कोरोना संक्रमण से लड़ने के लिए गठित किया गया कोष पीएम केअर्स स्थापना के समय से ही विवादों में रहा है। उसकी ज़रूरत पर ही सवाल उठाया गया था। लेकिन अब प्रधानमंत्री कार्यालय ने इस कोष से जुड़ी जानकारी देने और फ़ाइल सार्वजनिक करने से साफ़ इनकार कर दिया है।
इससे सवाल यह उठने लगा है कि क्या पीएम केअर्स को विशेष छूट मिली हुई है? क्या वह वाकई कुछ ऐसा कर रहा है जिसकी जानकारी सार्वजनिक नहीं की जा सकती है?
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क्या है मामला?
इस ताज़ा विवाद की शुरुआत एक आरटीआई सवाल का जवाब देने से प्रधानमंत्री कार्यालय के इनकार से हुई है। 'द वायर' की एक ख़बर के अनुसार, पर्यावरण कार्यकर्ता विक्रांत तोगड़ ने 21 अप्रैल 2020 को एक आरटीआई आवेदन दे कर पीएमओ से पीएम केअर्स से जुड़े कुछ सवाल पूछे।पीएमओ ने सिर्फ 6 दिन के अंदर यानी 27 अप्रैल 2020 को इसके जवाब में कहा कि पूछे गई सवाल अलग-अलग विषयों से जुड़े हुए हैं, इसलिए उनका उत्तर नहीं दिया जा सकता है।
पीएमओ ने कहा, 'आरटीआई के तहत कई सवालों के जवाब एक साथ नहीं दिए जा सकते, जब तक उन्हें अलग-अलग नहीं पूछा जाता है।'
पीएमओ का तर्क?
लेकिन पीएमओ का यह जवाब ग़लत इसलिए है कि वह केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) के नियमों के ख़िलाफ़ है। 'द वायर' के अनुसार, पीएमओ के सूचना अधिकारी प्रवीण कुमार ने सीआईसी के एक ऑर्डर और सुप्रीम कोर्ट के एक बयान की आड़ में इस अर्जी को खारिज कर दिया। पर उन्होंने जो कुछ कहा, वह ग़लत है।मुख्य सूचना आयुक्त वजाहत हबीबुल्लाह ने 2009 के एक मामले से जुड़े फ़ैसले में कहा था कि यदि आरटीआई में कई सवाल पूछ जाएं लेकिन वे एक ही विषय से जुड़े हुए हों तो उनका जवाब निश्चित रूप से दिया जाना चाहिए।
सच क्या है?
हबीबुल्ला के इस आदेश के परिप्रेक्ष्य में पीएम केअर्स से जुड़े सवालों के जवाब पीएमओ के देना चाहिए था। पर उसने ऐसा नहीं किया।इसी तरह प्रधानमंत्री कार्यालय ने सुप्रीम कोर्ट के एक पुराने बयान को ढाल बना कर पीएम केअर्स से जुड़े आरटीआई का जवाब नहीं दिया।
'द वायर' के मुताबिक़, सुप्रीम कोर्ट ने 2011 मे एक मामले में कहा था, 'हम नहीं चाहते कि 75 प्रतिशत कर्मचारी अपने समय का 75 प्रतिशत हिस्सा आरटीआई से पूछे गए सवालों के जवाब देने में ही लगाएं।'
पर पीएमओ ने बाद में सुप्रीम कोर्ट के उस फ़ैसले पर ध्यान नहीं दिया, जिसमें कहा गया था कि आवेदनकर्ता को एक विषय पर पूछे गए सभी सवालों के जवाब और काग़ज़ात दिया जाना चाहिए।
इस पूरे मामले से वही सवाल एक बार फिर खड़ा होता है कि आख़िरकार प्रधानमंत्री कार्यालय पीएम केअर्स को दूसरों से अलग क्यों मान रहा है, वह क्यों उससे जुड़ी जानकारी नहीं देना चाहता ?
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