जिस कोरोना वायरस ने दुनिया भर में इतिहास के अब तक के सबसे बड़े संकटों में से एक को खड़ा किया, क्या आपको पता है कि उस वायरस का टीका कब आएगा? वही टीका जो कोरोना संकट से उबरने की एकमात्र उम्मीद है। कौन सी संस्था या देश टीका को बनाने में सबसे आगे है? और भारत इसका टीका बनाने में कहाँ तक पहुँचा?
ये सवाल तब तक हमें कौंधते रहेंगे जब तक कि कोरोना की दवा नहीं मिल जाती। जैसी मानवीय त्रासदी है उसमें दुनिया भर में शायद सबसे ज़्यादा प्राथमिकता कोरोना के टीके को ही दी जा सकती है। यह इसलिए कि यह कोरोना संकट है जिसने पूरी दुनिया को हिला कर रख दिया। कोई भी ऐसा क्षेत्र नहीं है जो इससे प्रभावित नहीं है। सभी देश और ज़िंदगियाँ एक तरह से अस्त-व्यस्त हैं। कोई इसमें सामान्य रह भी कैसे सकता है जहाँ कोरोना वायरस से एक करोड़ से ज़्यादा लोग संक्रमित हो गए हों और पाँच लाख से ज़्यादा मौतें हो गई हों। हर रोज़ क़रीब पौने दो लाख लोग संक्रमित हो रहे हों। अर्थव्यवस्था तबाह हो गई हो। दुनिया के क़रीब-क़रीब सभी देश लंबे समय तक लॉकडाउन में रहे हों। यह तालाबंदी उस अंधेरी दुनिया की तरह हो गई हो जहाँ अपने ही अपने लोगों के संपर्क में आने से डरने लगे हों। और जहाँ दुनिया एक भयानक सपने की तरह दिखने लगी हो। वहाँ उम्मीद की एक छोटी सी भी किरण कितनी राहत देने वाली हो सकती है, इसकी कल्पना ही की जा सकती है।
वैक्सीन यानी टीके में वह उम्मीद की किरण दिखी। फ़िलहाल, दुनिया भर में कम से कम 13 टीके पर काम चल रहा है। भारत में भी स्वदेशी टीका बनाने के लिए क्लिनिकल ट्रायल की अनुमति मिल गई है। लेकिन सबसे पहले तैयार कौन करता है, यह देखने वाली बात होगी। हालाँकि विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ का मानना है कि वर्तमान में विकसित कर रहे सभी टीकों में अन्य की तुलना में ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय का टीका 'एस्ट्राज़ेनेका' में अधिक वैश्विक गुंजाइश है। इसने आगे कहा कि मॉडर्ना का टीका भी एस्ट्राज़ेनेका से बहुत पीछे नहीं है।
अब तक सबसे आगे ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय का टीका AZD1222 है, जिसे एस्ट्राज़ेनेका नाम दिया गया है। इसका परीक्षण दूसरे चरण में है। जल्द ही परीक्षण का तीसरा चरण शुरू किया जाना है। मॉडर्ना द्वारा प्रायोजित एमआरएनए-1273 वर्तमान में क्लिनिकल ट्रायल के दूसरे चरण में है। इसे कैसर परमानेंट वाशिंगटन स्वास्थ्य अनुसंधान संस्थान द्वारा तैयार किया जा रहा है।
इसके अलावा भी लगातार इसके टीके पर दुनिया भर में काम चल रहा है। इनमें से कई वैक्सीन का पहले चरण का परीक्षण पूरा हो चुका है और कई पहले चरण में हैं।
फ़ाइजर और BioNTech टीका- BNT162 पर काम कर रही है और इसका परीक्षण यूरोप भर में किया जा रहा है। यह पहले और दूसरे चरण के परीक्षण में है। कई और मेडिकल संस्थाएँ इस काम में लगी हैं।
भारत में मानव पर क्लिनिक ट्रायल की मंजूरी
भारत के शीर्ष दवा नियामक, सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन ने भारत बायोटेक इंडिया यानी बीबीआईएल को 'कोवाक्सिन’ के लिए मानव पर क्लिनिकल ट्रायल करने की अनुमति दी है। बीबीआईएल यह अनुमोदन प्राप्त करने वाला पहला स्वदेशी रूप से विकसित कोविड-19 वैक्सीन बनाने की रेस में है। इसका परीक्षण जुलाई में पूरे भारत में शुरू होने वाला है। एक बार जब पहले चरण का परीक्षण शुरू हो जाएगा तब स्थिति साफ़ होगी कि भारत का ख़ुद का बनाया टीका कब तक आम लोगों के लिए उपलब्ध हो पाएगा।
बहरहाल, इन परीक्षणों के आधार पर कहा जा सकता है कि अब जल्द ही इसका टीका आ सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ के मुख्य वैज्ञानिक डॉ. सौम्या स्वामीनाथन ने क़रीब एक पखवाड़ा पहले ही कहा है कि एजेंसी को उम्मीद है कि कोविड-19 के टीके इस साल के अंत से पहले उपलब्ध हो सकते हैं। वह कोरोना ड्रग परीक्षण निष्कर्षों पर जिनेवा से एक प्रेस ब्रीफिंग को संबोधित कर रहे थे।
जब से कोरोना संकट सामने आया है तब से सबसे बड़े सवालों में से एक यही है कि आख़िर कब इसकी दवा आएगी। चीन के वुहान शहर से बाहर जब दूसरे देशों में यह फैलना शुरू हुआ तो इसके टीके पर भी काम शुरू हुआ। जब कुछ देशों में इसके टीके पर क्लिनिकल ट्रायल शुरू हुआ तो दुनिया भर में उम्मीद बंधी, लेकिन जब तेज़ी से फैलते संक्रमण के बीच यह ख़बर आई कि आम लोगों के लिए इसके उपलब्ध होने में क़रीब डेढ़ साल लगेगा तो थोड़ी निराशा भी हुई। लेकिन अब ताज़ा आँकड़े उम्मीदों को पंख लगाने वाले हैं।
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