लोकसभा में तो नागरिकता संशोधन विधेयक पास हो गया है। संसद के निचले सदन में इस विधेयक का पास होना तय माना जा रहा था क्योंकि बीजेपी के पास पर्याप्त संख्या में सांसद हैं। लेकिन सरकार की असली परीक्षा राज्यसभा में होगी। राज्यसभा में बुधवार को इस विधेयक पर चर्चा होगी। विपक्षी दलों में लगभग सभी दल इस विधेयक का पुरजोर विरोध कर रहे हैं। हालाँकि इस बात की चर्चा है कि जिस तरह सरकार तीन तलाक़ विधेयक और अनुच्छेद 370 को राज्यसभा से पास करवाने में सफल रही थी क्या नागरिकता संशोधन विधेयक पर भी वह ऐसा करने में सफल रहेगी?
राज्यसभा में सांसदों की संख्या 245 है लेकिन अभी 5 सीटें खाली हैं। ऐसे में 240 सांसदों वाले सदन में विधेयक को पास कराने के लिए 121 सांसदों का होना ज़रूरी है। सबसे पहले देखना होगा कि बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए के पास सदन में कितने सांसद हैं।
राज्यसभा में एनडीए का गणित
एनडीए में सबसे बड़ा दल बीजेपी है और उसके पास राज्यसभा में 83 सांसद हैं। दूसरे नंबर पर है जेडी(यू) और उसके पास 6 सांसद हैं। जेडीयू के रुख को लेकर पहले संशय था लेकिन लोकसभा में उसने नागरिकता संशोधन विधेयक का समर्थन किया है। ऐसे में यह माना जा रहा है कि राज्यसभा में भी उसका यही रुख रहेगा, वरना वह लोकसभा में भी विधेयक का विरोध करती। इसके अलावा, एनडीए में शिरोमणि अकाली दल (बादल) के 3, रिपब्लिकन पार्टी ऑफ़ इंडिया (आरपीआई) के 1, लोकजनशक्ति पार्टी के 1 जबकि अन्य 12 सांसद हैं। इन अन्य 12 सासंदों में मनोनीत सांसद भी शामिल हैं। इनका कुल योग है 106।राज्यसभा में यूपीए का गणित
दूसरी ओर, संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) में कांग्रेस सबसे बड़ा दल है और उसके पास 46 सांसद हैं। इसके अलावा, राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के पास 4, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के भी 4 सांसद हैं। द्रविड़ मुनेत्र कषगम (डीएमके) के 5 सांसद हैं जबकि यूपीए में शामिल कुछ अन्य सहयोगी दलों के भी 3 सांसद हैं। इस तरह यूपीए के पास राज्यसभा में कुल 62 सांसद हैं।
इन दलों की भूमिका अहम
कई राजनीतिक दल ऐसे भी हैं, जो न तो यूपीए में शामिल हैं और न ही एनडीए में। ऐसे में इन दलों की भूमिका इस विधेयक को लेकर बेहद अहम रहेगी। ऐसे दलों में राज्यसभा में सबसे ज़्यादा सांसद तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के पास हैं। टीएमसी के पास 13 सांसद हैं। इसके बाद समाजवादी पार्टी के पास 9, तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) के 6, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएम) के 5, बहुजन समाज पार्टी के 4, आम आदमी पार्टी के 3 सांसद हैं। इनके अलावा, पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) के 2, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) का 1 और जेडी(एस) का 1 सांसद है। इस तरह, इन दलों के कुल 44 सांसद हैं और यह लगभग तय है कि ये सभी दल इस विधेयक के विरोध में मतदान करेंगे। इस तरह विधेयक के विरोध में कुल 106 सांसद वोट डाल सकते हैं।
लेकिन ऐसे कुछ और दल हैं जो न तो एनडीए में हैं और न यूपीए में हैं लेकिन वे इस विधेयक का समर्थन कर सकते हैं। इन दलों में ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कषगम (एआईएडीएमके) के 11, बीजू जनता दल (बीजेडी) के 7, वाईएसआर कांग्रेस (वाईएसआरसीपी) के 2 सांसद हैं। हाल ही में एनडीए से बाहर हुई शिवसेना के 3 सांसद हैं और शिवसेना भी विधेयक के समर्थन में वोट करेगी क्योंकि लोकसभा में उसने बिल का समर्थन किया है। इस तरह ये कुल 23 सांसद हैं। अगर इन 23 सांसदों का समर्थन एनडीए को मिल जाता है तो यह आंकड़ा 129 सांसदों का बैठता है। टीडीपी के पास 2 सांसद हैं और उसका रुख साफ़ नहीं है। इस तरह, मोदी सरकार इन दलों का समर्थन मिलने पर विधेयक को पास करवा सकती है क्योंकि इसी तरह वह तीन तलाक़ विधेयक और अनुच्छेद 370 को भी राज्यसभा से पास करवाने में सफल रही थी।
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