद्वेष फैलाना है। टूलकिट का मक़सद फ़ेक न्यूज़ और दूसरे झूठ को बढा -चढ़ा कर पेश करना और उसे प्रचारित करना है।
ज़ूम से पूछे गए सवाल
- इस टूलकिट को अपलोड करने के लिए किस आईडी का इस्तेमाल किया गया था? यह आईडी किसका था?
- और किन आईडी ने इस टूलकिट का इस्तेमाल किया था।
- कितने लोगों ने इसे एक्सेस किया था, उनकी विस्तृत जानकारी।
- ज़ूम मीटिंग का एडमिन कौन था?
- ज़ूम मीटिंग कितनी देर चली थी?
- ज़ूम मीटिंग किस समय हुई थी?
- यदि ज़ूम ने रिकॉर्डिंग की हो तो उस वीडियो का पूरा विवरण।
क्या ज़ूम जवाब देगा?
- ज़ूम की निजता नीति के अनुसार, उसके पास रिकॉर्डिंग 90 दिनों के लिए ही रहती है, उसके पास वह अपने आप डिलीट हो जाती है। इसलिए 90 दिन के बाद ज़ूम कोई जानकारी नहीं दे सकता। इस मामले में ज़ूम से यह माँग इस अवधि के अंदर ही की गई है।
- रिकॉर्डिंग से जुड़ी कोई जानकारी लेने के लिए जो पत्राचार किया जाए व औपचारिक होनी चाहिए और उस पर संबंधित व्यक्ति का हस्ताक्षर होना चाहिए। यदि ई-मेल किया जा रहा है तो वह ऑफ़शियल ई-मेल आईडी से किया जाना चाहिए।
- ज़ूम से जानकारी माँगने का कारण क़ानूनी होना चाहिए, वह सचमुच के किसी अपराध की रोकथाम करने, उसका पता लगाने या उसकी जाँच करने के लिए होना चाहिए।
- क्लैरिफ़ाइंग लॉफ़ुल ओवरसीज़ यूज़ ऑफ़ डेटा (क्लाउड) के तहत दोनों देशों के बीच पहले से म्युचुअल लीगल एसिस्टेंस ट्रिटी यानी समझौता होना चाहिए। इस मामले में यह शर्त पूरी हो रही है क्योंकि 2018 में ही भारत और अमेरिका के बीच डेटा के आदान-प्रदान को लेकर एक समझौता हुआ था।
इसके साथ और भी कई दूसरी शर्तें हैं। ऊपर की ज़्यादातर शर्तें टूलकिट के मामले में पूरी होती हैं। पर ज़ूम इसके बावजूद चाहे तो जानकारी देने से इनकार कर सकता है। यह उसकी मर्जी पर निर्भर है और उसे बाध्य नहीं किया जा सकता है।
कौन जानकारी शेयर करेगा ज़ूम?
ज़ूम यदि जानकारी देने को राजी भी हो जाए तो वह क्या जानकारी साझा कर सकता है, सवाल यह है।
ज़ूम कॉल मीटिंग कितने समय तक चली यह जानकारी दे सकता है। वह इसके अलावा ई-मेल आईडी, नाम, निक नेम, मीटिंग का नाम, मीटिंग शुरू होने और ख़त्म होने का समय और कॉल डेटा रिकार्ड्स सरकार के साथ साझा कर सकता है। ज़ूम की निजता नीति के तहत वह यूज़र का लोकेशन भी अपना पास रखता है, पर चैट और वीडियो कॉल के मामलों में यह तभी शेयर किया जा सकता है जब यूजर ने उसे रिकॉर्ड कर क्लाउट डेटा पर स्टोर किया हो।
केंद्र सरकार ने ज़ूम से ये जानकारियाँ ऐसे समय माँगी हैं, जब ट्विटर से सरकार का टकराव पहले से ही चल रहा है।
सरकार ने लगभग 1700 ट्विटर अकाउंटों को बंद करने या भारत में उसे ब्लॉक करने के लिए कंपनी से कहा था। ट्विटर ने लगभग 500 अकाउंट बंद कर दिए। इसके अलावा अकाउंटों के बारे में उसने साफ़ कह दिया कि वह उन्हें ब्लॉक नहीं करेगा क्योंकि वे मूल रूप से पत्रकार, मानवाधिकार कार्यकर्ता और सामाजिक कार्यकर्ताओं के हैं। ट्विटर ने यह भी कहा था कि उन्हें ब्लॉक करना भारत के अपने नियम-क़ानूनों के अनुरूप नहीं है। लेकिन सरकार ने कहा था कि ट्विटर को सरकार की बातें माननी होंगी।
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