मराठाओं को 16 फ़ीसद आरक्षण
महाराष्ट्र के प्रभावशाली समझे जाने वाले मराठा समुदाय के लोगों के लिए सरकारी नौकरियों और शिक्षा संस्थानों में दाख़िले के लिए आरक्षण की माँग को मानते हुए बीते साल राज्य की फड़नवीस सरकार ने 16 प्रतिशत आरक्षण का एलान कर दिया। काफ़ी ज़द्दोजहद के बाद राज्य विधानसभा ने 30 नंवबर 2018 को इससे जुड़ा विधेयक पारित कर दिया। मराठाओं के लिए 16 प्रतिशत के इस आरक्षण के साथ ही राज्य में कुल आरक्षण 68 फ़ीसद तक जा पहुँचा। यह मामला अदालत में पहले से ही था। इसके बाद विनोद पाटिल नामक एक आदमी ने बंबई हाईकोर्ट में एक याचिका दाख़िल कर कहा कि कोई फ़ैसला सुनाए जाने से पहले उनकी राय भी सुनी जाए। इसके तुरत बाद राज्य सरकार ने भी इसी आशय की एक अर्ज़ी उसी अदालत में दायर की।
मराठा समुदाय के बारे में यह बात मानी जाती है कि वे पारंपरिक रूप से मोटे तौर पर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के समर्थक रहे हैं। बीजेपी उन्हें वहां से तोड़ कर अपनी ओर लाने के लिए मराठा आंदोलन के कार्ड का इस्तेमाल कर रही है।
उसने इसके तहत ही 16 फ़ीसद आरक्षण देने का एलान कर दिया। इस फ़ैसले से ओबीसी समुदाय के लोग सरकार और बीजेपी से अच्छे ख़ासे नाराज़ हैं। सोमवार को ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तिहादुल-मुसलमीन के विधआयक इम्तियाज जलील ने मराठा आरक्षण से जुड़े विधेयक के ख़िलाफ़ बंबई हाई कोर्ट में एक अर्ज़ी डाल उसे चुनौती दी है और रद्द करने की माँग की है।
लगभग 75 प्रतिशत ज़मीन पर कब्जा रखने वाले और सरकारी नौकरियों पर पहले से ही काबिज इस समुदाय ने सबसे पहले 1979 में आरक्षण की माँग की थी। सबसे पहले मराठा सेवा संग और मराठा महासंघ ने आरक्षण की माँग की थी।
संपन्न पाटीदारों को भी चाहिए आरक्षण
गुजरात के पाटीदारों की खेती और वाणिज्य-व्याापार पर मजबतू पकड़ रही है और वे मोटे तौर पर संपन्न माने जाते रहे हैं। वे पहले आरक्षण के ख़िलाफ़ थे। पर बीते कुछ समय से वे ख़ुद आरक्षण की माँग करने लगे। इस माँग को लेकर पाटीदारों ने लंबा और धुआँधार आंदोलन चलाया। यह आंदोलन कई जगहों पर हिंसक भी हो गया। जुलाई 2015 में यह आंदोलन शुरू हुआ। अहमदाबाद में 25 अगस्त को हुई रैली में हज़ारों लोगों ने भाग लिया। हार्दिक पटेल इसके सबसे बड़े नेता बन कर उभरे। उन्हें गिरफ्तार किया गया, उन पर राष्ट्रद्रोह का मुक़दमा ठोंका गया, उन्हें जेल हुई। यह आंदोलन हिंसक हो गया, बस-ट्रक वगैरह में आग लगाई गई और कुछ लोग मारे भी गए।
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जाट आंदोलन
हरियाण के जाटों ने आरक्षण की माँग करते हुए पूरे राज्य में ज़बरदस्त आंदोलन चलाया। फ़रवरी 2016 में शुरु हुआ यह आंदोलन शुरु में ही हिंसक हो गया, बसें जलाई गईं, ट्रक फूंके गए, लोगों से मार पीट की गई, सरकारी दफ्तरों पर हमले हुए, आगजनी हुई। रेल मंत्री ने लोकसभा में एक सवाल के जवाब में कहा कि इससे 55 करोड़ रुपये का नुक़सान सिर्फ़ रेलवे को हुआ, कुल नुक़सान अरबों रुपये का हुआ। स्थिति इतनी ख़राब हो गई कि राजमार्ग पर लूटपाट के अलावा महिलाओं से साथ बलात्कार तक की वारदात के आरोप लगाए गए, हालांकि इसे साबित नहीं किया जा सका। हरियाण सरकार ने 13 मार्च 2016 को एक अधिसूचना जारी कर जाटों को सरकारी नौकरियो में 10 प्रतिशत के आरक्षण की व्यवस्था करने की घोषणा कर दी। इसमें सभी धर्मों के जाटों को शामिल कर लिया गया। इसमें विश्नोई, त्यागी और रोर को भी शामिल कर लिया गया। यह व्यवस्था की गई कि तीसरी और चौथी श्रेणी की नौकरियों में 10 फ़ीसद और पहली-दूसरी श्रेणी की नौकरियों में 6 प्रतिशत आरक्षण दिया जाएगा। लेकिन यह मामला अदालत पहुँचा। पंजाब व हरियाणा हाई कोर्ट ने 26 मई 2016 को इसे खारिज कर दिया।
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गूजर आंदोलन
मुख्य रूप से राजस्थान में बसने वाले गूजरों ने आरक्षण के लिए पूरे राज्य में आंदोलन चलाया। यह आंदोलन भी हिंसक रहा और उनके निशाने पर मुख्य रूप से रेलवे की संपत्ति रही। रेल लाइने उखाड़ी गईं, ट्रेन के परिचान में बड़े पैमाने पर रुकावट डाली गई। इसमें कई लोग मारे गए और अंत में सेना की मदद भी लेनी पडी। बाद में राज्य सरकार ने अन्य पिछड़ा समुदाय के लिए 21 प्रतिशत आरक्षण की घोषणा की और इसमें जाटों को भी शामिल कर लिया। इसमें सर्वाधिक पिछड़े समुदाय के लिए भी 1 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था की गई।
लिंगायतों को चाहिए आरक्षण
कर्नाटक के वीरशैव लिंगायत समुदाय के लोगों ने महाराष्ट्र के मराठाओं से प्रेरणा लेकर आरक्षण की माँग की है। उन्होंने बीते साल राज्य में सभी ज़िला मजिस्ट्रेट के दफ़्तरों के सामने प्रदर्शन किए और कहा कि सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में उन्हें आरक्षण चाहिए क्योंकि वे भी पिछड़े हैं। वे चाहते हैं कि वीरशैव लिंगायत समुदाय को ओबीसी घोषित कर दिया जाए, ताकि वे ख़ुद व ख़ुद आरक्षण पा जाएँ। लेकिन इसमें पेच यह है कि लिंगायतों के 99 समुदायों में पहले से ही 20 समुदाय ओबीसी और 15 समुदाय दलति श्रेणी में हैं। वे वीरशैव को ओबीसी श्रेणी में लाए जाने के ख़िलाफ़ हैं क्योंकि इससे उन्हें नुक़सान है। वे आख़िर उनके हिस्से में ही भागेदारी करेंगे।
कापू के लिए अलग कैटगरी
आंध्र प्रदेश में कापू समुदाय के लोगों ने आरक्षण की माँग क समर्थन में लंबा आंदोलन चलाया और चंद्र बाबू नायडू की सरकार ने 2017 में इस पर अध्ययन के लिए मंजुनाथ आयोग का गठन किया। साल 2018 में सरकार ने आयोग की सिफ़ारिशों को लागू करते हुए कापू समुदाय के लोगों के लिए 5 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्थआ की। इसके लिए बैकवर्ड क्लास में अलग कैटगरी 'एफ' बनाया गया। राज्य मे कापू समुदाय की तादाद लगभग 10 फ़ीसद है। लेकिन इसके बाद उनके प्रतिद्वंद्वी समझे जाने वाले कम्मा समुदाय के लोगों ने भी आरक्षण की माँग कर दी। इस समुदाय के लोग ज़्यादातर किसान हैं और उनकी संख्या लगभग 3 प्रतिशत है। लेकिन उनके साथ वेलम्मा, बलीजा और रेड्डी भी जुड़ गए हैं। ये अगड़ी जातियोें के हैं और मोटे तौर पर बेहतर सामाजिक आर्थिक स्थितियों में हैं, पर उन्हें भी आरक्षण चाहिए।
खेती-किसानी में कम होती आय, रोज़गार के कम होते साधन और लोगों की बढती इच्छाओं के साथ वोट बैंक की राजनीति के घालमेल से एक ऐसी स्थिति पैदा हो गई हैं जहां हर कोई ख़ुद को उपेक्षित महसूस करता है और उसे लगता है कि वह अपने वोट बैंक के बल पर अपनी बात मनवा ही लेगा।
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