द्रौपदी मुर्मू देश की 15वीं राष्ट्रपति बन चुकी हैं। सोमवार को राष्ट्रपति पद की शपथ लेते हुए उनका भाषण बताता है कि किन कठिन परिस्थितियों में उनकी जिन्दगी गुजरी। यह सच है। मुर्मू को जब एनडीए ने राष्ट्रपति पद का प्रत्याशी बनाने का फैसला किया तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पीएमओ से कहा कि फौरन मुर्मू से बात कराई जाए। मुर्मू ओडिशा के गांव में थीं, जहां भारत की दूरसंचार व्यवस्था का नेटवर्क फेल हो गया। आइए आपको बताते हैं वो दिलचस्प कहानी।
उनके लिए ओडिशा के मयूरभंज के एक सुदूर गांव से रायसीना हिल्स तक का सफर इतना आसान नहीं था। हालांकि, प्रधानमंत्री मोदी के लिए भी द्रौपदी मुर्मू को इस खुशखबरी को पहुंचाना इतना आसान नहीं था। इस खबर को बताने के लिए पीएम मोदी और पीएमओ को मेहनत करनी पड़ी थी।
पीएमओ के आधिकारिक सूत्रों ने जी न्यूज को बताया कि राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के चुनाव के लिए आयोजित एनडीए की बैठक में उनका नाम तय होने के बाद प्रधानमंत्री सबसे पहले द्रौपदी से फोन पर बात कर उन्हें बधाई देना चाहते थे। पीएमओ ने द्रौपदी से संपर्क करने की कोशिश शुरू की। सूत्रों ने बताया कि दस बार फोन पर द्रौपदी मुर्मू तक पहुंचने की कोशिश करने के बाद भी फोन लाइन नहीं लग पाई।
ओडिशा के दूरदराज के गांवों में कमजोर नेटवर्क सरकारी अधिकारियों के लिए नई बात नहीं है, लेकिन प्रधानमंत्री को यह सूचना देने में पीएमओ के अधिकारी खुद को बहुत असहज पा रहे थे।
पीएमओ के अधिकारियों ने द्रौपदी के गांव रैरंगपुर के एक स्थानीय बीजेपी नेता विकास चंद्र महतो के फोन नंबर को ट्रैक किया। विकास रैरंगपुर में दुकान चलाते हैं। जब पीएमओ का फोन आया तो विकास दुकान पर थे। फोन के दूसरी तरफ से एक हताश आवाज, 'मैडम मुर्मू से बात कराइए, जल्दी करिए, प्रधानमंत्री जी बात करना चाहते हैं।'
विकास फोन लेकर साइकिल से फौरन द्रौपदी के घर की ओर भागे। रास्ते में उनका फोन कनेक्शन दो बार कट गया। अंत में द्रौपदी के घर पहुंचकर पीएमओ की ओर से तीसरी बार फोन आया। बीजेपी नेता ने अपना मोबाइल फोन 'मैडम मुर्मू' के हाथ में थमा दिया।
चंद मिनटों में द्रौपदी ने खुद विकास को बताया कि उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी से बात की है। खुद प्रधानमंत्री ने उन्हें एनडीए खेमे का राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाने की खुशखबरी सुनाई है। मुर्मू के मुंह से यह खबर सुनकर विकास खुशी से रो पड़े। यह खबर बहुत जल्द गांव में फैल गई। पूरे गांव में खुशी का माहौल बन गया। दरअसल विकास कुछ समय तक मुर्मू के निजी सचिव के रूप में भी काम कर चुके हैं। वो जानते थे कि पीएमओ से फोन आने का क्या मतलब होता है।
बाकी आदिवासी गांवों का क्या होगा
इसी कड़ी में एक और बात सामने आई है। द्रौपदी के राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनने के बाद उनके पैतृक गांव को बिजली मिल गई है। आजादी के 75 साल बाद उस गांव में रोशनी है और पंखा चल रहा है। यह सब गांव की लड़की द्रौपदी मुर्मू के सौजन्य से मुमकिन हुआ। कई लोगों को लगता है कि इस घटना के बाद राष्ट्रपति के गांव रैरंगपुर का मोबाइल कनेक्शन भी सुधर जाएगा। लेकिन अगर आदिवासी समाज का कोई प्रतिनिधि राष्ट्रपति की कुर्सी पर नहीं बैठता, तो क्या ओडिशा के इन दूरदराज के गांवों को सच में विकास का चेहरा दिखाई देता? सवाल बाकी है।
सवाल यह भी बाकी है कि एक आदिवासी के राष्ट्रपति बनने से क्या देश के आदिवासियों को उनकी जमीन से बेदखल करने का अभियान बंद होगा, क्या उनकी छीनी गई जमीनें वापस मिलेंगी ? सवाल ये भी है कि आदिवासियों के लिए संघर्ष करने वाले तमाम एनजीओ को क्या सरकारी रोकटोक से आजादी मिल पाएगी?
अपनी राय बतायें