कोरोना संक्रमण से खौफ़ के बीच वैक्सीन से इतनी बड़ी उम्मीद थी कि शायद ही किसी ने कल्पना की होगी कि उन्हीं वैक्सीन को लेने से लोग हिचकेंगे। पर ऐसा हो रहा है। वैक्सीन के प्रति हेजिटेंसी है। यानी लोगों में झिझक है। सरकार भी लोगों की इस झिझक को मानती है तभी तो इसने अभियान शुरू किया है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय अफवाहों को ख़त्म करने के लिए पोस्टर और नारों का अभियान चला रहा है।
वैक्सीन हेजिटेंसी यानी टीकाकरण में हिचक का मतलब है- टीके की उपलब्धता के बावजूद टीके लेने की इच्छा जताने में देरी या टीकाकरण से इनकार करना। वैक्सीन के प्रति इसी झिझक को दूर करने के लिए सरकार विशेष अभियान चला रही है।
यही झिझक भारत में दो टीकों की मंजूरी के बाद देखने को मिल रही है। 16 जनवरी को प्रधानमंत्री मोदी ने दुनिया के सबसे बड़े टीकाकरण अभियान की शुरुआत की। अगले कुछ महीनों में 30 करोड़ भारतीयों को टीका लगाये जाने का लक्ष्य है। अभियान शुरू होने के पहले दिन 1 लाख 91 हज़ार लोगों को टीका लगाया गया। सरकार ने पहले दिन 3 लाख लोगों को टीका लगाने का लक्ष्य रखा था। इसके बाद से अभी तक लक्ष्य नहीं पाया जा सका है। मीडिया रिपोर्टों में कहा जा रहा है कि स्वास्थ्य कर्मियों और फ़्रंटलाइन वर्कर्स वैक्सीन लगवाने से हिचक रहे हैं। 18 जनवरी की 'द हिन्दू' की रिपोर्ट के अनुसार, कुछ राज्यों के स्वास्थ्य कर्मियों में टीका को लेकर हिचक है, वे 'देखो और इंतजार करो' की नीति पर चल रहे हैं, यानी वे ख़ुद टीका लेने के पहले यह देख लेना चाहते हैं कि जिन्होंने ये टीके लगवाए हैं, उन पर इसका क्या असर पड़ा है।
टीओआई की रिपोर्ट के अनुसार, छह शहरों में कराए गए सर्वे के अनुसार कोवैक्सीन के टीके उपलब्ध कराए गए लोगों में से 50 फ़ीसदी लोग भी टीके नहीं लगवा पाए। रिपोर्ट के अनुसार मंगलवार शाम तक पटना और जयपुर में 49 फ़ीसदी लोग ही कोवैक्सीन टीका लगवा पाए, जबकि मुंबई में 31 फ़ीसदी, दिल्ली में 33 फ़ीसदी, चेन्नई व पुणे में 47-47 फ़ीसदी। कोविशील्ड लगवाने वालों में दिल्ली में 48 फ़ीसदी, मुंबई में 49, चेन्नई में 50, पुणे में 53, पटना और जयपुर में 55-55 फ़ीसदी लोगों ने टीके लगवाये।
कहा जा रहा है कि वैक्सीन के प्रति झिझक होने की कई वजहें हैं। इनमें से सबसे बड़ा कारण तो यह है कि जल्दी टीका बनाए जाने से लोगों को इसके दुष्प्रभाव का डर है। लोग इसमें देखना चाहते हैं कि यह पूरी तरह सुरक्षित है या नहीं।
कोवैक्सीन के तीसरे चरण के ट्रायल के आँकड़े के बिना ही इस्तेमाल को मंजूरी दिए जाने से इस मामले में झिझक थोड़ी ज़्यादा ही है।
बता दें कि ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ़ इंडिया यानी डीसीजीआई से तीन जनवरी को दोनों वैक्सीन सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडिया की कोविशील्ड और भारत बायोटेक की कोवैक्सीन को 'सीमित इस्तेमाल' की मंजूरी दी।
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लेकिन भारत बायोटेक की कोवैक्सीन पर विवाद हो गया था। उस वैक्सीन के तीसरे चरण के आँकड़ों के बिना ही उसको मंजूरी दिए जाने पर सवाल उठे। सवाल इसलिए उठे क्योंकि कोवैक्सीन के तीसरे चरण के ट्रायल में शामिल रहे विशेषज्ञों के पास ही कोई डेटा नहीं थे।
डीसीजीआई द्वारा इसको मंजूरी दिए जाने के बाद शशि थरूर, आनंद शर्मा, जयराम रमेश जैसे कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने कोवैक्सीन के तीसरे चरण के ट्रायल के आँकड़े को लेकर सवाल उठाए थे।
वैक्सीन को मंजूरी देने वाली सब्जेक्ट एक्सपर्ट कमेटी यानी एसईसी के नोट में इस सवाल का जवाब था। ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ की रिपोर्ट के अनुसार, एसईसी के नोट के आख़िर में लिखा गया है, ‘...विचार-विमर्श के बाद समिति ने एक कड़े एहतियात के साथ जनहित में आपात स्थिति में सीमित उपयोग के लिए मंजूरी देने की सिफारिश की। इसका इस्तेमाल क्लिनिकल ट्रायल मोड में, टीकाकरण के लिए अधिक विकल्प के रूप में करने की सिफ़ारिश की गई। विशेष रूप से नये क़िस्म के कोरोना संक्रमण की स्थिति में। इसके अलावा फर्म अपने तीसरे चरण के क्लिनिकल ट्रायल को जारी रखेगी और उपलब्ध होने पर आँकड़े पेश करेगी।’
बता दें कि मीडिया से बातचीत में एम्स के निदेशक डॉ. गुलेरिया ने कहा था कोवैक्सीन बैक-अप की तरह है।
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